यूपी के इन गाँव में नहीं आए बाढ़ इस लिये खर्च होंगे 2.75 करोड़ रुपए

इसमें स्थित बलरामपुर जिले में कोड़री घाट के निकट कटानरोधी कार्यों के लिए लगभग 2 करोड़ 74 लाख 98 हजार रुपये का खर्च आने वाला है। राप्ती नदी के किनारे 400 मीटर तक कटान का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे स्थानीय निवासियों में चिंता की लहर है। इस समस्या के समाधान के लिए राप्ती नदी के बाएं तट पर कटानरोधी कार्यों की एक योजना तैयार की गई है, लेकिन अभी बजट मिलने का इंतजार किया जा रहा है।
बरसात से पूर्व कोड़री घाट से सेमरहना गांव तक तटबंध की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। यदि समय रहते कटानरोधी कार्य नहीं कराए गए, तो इससे क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो स्थानीय कृषि और जीवन को प्रभावित कर सकती है। इसलिए, संबंधित विभागों को इस दिशा में शीघ्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
बलरामपुर जिला उत्तर प्रदेश के उन क्षेत्रों में शामिल है, जो बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इस जिले में 3 तहसीलें हैं, और हर एक तहसील बाढ़ के खतरे का सामना करती है। राप्ती और बूढ़ी राप्ती नदियां इस क्षेत्र के प्रमुख जल स्रोत हैं, जो बरसात के मौसम में भारी कटान का कारण बनती हैं। इसके अलावा, सोहेलवा जंगल से निकलने वाले 17 पहाड़ी नाले भी बाढ़ की स्थिति को और गंभीर बना देते हैं।
सेमरहना गांव की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, प्रशासन ने राप्ती नदी के बाएं तट पर कोड़री घाट के निकट 400 मीटर लंबा डैपनर बनाने का निर्णय लिया है। इस परियोजना के तहत, परक्यूपाइन का उपयोग करके तटबंध को मजबूत करने की योजना भी बनाई गई है। यह कदम बाढ़ के खतरे को कम करने और स्थानीय निवासियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए उठाया गया है।
सदर तहसील के सेमरहना गांव के निकट कोड़री घाट और एफलेक्स तटबंध की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। पिछले 2 सालों से राप्ती नदी यहां भयंकर कटान कर रही है, जिससे आसपास के क्षेत्र में खतरा बढ़ गया है। यदि यह कटान जारी रहा, तो कोड़री घाट के तटबंध के साथ-साथ सेमरहना और अन्य कई गांव भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।
इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए बरसात से पहले 400 मीटर लंबाई में 14 जियोबैग डैपनर परक्यूपाइन लगाने की योजना बनाई गई है। यह प्रयास नदी के कटान को रोकने और स्थानीय निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन और संबंधित विभागों की ओर से इस कार्य को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि नदी के कटान से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके।
ग्रामीणों शांतिभूषण, अयोध्या प्रसाद, राधेश्याम, बाबूराम और जटाशंकर का कहना है कि "बारिश से पहले कोड़री घाट से सेमरहना गांव तक कटानरोधी कार्य कराना अत्यंत आवश्यक है।" उनका मानना है कि "यदि समय पर इस कार्य को नहीं किया गया, तो सेमरहना और आसपास के कई गांवों के साथ-साथ कोड़ी घाट पुल के निकट तटबंध के कटान का खतरा काफी बढ़ जाएगा।" इन ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि पिछले वर्षों में नदी के कटान ने कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है, जिससे स्थानीय निवासियों को नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए, वे संबंधित अधिकारियों से अपील कर रहे हैं कि इस मुद्दे पर ध्यान दें और आवश्यक कदम उठाएं।
सदर तहसील का कलंदरपुर गांव राप्ती नदी के समीप स्थित है, जो हर साल बाढ़ के मौसम में एक गंभीर समस्या का सामना करता है। हर वर्ष 15 जून के बाद, जब बाढ़ का खतरा बढ़ता है, ग्रामीणों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर जाना पड़ता है। वर्तमान में स्थिति भले ही सामान्य है, लेकिन मानसून के आगमन में केवल 104 दिन बाकी हैं, जिससे गांववासियों की चिंता और बढ़ गई है। गांव के प्रधान विजय प्रताप ने बताया कि उनका गांव कोड़री घाट पुल के पूर्व दिशा में स्थित है। इस समय ग्रामीणों के मन में बाढ़ की संभावनाओं को लेकर अनिश्चितता और डर का माहौल है।
बरसात के मौसम में, राप्ती नदी का पानी गांव के चारों ओर फैल जाता है, जिससे गांव के निवासियों के लिए अपने घरों से बाहर निकलना एक बड़ी चुनौती बन जाती है। बाढ़ के कारण सड़कें और गांव के रास्ते पूरी तरह से जलमग्न हो जाते हैं, जिससे आवागमन ठप हो जाता है। ऐसी स्थिति में, स्थानीय प्रशासन और समाजसेवी संस्थाएं नावों का सहारा लेते हैं ताकि प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थलों तक पहुँचाया जा सके। गांववासियों के लिए यह समय तनावपूर्ण होता है, क्योंकि उन्हें हर साल इस संकट का सामना करना पड़ता है।
कोड़री घाट के बाएं किनारे पर तटबंध के साथ सेमरहना और अन्य गांवों को राप्ती नदी के कटान से सुरक्षित रखने के लिए एक महत्वपूर्ण कार्ययोजना तैयार की गई है। इस योजना को संबंधित अधिकारियों द्वारा अनुमति भी मिल चुकी है। प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि इस परियोजना का कार्य बारिश से पहले पूरा कर लिया जाएगा, ताकि स्थानीय निवासियों को किसी भी प्रकार की आपदा से बचाया जा सके।