UP Politics: योगी आदित्यनाथ के सामने बेईमान नौकरशाही चुनौती
विष्णु गुप्त
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ फिर से मुख्यमंत्री बन गये हैं. उनका भारी-भरकम मंत्रिमंडल काम करना भी शुरू कर दिया है. प्रचारित यह किया गया है कि मंत्रिमंडल के गठन में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व मिला है, इसलिए सभी वर्गो का विकास सुनिश्चित है. खासकर मुस्लिम वर्ग के प्रतिनिधित्व को लेकर खास तरह की चर्चा है. चर्चा यह है कि भाजपा ने ऐसे व्यक्ति को मंत्रिमंडल में जगह दी है जो शिया मुस्लिम नहीं है बल्कि सुन्नी मुस्लिम है और वह गरीब, अपमानित और हाशिये पर खड़ी मुस्लिम जाति का प्रतिनिधित्व करता है. अब तक भाजपा पर शिया मुस्लिम का प्रभुत्व ही रहता था.
योगी के पहले कार्यकाल में जो एक मात्र मुस्लिम मंत्री हुआ करते थे वे शिया मुस्लिम जाति का ही प्रतिनिधित्व करते थे. यूपी और खासकर लखनउ में शिया व सुन्नी मुस्लिम जातियों के बीच वर्चस्व के झगड़े होते रहे हैं. इसके साथ ही साथ केशव प्रसाद मौर्या भी फिर से उप मुख्यमंत्री बन गये हैं. केशव प्रसाद मौर्या विधान सभा का चुनाव हार चुके थे. केशव प्रसाद मौर्या को भाजपा का पिछड़ा चेहरा माना जाता है और यह कहा जाता है कि केशव प्रसाद मौर्या ने पिछड़ों के बीच भाजपा की पहुंच कायम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी है. यह सही बात है कि पिछड़ों की राजनीति के प्रबंधन में भाजपा जरूर चैम्पियन रही है. यही कारण है कि अखिलेश यादव पिछड़ों की राजनीति के प्रंबधन में फिसड्डी साबित हुए.
अगर पिछड़ों की राजनीति के प्रबंधन में भाजपा विफल होती तो निश्चित मानिये कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीत नहीं मिलती. चुनावी राजनीति में सिर्फ विकास और उन्नति पर ही वोट मिलेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. चुनावी राजनीति में जाति भी एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गयी है. जातीय आधार पर वोट करने की परम्परा विकसित हुई है जो चुनावों के दौरान स्पष्ट दिखती है.योगी का यह कहना भी है कि उनका दूसरा कार्यकाल बेमिसाल और जनकांक्षाओं के प्रतीक साबित होगा.
विचारण का महत्वपूर्ण विषय यह है कि क्या भारी-भरकम मंत्रिमंडल का गठन कर देने मात्र से, मंत्रिमंडल में सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कर देने मात्र से ही उत्तर प्रदेश की जनता की जनकांक्षाएं पूरी हो जायेंगी? स्वच्छ और पारदर्शी शासन देने का स्थयी वायदा पूरा हो जायेगा, जरूरत मंदों की निजी कार्यो के निस्तारण में गति आयेगी? भ्रष्टचार और कदाचार कम होगा?
नौकरशाही जो भ्रष्ट है और निकम्मी है, वह शिष्ट और सक्रिय बनेगी, पुलिस जो आम लोगों पर अत्याचार करती है, उत्पीड़न करती है, जेल भेजने या फिर झूठे मुकदमों का अपराधी बनाने की डर दिखा कर जो वसूली करती है, वह वसूली बंद हो जायेगी? क्योंकि आम जनता की शिकायत अधिकतर नौकरशाही के प्रति ही होती है, आम जनता की इच्छाओं और भविष्य की कब्र बनाने के लिए नौकरशाही हमेशा यमराज की भूमिका में होती है.
नौकरशाही को जनाकांक्षा के प्रति जिम्मेदार बनाने की सारी कोशिशें विफल ही साबित होती है. जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो नौकरशाही को जिम्मेदार बनाने की कभी कोई सार्थक प्रयास ही नहीं हुआ. मायावती की जब सरकार थी तब भी नौकरशाही भ्रष्ट थी,अराजक थी और जनता के लिए यमराज थी. अखिलेश यादव की जब सरकार थी तब भी नौकरशाही की स्थिति वैसी ही थी जो मायावती की सरकार में थी. मायावती और अखिलेश की सरकार के दौरान नौकरशाही पूरी तरह से भ्रष्ट ही थी. अब यहां यह प्रश्न भी उठता है कि योगी के प्रथम कार्यकाल में नौकरशाही कैसी थी?
नौकरशाही क्या जनता के प्रति जिम्मेदार थी, नौकरशाही क्या ईमानदार थी, नौकरशाही क्या सरकार की विकास योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए सक्रिय थी? इन सभी प्रश्नों के उत्तर कोई खास उत्साह जनक नहीं थे. योगी जरूर ईमानदार हैं. योगी संत है, परिवार और संपत्ति मोह के गुलाम नहीं है.
योगी पर अखिलेश या मायावती की तरह धन का जुगाड़ करने और परिवार के लिए कार्य करने जैसे आरोप नहीं लगाये जा सकते हैं. पर प्रशासनिक अमले को जिम्मेदार बनाने की सफलता और असफलता पर योगी की आलोचना और समालोचना क्यों नहीं हो सकती है? निश्चित तौर पर योगी के प्रथम कार्यकाल के दौरान भी नौकरशाही पूरी तरह से ईमानदार नहीं थी और सरकारी योजनाओं का बंदरबांट करने में अपनी भूमिका निभा रही थी.
नौकरशाही के भ्रष्ट होने और नौकरशही के निकम्मेपन की शिकार सरकारी योजनाएं ही होती हैं. देश में जितनी भी लोकप्रिय और जनता के महत्व-विकास वाली योजनाएं आयी वे सफल क्यों नहीं हुई, उन सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ जनता को क्यों नहीं मिला? इसके पीछे भी कारण नौकरशाही ही है.
फाइल दबा कर बैठना, फाइल पर गलत नोटिंग कर अटका कर रखना, नौकरशाही की ऐसा करतूत है जिसकी सजा जनता तो भुगतती ही है, इसके अलावा सरकार भी भुगतती है, सरकार की छबि खराब होती है. स्थिति तो यहां तक है कि छोटे-छोटे कार्य जैसे जाति प्रमाण पत्र बनाने, आय प्रमाण पत्र बनाने, आवास प्रमाण पत्र बनाने, मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने, वसीयत पंजीकरण बनाने आदि कार्य में भी नौकरशाही के लिए रिश्वत निर्धारित है, रिश्वत नहीं देने पर ये सभी कार्य संभव ही नहीं होंगे?
रिश्वत के पैसे नहीं देने पर समय नहीं है, टेकनिकल गड़बडी है, साहेब नहीं है, इसलिए बाद में आइये, कह कर घूमाया जाता है. बड़ी-बड़ी योजनाओं को लटका कर नौकरशाही रखती है ताकि महंगाई का बहाना बना कर योजनाओं की नीयत राशि में वृद्धि की जा सके. जो योजनाएं कम समय और कम राशि में बन सकती है, उन योजनाओं में समय ज्यादा लगता है और नीयत राशि में बेतहाशा वृद्धि होती है.
अच्छा मंत्रिमंडल और ईमानदार मुख्यमंत्री भी विकास और ईमानदार प्रशासन की गारंटी नहीं हो सकते हैं. मनमोहन सिंह इसके उदाहरण हैं. मनमोहन सिंह को बेहद ईमानदार व्यक्ति माना जाता है पर प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिह घोटालों और कदाचारों के घिनौना बादशाह साबित हुए. यह अलग बात है कि इसके लिए मनमोहन सिंह के सामने सोनिया गांधी और अन्य कांग्रेसियों की इच्छाएं मजबूरी के तौर पर सामने थी.
योगी के प्रथम कार्यकाल के दौरान भी विधायक और सांसद लाचार थे. विधायकों और सांसदों की बात छोड़ दीजिये बल्कि योगी के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की बात भी नौकरशाही नहीं सुनती थी. यूपी में एक कहावत बहुत ही तेजी के साथ घूमती-फिरती थी कि योगी के मंत्री,विधायक और सांसदों की बात कोई चपरासी तक नहीं सुनता, पुलिस तो भाजपा के मंत्रियों और विधायकों-सांसदों को डांट कर भगा देती है.यह कोई सतही बात नहीं थी बल्कि चाकचौबंद बात थी. भाजपा के एक विधायक राजकुमार सहयोगी की थाने में अदना सा दारोगा ने पिटाई कर दी थी, दर्जनों विधायकों ने विधान सभा में सरेआम आरोप लगाये थे कि नौकरशाही और पुलिस अराजक, बेलगाम है और भ्रष्ट है, और उनकी बात भी नहीं सुनती है. जब कोई सरकारी कर्मचारी विधायकों, सांसदों और मंत्रियों की बात ही नहीं सुनेगा तो फिर जनता की बात सरकारी कर्मचारी कैसे सुनती होगी, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
नौकरशाही कैसे रंग बदलती है, इसका अहसास योगी आदित्यनाथ को भी हो गया है. जिस नौकरशाही को वह अपना हितैषी और निष्पक्ष मानते थे वही नौकरशाही ने चुनाव के दौरान रंग बदल लिया था. कई वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने कार्यालय और सरकारी भवनों को हरे और लाल रंग में रंगवाना शुरू कर दिया था. मुस्लिम गुंडागर्दी-सपाई गुंडागर्दी खुलेआम छूट दे दी गयी थी. इसीलिए योगी को कहना पडा था कि अभी जो गर्मी दिख रही है यानी जो गुंडागर्दी दिख रही है वह गुडागर्दी 10 मार्च को शांत हो जायेगी, हम मई-जून के गर्मी महीने को भी शिमला बना देते हैं, यानी की गुंडागर्दी का दमन कर देते हैं. योगी को अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों, विधायकों, सांसदो के प्रति नौकरशाही को जिम्मेदार और समर्पित करना ही होगा. अन्यथा आम जनता की योगी के प्रति मिला विश्वास बेअर्थ साबित होगा. यह लेखक के निजी विचार हैं.