राष्ट्र गौरव और नारी प्रधान रचनाओं के कालजयी शिल्पकार मैथिलीशरण गुप्त

राष्ट्र गौरव और नारी प्रधान रचनाओं के कालजयी शिल्पकार मैथिलीशरण गुप्त
Maithili Sharan Gupt

संजीव कुमार
हिंदी साहित्य में खड़ी बोली को साहित्यिक रूप देने में मैथिलीशरण गुप्तजी का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील योगदान है. गुप्त जी की भाषा में माधुर्य भाव की तीव्रता और प्रयुक्त शब्दों का सुंदर सामंजस्य है. वे गंभीर से गंभीर विषयों को भी सरल सीधे शब्दों में पिरोने में सिद्धहस्त रचनाकार थे. गुप्तजी एक महान साहित्यकार कवि और कविता के साथ-साथ मुक्तक, नीति, गीत, नाटक और नाटक क्षेत्र के एक स्थापित नाम हैं. उनकी रचना पत्रावली पत्र शैली में रचित नूतन काव्य शैली का नमूना है और इस महान शैली में गेयता ,प्रवाहमयता
और संगीत्माकता हमेशा उपस्थित रही है.

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त 1886 को झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर हुआ था. उनके पिता सेठ रामचरण गुप्ता और माता काशीबाई जी थीं. इनके पिता श्री को हिंदी साहित्य में विशेष प्रेम था और मैथिलीशरण जी पर उनके पिता का गहन प्रभाव पड़ा जिसके फलस्वरूप उन्होंने अनेक ग्रंथों और काव्य कृतियों की रचना इस देश को समर्पित की.गुप्त जी की प्रारंभिक शिक्षा चिरगांव तथा झांसी में हुई. अपने घर पर ही अंग्रेजी, बांग्ला, संस्कृत और हिंदी का अध्ययन करने वाले गुप्त जी की प्रारंभिक रचनाएं कोलकाता से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ' वैश्योपकरक' मैं छपती रही, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आने पर उनके परामर्श से उनके साहित्यिक पक्ष में काफी निखार है.

यह भी पढ़ें: यूपी में परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों के लिए बड़ी खबर, हुआ तबादला

यह भी पढ़ें: यूपी में इस जगह बिछ सकती है नई रेल लाइन, आसान हो जायेगा सफ़र

यह भी पढ़ें: यूपी में सर्किल रेट को लेकर अपडेट, शहर से गाँव तक जमीनों के बढ़ेंगे दाम

यह भी पढ़ें: यूपी के इन जिलो में भारी बारिश, इन जिलो का भी बदलेगा मौसम

यह भी पढ़ें: यूपी में इन गाँव के बैनामों पर रोक, गुजरेगा लिंक Expressway

यह भी पढ़ें: यूपी के इस जिले में यह सरकारी स्कूल होगा सबसे हाईटेक, गाँव के बच्चो को मिलेगी बेहतर सुविधा

गांधी जी ने हिंद की विशिष्ट रचना पर इन्हें राष्ट्र कवि का दर्जा प्रदान किया. गांधी जी के संपर्क में आने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में भी कूद पड़े थे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गुप्तजी को कई बार जेल भी हुई थी. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन 1952 में गुप्त जी को राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया था 1954 में पद्म भूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया 12 दिसंबर 1964 को देश ने इस महान साहित्यकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खो दिया था.

यह भी पढ़ें: गोरखपुर में इस जगह बनेगा पुल, जाने कब से होगा शुरू

मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत रचनाओं के कारण हिंदी साहित्य में इनका विशेष स्थान है. हिंदी में राज सभाओं की पुनीत गंगा बहाने का श्रेय भी गुप्ता जी को ही है. वे सच्चे अर्थों में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को भरकर उनमें जनजागृति लाने वाले राष्ट्रकवि हैं. उनकी तमाम रचनाएं काव्य हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है. गुप्त जी की कविताओं का प्रमुख स्वर राष्ट्रप्रेम ही रहा है भारत भारती में प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद भी किया है. इनकी रचनाओं में व्यक्त स्वदेश प्रेम ही इनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम और नवीन राष्ट्रीय भावनाओं में वर्णित हो गया.

यह भी पढ़ें: यूपी के इस जिले के लोग है सबसे ज्यादा अमीर! देखें अपने जिले का हाल

उनकी कविता में आज की समस्याओं और विचारों के स्पष्ट दर्शन होते हैं गांधीवाद तथा आर्य समाज से काफी काफी प्रभावित कर रहे हैं. गुप्तजी ने अपने काव्य रचनाओं की पृष्ठभूमि आज के वर्तमान समय को ना लेकर प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों तथा पुराणों से ली है उन्होंने अपनी रचनाओं में अतीत के गौरव गाथाओं का स्पष्ट वर्णन एवं मानवतावादी नैतिक प्रेरणा का भरपूर इस्तेमाल किया गया है.

यह भी पढ़ें: गोंडा से इस रूट पर ट्रेनों की बढ़ेगी स्पीड! बिछाई जाएगी नई रेल लाइन

दूसरी तरफ मैथिलीशरण गुप्त जी का हृदय स्त्रियों के प्रति संवेदना सहानुभूति और करुणा से अप्लावित रहा है उन्होंने महिलाओं के मनोव्यथा को यशोधरा ,उर्मिला, कैकई जैसी रचनाओं में स्पष्ट तौर पर इंगित की है. रचनात्मकता के साथ गुप्तजी पर गांधीजी का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा इसलिए उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और कई बार कारावास की यात्रा भी की थी. वह एक सच्चे राष्ट्र कवि थे और उनकी समस्त रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर मानी जाती हैं .वे मृत्यु पपरंत काव्य साधना में लीन रहे और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करते रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने उन्हें डिलीट की उपाधि प्रदान की थी.

यह भी पढ़ें: यूपी में अगले महीने ज्यादा आएगा बिजली का बिल, जाने वजह

देश को समर्पित उनकी वैसे तो कई ग्रंथ हैं पर उनमें महत्वपूर्ण यशोधरा, साकेत, भारत भारती, पंचवटी, जय भारत पृथ्वी पुत्र, किसान, हिंदू चंद्रहास, द्वापर आदि बहुत महत्वपूर्ण रही हैं. उन्होंने बंगला की कई रचनाओं का अनुवाद भी किया था वह एक बड़े राष्ट्रभक्त राजनेता, कवि रचनाकार और श्रेष्ठ अनुवादक भी रहे हैं. अपने काव्य में राष्ट्रीय भावनाओं की गंगा बहाने वाले गुप्तजी दिवेदी युग के अनमोल रतन रहे हैं. कृतज्ञ राष्ट्र की उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि, नमन ,प्रणाम.

On