यूपी में इस जगह पानी को लेकर ग्रामीण परेशान

यूपी में इस जगह पानी को लेकर ग्रामीण परेशान
Mahoba News

उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण इलाके आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. ऐसा ही एक दर्दनाक उदाहरण देखने को मिला यहाँ शहर या गाँव का नाम डालें. जैसे. महोबा, ललितपुर या चित्रकूट, जिले के एक छोटे से गांव में जहां के लोग आज भी बूंद.बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं.

बूंद.बूंद पानी को मोहताज हैं ग्रामीण

यहां के लोगों की पीड़ा सिर्फ शब्दों में नहीं. बल्कि उनकी आवाज़ में भी झलकती है. गांव की महिलाएं और बुजुर्ग अपनी पीड़ा को गीतों के माध्यम से बयां कर रहे हैं. एक बुजुर्ग महिला के दर्द भरे सुरों में गाया गया गीत सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है. उत्तर प्रदेश का महोबा शहर भीषण जल संकट के जूझ रहा है. शेखूनगर मोहल्ले के रहवासी इन दिनों एक-एक बूंद पानी के लिए तरस है. यहां की करीब चार हजार आबादी की हर सुबह अब सूरज की रोशनी के लिए बल्कि पानी के लिए चिंतित होती है. बीते चार वर्षों से लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं, मगर न सरकार सुन रही है, न जिम्मेदार जाग रहे हैं. गर्मियों में यह संकट नासूर बन चुका है.

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तपती दोपहरी में महिलाएं सिर पर बाल्टी, डब्बा और ड्रम उठाकर एक-एक किलोमीटर दूर पानी भरने जाती हैं. कई बार खाली बर्तन लिए लौट आती हैं. गांव में हैंडपंप या तो पूरी तरह से सूख चुके हैं या फिर उनकी मरम्मत नहीं हुई है. नल योजना के तहत लगाए गए पाइपलाइन महीनों से बंद पड़े हैं. प्रशासनिक लापरवाही का आलम ये है कि ग्रामीणों को एक.एक बाल्टी पानी के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. पानी की कमी सिर्फ घरों तक सीमित नहीं है. गांव का प्राथमिक विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र भी इसकी चपेट में हैं. बच्चों को प्यास बुझाने के लिए अपने साथ पानी लाना पड़ता है. कई बार तो इलाज कराने आए मरीज भी बिना पानी के लौट जाते हैं. बहरहाल, चार साल से लगातार पानी की समस्या झेल रहे शेखूनगर के लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई आएगा, सुनेगा और इस पीड़ा का अंत करेगा. सवाल सिर्फ पानी का नहीं, जीवन और सम्मान से जीने के अधिकार का है. देखना ये है कि जिम्मेदार कब जागेंगे और कब ये सूखा मोहल्ला पानी की एक बूँद को तरसना छोड़ पाएगा.

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सूखे हैं हैंडपंप, बंद हैं नल

गांववालों ने कई बार अधिकारियों से शिकायत की है. मगर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. लोगों का कहना है कि चुनाव के समय नेता वादे करते हैं. लेकिन बाद में कोई सुनवाई नहीं होती. बुजुर्गों की आंखों में अब उम्मीद नहीं, थकान झलकती है. बच्चों का बचपन पानी की लाइन में गुजर रहा है, स्कूल का बस्ता अब पानी के डिब्बे से बदल चुका है. शेखूनगर इलाका ऊंचाई पर बसा है, इसलिए यहां सप्लाई का पानी नहीं पहुंच पाता. पतली पाइपलाइन बीते तीन महीने से सूखी पड़ी है, हैंडपंप दम तोड़ चुके हैं. पानी के टैंकर आते हैं, लेकिन दो बाल्टी पाने को झगड़े और मारपीट तक हो जाती है. कई महिलाएं अब अपने दर्द को बुंदेली लोकगीतों में ढालकर गा रही हैं, शायद किसी संवेदना की कानों तक पहुंचे.

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अब शेखूनगर के लोग एक ही मांग कर रहे हैं कि कम से कम जीने भर को पानी तो दो. एक स्थायी टंकी बने, और जब तक वह नहीं बने, रोज पर्याप्त और साफ पानी के टैंकर भेजे जाएं. क्योंकि पानी अब सिर्फ जरूरत नहीं, एक जंग बन चुका है. जो टैंकर नगर पालिका भेजता है वो न केवल अपर्याप्त है बल्कि गंदा पानी भी आ रहा है. हर घर नल से जल योजना इस मोहल्ले में सिर्फ कागजों में है. मोहल्ले के लोग शिकायतें करके थक चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं मिला. सभासद आनंद श्रीवास भी मानते हैं कि यहां पानी के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. पानी की समस्या से कई वर्षों से होने के बाद भी लोग इससे आज भी जूझ रहे है. 21वीं सदी के भारत में जहां एक ओर हम चांद तक पहुंच चुके हैं. वहीं दूसरी ओर हमारे गांवों में लोग अब भी पानी जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह समय है कि सरकार और प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाएं और ग्रामीणों की आवाज़ को गंभीरता से लें.

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