यूपी में पुलिस पर भड़की कोर्ट, डीजीपी से कहा- 14 दिन में जवाब दें ,जांच अधिकारी को…
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सर्वाेच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश देते हुए कहा है कि किसी मामले में दोषपूर्ण जांच करने वाले इन्वेस्टिगेटिंग अफसर को कटघरे में खड़ा किया जाए. कोर्ट ने यह निर्देश तब दिया जब एक मामले में पुलिस की जांच पर सवाल उठाए गए और यह स्पष्ट किया गया कि जांच अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों का पालन सही तरीके से नहीं किया था. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देशभर में न्यायपालिका की सक्रियता और जिम्मेदार जांच के प्रति संवेदनशीलता का प्रतीक माना जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट बोला. यूपी में जो हो रहा, वो गलत
कोर्ट के सामने यह तथ्य आया कि इन्वेस्टिगेटिंग अफसर ने मामले की जांच में कई अहम पहलुओं की अनदेखी की. जिनके कारण साक्ष्य जुटाने में गंभीर गलतियां हुईं। इसके अलावा जांच अधिकारी ने आरोपी के खिलाफ सभी जरूरी प्रमाणों और गवाहों को नज़रअंदाज कर दिया. जिससे न्याय की प्रक्रिया में देरी हुई और आरोपितों को न्याय नहीं मिला. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है. सिविल मुकदमों को क्रिमिनल केस में बदले जाने पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, यूपी में जो हो रहा है, वह गलत है. चीफ जस्टिस ने कहा, हर रोज सिविल मुकदमों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है.
यह बेतुका है, सिर्फ पैसे नहीं देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता, ये कानून के शासन का पूरी तरह ब्रेकडाउन है. इन्वेस्टिगेटिंग अफसर को कटघरे में खड़ा करो और क्रिमिनल केस बनाओ- अधिकारी को भी तो सबक मिलना चाहिए। चार्जशीट फाइल करने ये कोई तरीका नहीं है. डिप्टी जनरल ऑफ पुलिस (क्ळच्) से भी कहेंगे कि यूपी में ये जो हो रहा है, वह उसमें कुछ करें। उन्होंने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि आगे से इस तरह के मामलों में पुलिस पर जुर्माना लगेगा. ग्रेटर नोएडा में पैसे के लेनदेन के एक मामले को पुलिस ने सिविल केस की जगह क्रिमिनल केस बनाते हुए चार्जशीट दाखिल कर दी थी. याचिककर्ता का कहना था कि पुलिस ने पैसे लेकर मामले को क्रिमिनल बना दिया. पुलिस ने सिविल मुकदमे को आपराधिक मामले में तब्दील करने के बाद समन जारी किया. याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और एफआईआर रद्द करने की मांग की.
सिविल मुकदमों को क्रिमिनल केस में बदलने का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जांच अधिकारी की ओर से कोई लापरवाही गलत काम या दोषपूर्ण जांच होती है. तो उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभानी चाहिए और उनके द्वारा किए गए काम की जांच की जानी चाहिए. साथ ही कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता के आधार पर इन्वेस्टिगेटिंग अफसर के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए. लगाएंगे। ब्श्रप् खन्ना ने क्ळच् और प्व् से कहा कि फैसले में कोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं, उसको लेकर एफिडेविट जमा करें और प्व् को अदालत में पेश होकर अपना बयान दर्ज करना होगा। एफिडेविट दाखिल करने के लिए दो हफ्तों का समय दिया गया है और मामले को 5 मई के लिए रिलिस्ट कर दिया गया है.
यूपी पुलिस के वकील ने कोर्ट के इस निर्देश पर आपत्ति जताई, लेकिन सीजेआई ने कहा कि उन्हें एफिडेविट जमा करने दीजिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही पर तब तक रोक रहेगी. यह पहली बार नहीं है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिविल मामलों को आपराधिक मामलों में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति को चिह्नित किया है। पिछले दिसंबर, 2024 में उन्होंने कहा था कि यह प्रथा कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर है. उन्होंने कहा था कि सिविल मामलों को बार-बार आपराधिक मामलों में बदलने से न्यायपालिका पर ऐसे मामलों का बोझ पड़ता है, जिन्हें सिविल अधिकार क्षेत्र द्वारा निपटाया जा सकता है. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा- उत्तर प्रदेश के वकील सिविल अधिकार क्षेत्र को भूल गए हैं, यह कानून के शासन का पूरी तरह से पतन दिखाता है. ब्श्रप् ने कहा- वकील भूल गए हैं कि नागरिक क्षेत्राधिकार भी है चीफ जस्टिस ने पक्षों को सुनने के बाद कहा- उत्तर प्रदेश में मुकदमों को लेकर जो हो रहा है, वो गलत है। हर दिन सिविल केस आपराधिक मुकदमों में तब्दील हो रहे हैं. ये बहुत बेतुकी बात है, सिर्फ पैसे न दे पाने को अपराध नहीं कह सकते हैं। मैं 10 से भी कटघरे में आने के लिए कहूंगा। कटघरे में खड़ा करो और आपराधिक मामला बनाओ। हम ये निर्देश देते हैं, उन्हें भी तो सबक मिले, ये कोई तरीका नहीं है चार्जशीट फाइल करने का. चौंकाने वाली बात तो ये है कि आए दिन यूपी में ये हो रहा है, वकील भूल गए हैं कि नागरिक क्षेत्राधिकार भी है.