जांच एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल बंद हो

जांच एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल बंद हो
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राजेश माहेश्वरी
बीते कुछ समय से प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की सक्रियता को लेकर विपक्ष ने जोरदार तरीके से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है. विपक्ष का आरोप है कि गैर-भाजपा वाली राज्य सरकारों व उनके नेताओं को ही जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है. जबकि भाजपा शासित राज्यों में किसी नेता पर कार्रवाई होती नजर नहीं आती. यही वजह कि हाल ही में ईडी के अधिकारों को लेकर आए शीर्ष अदालत के फैसले पर विपक्षी दलों ने निराशा जतायी है. सरकार को पक्ष साफ है कि जांच एजेंसियां कानून के अंतर्गत अपना काम कर रही हैं. देश की सर्वोच्च अदालत भी ईडी की कार्यवाही पर अपना मंतव्य साफ कर चुकी है. 

ये कोई पहला अवसर नहीं है जब जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और कार्यवाही पर इस तरह का हंगामा मचाया जा रहा हो. जिस भी दल की सरकार सत्ता में होती है, उस पर विपक्ष ये आरोप लगाता है कि सरकार और सरकारी एजेंसिया राजनीति के तहत ये कार्यवाही कर रही हैं. इन जांच निष्पक्ष नहीं है. इनकी कार्यवाही राजनीति से प्रेरित है. पिछले दिनों संसद के मानसून सत्र के दौरान भी विपक्ष ने जांच एजेंसियों के मुद्दे को सदन में जोर-शोर से उठाया है, जिससे सदन की कार्यवाही भी बाधित हुई. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने यह दावा भी किया कि यह जांच एजेंसी विपक्षी दलों को बर्बाद करने के लिए भाजपा सरकार का औजार बन चुकी है.

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देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत 17 विपक्षी दलों ने साझा बयान जारी करके प्रवर्तन निदेशालय को मिले अधिकारों पर सवाल उठाकर धनशोधन निवारण कानून यानी पीएमएलए की समीक्षा की भी मांग की है. विपक्ष का मानना है कि ईडी को मिले अधिकारों पर शीर्ष अदालत के फैसले से केंद्र सरकार की मनमानी बढ़ेगी. कालांतर सरकारें मनमाने व्यवहार करेंगी और भारतीय लोकतंत्र में उसके दूरगामी परिणाम होंगे. विपक्ष का कहना है कि कोर्ट के फैसले में धनशोधन निवारण कानून में किये गये संशोधनों को यथावत रखा गया है. इन संशोधनों की व्यापक पड़ताल की जरूरत थी. दरअसल, विपक्षी दलों को आशंका है कि ईडी के अधिकारों को मान्यता से केंद्र सरकार की राजनीतिक प्रतिशोध की प्रवृत्ति बढ़ेगी. विपक्ष ने विश्वास जताया है कि इसके बावजूद कालांतर संवैधानिक प्रावधानों की ही जीत होगी. उल्लेखनीय है कि इस साझा बयान पर कांग्रेस, आप, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, सीपीएम, सीपीआई, आरजेडी, शिवसेना आदि सत्रह दलों की सहमति है.

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दरअसल, बड़े बहुमत से सत्ता में लगातार दूसरी बार आई भाजपा की केंद्र सरकार पर विपक्ष बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाता रहा है. महाराष्ट्र में पूर्व सरकार के मंत्रियों व नेताओं के अलावा पश्चिम बंगाल आदि में प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी को विपक्ष राजनीतिक दुराग्रह की कार्रवाई के रूप में देखता है. नेशनल हेराल्ड मामले में कार्रवाई को इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है. सर्वप्रथम कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं से पूछताछ और फिर नेशनल हेराल्ड के प्रतिष्ठानों पर छापेमारी को राजनीतिक दुराग्रह के रूप में देखा जा रहा है. फिर यंग इंडियन के दतर को सील करने पर भी विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है. 

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वास्तव में किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी समाचार पत्र के कार्यालय में इस तरह की कार्रवाई कई सवालों को जन्म देती है. ऐसी कार्रवाई करते समय केंद्रीय एजेंसियों को अपनी विश्वसनीयता का ख्याल भी रखना चाहिए. जैसे कि शीर्ष अदालत कई बार सीबीआई को पिंजरे के तोते की संज्ञा देकर उसकी विश्वसनीयता का प्रश्न उठाती रही है. सरकारें तो आती-जाती रहती हैं लेकिन लोकतंत्र की विश्वसनीयता व कानून की व्यवस्था के अनुपालन के लिये इन एजेंसियों को नीर-क्षीर विवेक से काम लेना चाहिए. इस कार्रवाई की विश्वसनीयता व तार्किकता से देश की जनता को भी सहमत होना चाहिए. निस्संदेह, देश में भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए, लेकिन कोई कार्रवाई राजनीतिक दुराग्रह से प्रेरित नहीं होनी चाहिए. अन्यथा जनादेश से होने वाले बदलाव के बाद फिर इसी तरह दुराग्रह से कार्रवाई का सिलसिला चलता रहेगा. ईडी जिस प्रकार ताबड़तोड़ कार्रवाई विपक्षी नेताओं के खिलाफ कर रही है उससे जाहिरी तौर पर यह लगता था कि इससे विपक्ष बेदम होकर भाजपा के सामने नतमस्तक हो जाएगा लेकिन अब जब सभी बड़े नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक भी ईडी के हाथ बेहिचक होकर पहुंचे जा रहे हैं तब यह कहना अब मुश्किल है कि इससे विपक्ष  या गैर भाजपाई दल बेदम होकर नतमस्तक करेंगे.

ईडी की इन कार्रवाइयों की आलोचना तो हो रही है और उसके अधिकार व तौर तरीकों पर उंगली उठाई जा रही है लेकिन फिर भी ईडी अपना काम लगातार जारी रखे हुए है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शुरुआत में तो लग रहा था कि ईडी से राजनीतिक दल डरते रहेंगे लेकिन अगर ऐसे ही नेता ईडी का शिकार होते रहे तो धीरे धीरे भाजपा के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन ईडी पीड़ितों का जमा हो जाएगा जो भाजपा के लिए बड़ा और नया दर्देसर बन जाएगा.

राजनीति के जानकारों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव सिर्फ विपक्ष की कमजोरी के कारण जीतना चाहती है क्योंकि उसके परंपरागत राजनीतिक हथियार हिंदुत्व को अब वो इतनी धार नहीं दे सकती कि बड़ी कामयाबी हासिल कर सके  भाजपा के चाणक्य गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा चुनाव 2024 में 400 सीटों का लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं उसके लिए तो कुछ अलग तिगड़म भाजपा को लगानी होगी. नुपुर शर्मा प्रकरण के बाद भाजपा खुद अब ज्यादा सांप्रदायिक माहौल बना कर या हिन्दू मुस्लिम शौर मचाने से बच बच रही है, पिछड़े मुसलमानो के बहाने भाजपा अब मुसलमानो मे पैठ बना कर दुनिया को सिकुलर चेहरा दिखाना चाहती है जो उसके हिंदूवादी छवि के बिल्कुल विपरीत है.
लोकतंत्र का मूल चरित्र होता है पक्ष और विपक्ष के सहयोग-सामंजस्य से शासन चलाना. भारी बहुमत से हासिल सत्ता के ये मायने कदापि नहीं हैं कि विपक्षी दलों की आवाज को कमजोर किया जाये. उन्हें वित्तीय अनियमितताओं पर अंकुश लगाने के लिये बनी केंद्रीय एजेंसियों के जरिये दबाया जाये. हालांकि, यह कोई नई प्रवृत्ति नहीं है और विगत में कई केंद्र में आसीन सरकारों पर भी इन सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप विपक्ष द्वारा गाहे-बगाहे लगाये जाते रहे हैं. बात केवल इतनी ही कि ऐसे कानूनों व एजेंसियों के दुरुपयोग के मामलों की संख्या में कुछ अंतर रहता है. ऐसा पहले भी होता रहा है. सरकार और विपक्ष के बीच जांच एजेंसियों के दुरूपयोग को लेकर बहस चलती रही है. 
यह विडंबना ही है कि विपक्ष में रहते हुए जो राजनीतिक दल जिन एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं, वे सत्ता में आने के बाद उसी तरह के .त्यों को अंजाम देने लगते हैं. जिससे आम आदमी को समझ नहीं आता कि कौन सच कह रहा है और कौन झूठ. निस्संदेह, ऐसी कार्रवाई से देश में बदले की राजनीति को ही प्रश्रय मिलेगा. जो स्वस्थ लोकतंत्र के हित में नहीं कहा जा सकता. हो सकता है भाजपा इसमें अपना फायदा देख रही हो लेकिन लोगों का मानना है कि ईडी बिल्कुल निष्क्रिय विपक्ष को सक्रिय करने में मददगार जरूर साबित होगी. अगर ईडी की कार्यवाईयों की प्रतिक्रिया उलट हुए जैसे भाजपा सोच रही थी तो फिर लोकसभा चुनाव इतने आसान नहीं होंगे जैसे अभी सोचे जा रहे हैं. अब समय ही बता सकता है कि ईडी कार्रवाइयों के नतीजे क्या होंगे. (यह लेखक के निजी विचार हैं. )

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