यूपी की राजधानी में भीख मांग कर गुजारा कर रहे इन जिलों के लोग, इस जिले के 50 प्रतिशत भिखारी
डीपीओ, डूडा और कुछ निजी संस्थाओं द्वारा कराए गए इस सर्वे में यह बात सामने आई है कि लखनऊ के 2 गांवों में लगभग 200 लोग भीख मांगने के लिए सड़कों पर हैं
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हालात बेहद चिंताजनक हैं, यहां 7 जिलों के लोग भीख मांग रहे हैं। इन लोगों ने शहर के विभिन्न हिस्सों में झोंपड़ियां बना ली हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, बहराइच के लोग सबसे अधिक संख्या में भीख मांगते हुए देखे गए हैं, जिसमें महिलाओं के साथ-साथ छोटे बच्चे भी शामिल हैं।
डीपीओ विकास सिंह के अनुसार हाल ही में किए गए सर्वेक्षण के परिणाम सामने आ चुके हैं। इस सर्वे में यह जानकारी मिली है कि राजधानी में 7 जिलों के लोग भीख मांगने के लिए आए हैं। विशेष रूप से बहराइच जिले के लोग सबसे अधिक संख्या में चौराहों और बाजारों में भीख मांगते हुए देखे गए हैं।
इस सर्वेक्षण से पूर्व 3916 भिखारियों का मोबलाइजेशन किया गया था। इसके बाद और 5312 भिखारियों की पहचान की गई। इस प्रकार, कुल मिलाकर 9228 भिखारी शहर में पाए गए। इनमें से लगभग 50% भिखारी अकेले बहराइच जिले से हैं, जो इस समस्या को और भी गंभीर बनाता है।
सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों के अनुसार, बहराइच, लखीमपुर खीरी, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली और लखनऊ में भिखारियों की मौजूदगी पाई गई है। इनमें लखीमपुर खीरी का स्थान दूसरे नंबर पर है। लखनऊ में केवल 2 गांवों के भिखारी ही भीख मांगते हुए देखे गए हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों में भिखारियों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ रही है। नगराम और भजा खेड़ा जैसे गांवों में भिखारियों की उपस्थिति दर्ज की गई है, लेकिन इन दोनों के अलावा किसी अन्य गांव में भिखारी नहीं पाए गए।
अधिकारियों के अनुसार, बहराइच जिले में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है, जो 4800 के करीब है। वहीं, लखीमपुर खीरी में भी भिखारियों की संख्या कम नहीं है, यहाँ करीब 1500 भिखारी देखे गए हैं। इस स्थिति पर विचार करते हुए, विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता के कार्यक्रमों को मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि भिक्षा मांगने वालों के लिए स्थायी समाधान निकाला जा सके।
3 सालों में अधिकारियों ने भिखारियों की समस्या पर 200 से अधिक बैठकें आयोजित की हैं। कमिश्नर डॉ. रोशन जैकब पिछले 2 सालों से हर 2 महीने में नियमित रूप से मीटिंग कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, जिलाधिकारी, नगर आयुक्त इन्द्रजीत सिंह, महापौर सुषमा खर्कवाल और डूडा के अधिकारियों ने भी कई बार इस मुद्दे पर चर्चा की है। अधिकारियों का मानना है कि लगातार संवाद और समर्पित प्रयासों से भिखारी समुदाय की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
प्रशासन ने लखनऊ में भिखारियों के 256 बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए उन्हें सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने का कार्य किया है। इन बच्चों को बाल सेवा योजना से भी जोड़ा गया है, जिसके तहत उनके बैंक खातों में हर महीने एक निश्चित धनराशि भेजी जा रही है। यह राशि उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करती है, जिससे वे अपनी पढ़ाई और अन्य आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। इसके साथ ही, प्रशासन ने बच्चों को कापी, किताबें और ड्रेस भी उपलब्ध कराई हैं, ताकि उनकी शिक्षा में कोई बाधा न आए।
हाल ही में यह जानकारी सामने आई है कि कई बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, जिससे सरकार की योजनाओं को बड़ा धक्का लग रहा है। जिलाधिकारी विशाख जी ने बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) को निर्देश दिया है कि वे इन बच्चों की नियमित निगरानी करें। जानकारी के अनुसार, पाया गया कि चौराहों पर अभी भी बड़ी संख्या में बच्चे भीख मांगते हुए देखे जा रहे हैं। यह स्थिति न केवल समाज के लिए चिंताजनक है, बल्कि शिक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े करती है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा कार्यक्रमों के बावजूद, बच्चों का स्कूल न जाना एक गंभीर समस्या बन गई है।