मोहम्मद शमी के रोजे पर विवाद: क्या क्रिकेट खेलते हुए उपवास जरूरी है?

मुद्दा क्या है?
इस बयान के बाद यह बहस छिड़ गई कि क्या किसी खिलाड़ी के लिए रोजे में क्रिकेट खेलना व्यावहारिक है? क्या किसी के व्यक्तिगत फैसले पर इस तरह से सवाल उठाना सही है?
क्रिकेट और शारीरिक ज़रूरतें
क्रिकेट एक अत्यधिक थकाने वाला खेल है, खासकर तेज़ गेंदबाजों के लिए, जिन्हें लगातार लंबी दूरी दौड़नी पड़ती है और गेंदबाजी करनी पड़ती है। मोहम्मद शमी जैसे गेंदबाज को 10 ओवर फेंकने और 50 ओवर तक फील्डिंग करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है। अगर वह पूरे दिन बिना पानी के खेलते, तो उनके डिहाइड्रेट होने या गंभीर रूप से बीमार पड़ने की संभावना होती।
यह पहली बार नहीं है जब इस्लामिक रीति-रिवाजों और खेल को लेकर सवाल उठे हैं। हाशिम अमला का उदाहरण दिया जाता है, जिन्होंने रोजे में बल्लेबाजी की थी। लेकिन बल्लेबाजी और गेंदबाजी में बड़ा अंतर है। बल्लेबाज का खेल सीमित होता है, लेकिन गेंदबाज को पूरे मैच में शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है।
क्या इस्लाम में कोई छूट है?
इस्लामिक कानूनों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति सफर (यात्रा) पर हो या किसी विशेष परिस्थिति में हो, तो उसे रोजा स्थगित करने की छूट दी गई है। खेल कोई साधारण गतिविधि नहीं है, खासकर जब वह किसी देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हो। क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय मैचों में खिलाड़ियों का शारीरिक और मानसिक फिट रहना बेहद जरूरी होता है।
शरीयत के अनुसार, रोजों को बाद में पूरा किया जा सकता है, जब खिलाड़ी की परिस्थितियां अनुकूल हों। ऐसे में मोहम्मद शमी के फैसले को व्यक्तिगत धार्मिक मामले के रूप में देखना चाहिए, न कि विवाद का विषय बनाना चाहिए।
बयानबाज़ी और विवाद
शमी को गुनहगार बताने वाले बयान का विरोध खुद कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने किया है। उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से व्यक्तिगत मामला है और इस पर बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
खेल को धर्म से जोड़ना और किसी खिलाड़ी की नीयत पर सवाल उठाना सही नहीं है। मोहम्मद शमी भारतीय टीम के महत्वपूर्ण सदस्य हैं और उन्होंने हमेशा अपने देश और धर्म का सम्मान किया है।
मोहम्मद शमी का रोजा न रखना उनकी शारीरिक ज़रूरतों और खेल की मांग के अनुसार एक व्यावहारिक निर्णय था। इस पर विवाद खड़ा करने की कोई जरूरत नहीं थी।
खिलाड़ियों को खेल पर ध्यान केंद्रित करने देना चाहिए, न कि उन्हें धार्मिक या राजनीतिक बहसों में घसीटना चाहिए। यह विवाद हमें इस बात पर सोचने के लिए मजबूर करता है कि क्या हमें किसी के निजी फैसलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है?