बस्ती के ई-रिक्शा चालक प्राशासन से परेशान, कहां चार पहिया वालों को..

ई-रिक्शा चालक, जो बस्ती क्षेत्रों में काम करते हैं, आमतौर पर कम आय पर निर्भर होते हैं. गाड़ी के रख-रखाव, बैटरी चार्ज करने, और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष करते हैं. इसके अलावा, सामाजिक सुरक्षा या स्वास्थ्य बीमा जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव होता है. जब आय कम हो और खर्च अधिक हो, तो मानसिक दबाव बढ़ जाता है.
बस्ती में ई रिक्शा चालक का दर्द
कभी-कभी समाज में इन लोगों को नीचा समझा जाता है, जिससे उनका आत्मविश्वास भी टूट सकता है. ई-रिक्शा चालक को न केवल काम की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें सामाजिक सम्मान की भी कमी होती है, जिससे मानसिक स्थिति प्रभावित होती है. बस्ती में ट्रैफिक जाम की समस्या को हल करने के लिए प्रशासन ने ई.रिक्शा के लिए नया रूट चार्ट लागू किया है. इस नियम के तहत ई.रिक्शा अब केवल निर्धारित मार्गों पर ही चल सकेंगे. नए नियम को लेकर ई.रिक्शा चालकों में दो तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं. मीडिया से बात करते हुए स्टेशन रूट के चालक सुरेश कुमार शर्मा का कहना है कि नया नियम फायदेमंद है. उनके अनुसार अब सवारियों के लिए झगड़े कम होंगे. साथ ही यात्री सेवा में भी सुधार होगा.
लंबे समय तक सड़क पर काम करना, धूल, प्रदूषण, और मौसम की मार झेलना शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. अधिकतर ई.रिक्शा चालकों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता. क्योंकि वे अधिकतर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. ई.रिक्शा का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. खासकर छोटे शहरों और कस्बों में, जहां यह परिवहन का एक सस्ता और पर्यावरण मित्र विकल्प बनकर उभरा है. लेकिन इसके साथ ही चार पहिया वाहनों के लिए एक नई चुनौती भी पैदा हो गई है. ई.रिक्शा का बढ़ता प्रचलन चार पहिया वाहनों के लिए कई समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है. ई.रिक्शा के बढ़ते उपयोग से सड़क पर वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है। जहां पहले चार पहिया वाहनों के लिए सड़कें खुली रहती थीं. अब वही सड़कें ई.रिक्शा, दो पहिया वाहनों और पैदल चलने वालों से भी भरी हुई हैं. इससे ट्रैफिक जाम की समस्या और भी बढ़ गई है. खासकर उन इलाकों में जहां पहले ट्रैफिक कम होता था. यह चार पहिया वाहनों के लिए यात्रा समय को बढ़ा सकता है और उनकी कार्यकुशलता को प्रभावित कर सकता है.
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कई ने कमाई घटने की कही बात
दूसरी तरफ कई चालक इस नियम से परेशान हैं. उनका कहना है कि रूट की पाबंदी से उनकी कमाई प्रभावित हुई है. गांधीनगर क्षेत्र के चालक अंकित ने बताया कि पहले वे रोजाना 600.700 रुपये कमा लेते थे. अब यह घटकर 200.300 रुपये रह गई है. कुछ चालक बैंक लोन की किस्त चुकाने में भी परेशानी का सामना कर रहे हैं. कुछ चालक संगठनों ने प्रशासन से नियमों में छूट देने की मांग की है. प्रशासन का मानना है कि नए नियम से मुख्य मार्गों पर यातायात सुगम होगा और जाम की समस्या दूर होगी. इन समस्याओं के कारण मानसिक दबाव और अकेलापन भी बढ़ सकता है. इन सब बातों को एक साथ झेलना किसी के लिए भी कठिन हो सकता है.
यह वह स्थिति है जब किसी को मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता होती है. आत्महत्या के बारे में सोचना दुःख और अवसाद का संकेत हो सकता है. लेकिन यह आपकी समस्याओं का समाधान नहीं है. जीवन में हर मुश्किल का कोई न कोई हल होता है. और आप अकेले नहीं हैं. चार पहिया वाहन उद्योग को ई.रिक्शा के बढ़ते प्रचलन का सामना करना पड़ रहा है. जिसके कारण उन्हें अपनी कीमत और सेवाओं को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना पड़ रहा है. इसके अलावा. सरकारों को ई.रिक्शा और चार पहिया वाहनों के बीच एक समान नियामक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है. हालांकि इस प्रकार की नीति परिवर्तन के कारण, दोनों प्रकार के वाहनों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जो कुछ कार निर्माता कंपनियों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है.