Mulayam Singh Yadav: मैनपुरी में सियासत की विरासत की जंग के बीच नेता जी की पहली जयंती आज
By Anoop Mishra
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Mulayam Singh Yadav Birth anniversary: 22 नवम्बर 1939 को सैफई, इटावा में जन्मे समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव की आज पहली जयंती है. साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह यादव परिवार के पांच भाई बहनों में दूसरे नम्बर पर थे. मुलायम सिंह यादव की पहली जयंती ऐसे वक्त में है जब यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर - खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है.
मैनपुरी में तो मानों बीजेपी और सपा के बीच, मुलायम की सियासत की विरासत की जंग चल रही हो. बीजेपी इस उपचुनाव में खुद को मुलायम सिंह की सियासत का असली वारिस घोषित करने की फिराक में है तो वहीं अखिलेश की अगुवाई सपा और यादव परिवार एकजुट होकर सत्ताधारी दल का मुकाबला कर रहा है.
राजनीति में आने से पूर्व शिक्षक रहे नेताजी को कुश्ती का शौक था. यही कारण है कि मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में अपने राजनीतिक गुरू चौधरी नत्थू सिंह को प्रभावित करने के बाद उनके परंपरागत सीट जसवंत नगर से अपना राजनीतिक सफर की शुरूआत की.
अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत विधायक के रूप में करने वाले मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री व केन्द्र में एक बार रक्षामंत्री बने. सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता दल में कार्य करने के पश्चात समान विचारधारा वाले नेताओं के साथ 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की.
विधानसभा के लिए आठ बार और लोकसभा में पांच बार चुने गये मुलायम सिंह यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते थे. सियासी समझ की बदौलत उन्होंने प्रदेश से लेकर केन्द्र तक अपनी पैठ मजबूत की. पारिवारिक संबंधों के साथ राजनीति को मजबूत बनाने के लिए उन्होंने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव से भी संबंध बनाये. परिवार को राजनीतिक रूप से मजबूत बनाने वाले नेताजी की एक समय में तूती बोलती थी.
कार्यकर्ताओं को अपना बनाकर रखने की कला में माहिर मुलायम सिंह यादव का विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी मधुर संबंध रहे. शायद यही कारण है की उनके सामने किसी भी दल ने उनके सामने कभी मजबूत प्रत्याशी नहीं उतारा. अपने संबंधों को जीने में माहिर मुलायम सिंह के बारे में बहुत सी अनगढ़ कहानियां है.
सैफई, इटावा, मैनपुरी से लेकर पूरे सूबे में उनके चाहने वाले आज भी उन्हें नेताजी ही कहते है. 10 अक्टूबर 2022 को 83 वर्ष की उम्र में मेदान्ता अस्पताल में उन्होंने अन्तिम सांस ली. उनकी मृत्यु के बाद उनके संबंधों की ही पहचान रही की सभी दलों के बड़े नेताओं के साथ पूरे पखवाड़े तक सैफई में उनके चाहने वालों का तांता लगा रहा. आज नेताजी की पहली जयंती है. पूरे दिन उन्हें श्रद्धांजलि दिए जाने का दौर जारी रहेगा. तमाम नेता और संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति नेता जी को याद करेंगे. हालांकि यह स्पष्ट 8 दिसंबर को ही हो पाएगा कि उनकी सियासत का असली वारिस कौन है.
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