बस्ती में विवेक से काम लेगी बीजेपी! दोबारा जिलाध्यक्ष बने विवेकानंद मिश्र के सामने कई चुनौतियां

बस्ती में विवेक से काम लेगी बीजेपी! दोबारा जिलाध्यक्ष बने विवेकानंद मिश्र के सामने कई चुनौतियां
बस्ती में विवेक से काम लेगी बीजेपी! दोबारा जिलाध्यक्ष बने विवेकानंद मिश्रा के सामने कई चुनौतियां

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती में विवेकानंद मिश्र को पार्टी का जिलाध्यक्ष घोषित किया है. विवेकानंद मिश्र के दोबारा जिलाध्यक्ष घोषित होने से एक ओर जहां उनके करीबियों में उत्साह का माहौल है तो वहीं दूसरी ओर कई लोगों के लिए फैसला सियासी तौर पर बुरा है. बस्ती में जिलाध्यक्ष पद के लिए 58 लोगों ने पर्चा भरा था. विवेकानंद, 57 नेताओं को पछाड़कर, बीजेपी की बस्ती के जिलाध्यक्ष बने हैं. ऐसे में उनके सामने अब कई चुनौतियां हैं.

बस्ती में जिलाध्यक्ष पद के लिए नामांकन करने वालों में डॉ. रोली सिंह, गोपेश्वर त्रिपाठी, देवेंद्र सिंह, चंद्र शेखर मुन्ना,कुंवर आनंद सिंह, प्रमोद पांडेय, दिवाकर मिश्र, वीरेंद्र गौतम, दिलीप कुमार पांडेय, अनूप खरे,आशा सिंह, प्रीति श्रीवास्तव ,अरविंद कुमार श्रीवास्तव, शैल जायसवाल और बाबूराम भारती प्रमुख तौर पर थे.

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कुल 18 ब्राह्मणों, 11 क्षत्रियों ,4 कायस्थों, 6 वैश्य, ओबीसी- 10, अनुसूचित जाति - 7 और अनुसूचित जनजाति से 2 नामांकन पार्टी को मिले थे. अब कुल जमा बात यह है कि बीजेपी ने बस्ती को यह संदेश दिया है कि सभी विवेक से काम लें. सबसे बड़ा जिम्मा विवेकानंद मिश्र पर है. उनके सामने आने वाले वक्त में कई चुनौतियां हैं. जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे.

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बस्ती के लिए बीजेपी के फैसले के बाद सभी ने उसे सिर माथे रखा. नेताओं ने फोटो के साथ सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं साझा की. हालांकि सियासत में यह बात सबको पता है कि जो जितना करीबी दिखता है, वह उतना होता नहीं. ऐसे में विवेकानंद के सामने सभी को साथ लेकर चलने की चुनौती है. पार्टी में अगर कोई गुटबाजी है तो उसको खत्म कर साल 2026 के पंचायत चुनाव और साल 2027 के विधानसभा चुनाव पर फोकस करना होगा.

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दूसरी चुनौती है बस्ती में समाजवादी पार्टी के आधिपत्य को समाप्त या कम करने की. बस्ती की पांच विधानसभा सीटों में तीन पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. 1 सीट पर सपा नेता दूधराम, सुभासपा के टिकट पर विधायक हैं. सिर्फ हर्रैया इकलौती सीट है जिस पर बीजेपी साल 2022 के विधानसभा चुनाव में अपना परचम लहरा पाई थी. ऐसे में विवेकानंद के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती होगी बस्ती के नक्शे पर सभी पांच सीटों पर भगवा रंग से रंगने की. इसके अलावा संसदीय क्षेत्र बस्ती भी फिलहाल सपा के खाते में है. 2024 के चुनाव में जब हरीश द्विवेदी लोकसभा का चुनाव हारे तब विवेकानंद ही अध्यक्ष थे. 

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जिलाध्यक्ष बनने के बाद विवेकानंद पर यह भी जिम्मेदारी है कि वह पार्टी को आगामी चुनाव में ले जाते हुए उसे विवादों से दूर रखें. बीते कुछ सालों में कई बार ऐसे मौके आए हैं जब स्थानीय नेता कई बड़े नेताओं को भी अंटशंट कहने से भी बाज नहीं आते. ऐसे में बडे़ स्तर पर जिले की किरकिरी होती है.

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यह सब संभालते हुए जिलाध्यक्ष को जिला पंचायत बस्ती में भारतीय जनता पार्टी की बादशाहत को बरकरार रखनी होगी. बीते कुछ दिनों में कई शीर्ष नेताओं के बीच बयानबाजियों और अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव लाने का दावा किया गया था. ऐसे में नए जिलाध्यक्ष पर कई मुद्दों पर चुनौतियां हैं. 

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सभी को साथ लेकर चलने से लेकर बस्ती में दोबारा कमल खिलाने तक... बीजेपी ने बस्ती इकाई से कह दिया है- विवेक से काम लो.

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