OPINION: क्या यही हैं 'राष्ट्र भक्ति ' के मापदण्ड?

OPINION: क्या यही हैं 'राष्ट्र भक्ति ' के मापदण्ड?
rahul gandhi (Image- @INCIndia)

तनवीर जाफ़री 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गत दिनों ब्रिटेन के प्रतिष्ठित एवं विश्व विख्यात शिक्षण संस्थान, कैंब्रिज विश्वविद्यालय तथा हाउस ऑफ कॉमन्स परिसर में स्थित ग्रैंड कमेटी रूम में लेबर पार्टी के भारतीय मूल के सांसद वीरेंद्र शर्मा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान आमंत्रित अतिथि की हैसियत से दो अलग अलग व्याख्यान दिये. यहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के संबंध में जहां तमाम बातें कीं वहीं उन्होंने यह भी कहा कि -‘‘हर कोई जानता है और यह ख़बरों में भी है कि भारतीय लोकतंत्र दबाव में है और इस पर हमला हो रहा है...लोकतंत्र के लिए ज़रूरी ढांचे, मसलन संसद, स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका सभी पर नियंत्रण हो रहा है, इसलिए हम भारतीय लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर ही हमले का सामना कर रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत की लोकसभा में विपक्ष के लिए माइक अकसर ‘खामोश’ करा दिए जाते हैं. यहां राहुल ने इजरायली स्पाइवेयर ‘पेगासस' का इस्तेमाल किये जाने का भी ज़िक्र किया. जिसके द्वारा विपक्षी नेताओं,अनेक पत्रकारों व प्रतिष्ठित लोगों की जासूसी करने का आरोप लगाया था. ''राहुल गांधी ने इसी व्याख्यान में कन्याकुमारी से कश्मीर तक निकाली गयी अपनी  ‘‘भारत जोड़ो यात्रा''  का ज़िक्र करते हुये यह भी कहा कि ‘‘जब लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला हो रहा है तो विपक्ष के तौर पर हमारे लिए संवाद करना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए हमने भारत की संस्कृति और इतिहास की तरफ़ मुड़ने का फैसला किया. 

राहुल गांधी की भारत जोड़ा यात्रा की अपार सफलता से पहले से ही तिलमिलाई बैठी भारतीय जनता पार्टी को राहुल के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भारतीय लोकतंत्र पर मंडरा रहे कथित ख़तरों का ज़िक्र करना क़तई नहीं भाया. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सरकार के अनेक मंत्रियों तक ने लोक सभा के निर्वाचित प्रतिनधि राहुल गांधी की आलोचना से लेकर उनसे मुआफ़ी मांगने तक,बहुत कुछ कह डाला.  लोक सभा व राज्य सभा से लेकर संसद के बाहर तक तमाम भाजपाई राहुल गांधी पर कुछ इस तरह और ऐसे अभद्र व अपमान जनक शब्दों के साथ हमलावर हुये गोया राहुल गांधी से बड़ा राष्ट्र विरोधी और देश का दुश्मन कोई दूसरा नहीं. कई दिनों तक संसद की कार्रवाई भी इसी मुद्दे को लेकर बाधित रही. 

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बहरहाल, राहुल गांधी के कैम्ब्रिज व्याख्यान के विरुद्ध मुखर होकर बोलने वालों में एक नाम भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर का भी था जिन्होंने राहुल गांधी के विरुद्ध अनेक अमर्यादित टिप्पणियां कीं. प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि -'राहुल गांधी को विदेशी धरती पर दिए गए उनके कुछ विवादास्पद बयानों के लिए देश से निकाल कर फेंक देना चाहिए. प्रज्ञा ठाकुर ने कथित चाणक्य नीति को उद्धृत करते हुये कहा कि ‘विदेशी महिला से उत्पन्न पुत्र कभी देशभक्त नहीं हो सकता’ और ‘राहुल गांधी ने इस कथन को सच साबित कर दिया है.’उन्होंने यह भी कहा कि- ‘हमारे भारत के नहीं हो, मान लिया हमने, क्योंकि जो आपकी माताजी हैं वह इटली की हैं.’ प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि आप विदेशों में बैठ कर कहते हो कि हमें संसद में बोलने का अवसर नहीं मिल रहा है. इससे शर्मनाक बात और कुछ नहीं हो सकती. इन पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करना चाहिए कि हमारे देश में कैसी राजनीति कर रहे हैं यह. अब इनको राजनीति का अवसर नहीं देना चाहिए. इनको इस देश से निकाल करके फेंक दें.’

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यहां प्रज्ञा ठाकुर द्वारा के एक सांसद होने के बावजूद पूर्व में दिये गये उनके अति विवादित एवं आपत्तिजनक बयानों को इसलिये याद किया जाना ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि राहुल गाँधी तथा उन्हें देश के बाहर निकाल फेंकने की बातें करने वाली प्रज्ञा ठाकुर के बयानों में वास्तव में राष्ट्र विरोधी बयानबाज़ी कौन करता रहा है. दो वर्ष पूर्व इन्हीं सांसद प्रज्ञा ने राष्ट्रपति महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देश भक्त बताया था. उन्होंने कहा था कि ‘नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, देशभक्त हैं और रहेंगे.' प्रज्ञा के इस बयान की जब चौतरफ़ा आलोचना हुई तो उन्होंने अपने इसी विवादित बयान के लिए मुआफ़ी मांगी और कहा कि - ‘यह मेरी व्यक्तिगत राय है. मेरा इरादा किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं था. यदि मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो मैं मुआफ़ी मांगती हूं. गांधी जी ने देश के लिए जो कुछ किया है, उसे भुलाया नहीं जा सकता और मेरे बयान को मीडिया ने तोड़-मरोड़कर पेश किया.' परन्तु प्रज्ञा ठाकुर के इस 'माफ़ी नामे' के बावजूद स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी समय एक निजी चैनल को दिए गये साक्षात्कार में प्रज्ञा के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, था कि- ‘गांधी जी, गोडसे के बारे में जो भी बातें कही गई हैं, जो भी बयान दिए गए हैं, ये भयंकर ख़राब हैं. ये घृणा के लायक़ हैं, आलोचना के लायक़ हैं. सभ्य समाज के भीतर इस तरह की भाषा नहीं चलती है. इस तरह की सोच नहीं चल सकती इसलिए ऐसा करने वालों को सौ बार सोचना पड़ेगा.प्रधानमंत्री को यहां तक कहना पड़ा था कि -' उन्होंने मुआफ़ी मांग ली, अलग बात है लेकिन मैं उन्हें मन से मुआफ़ नहीं कर पाऊंगा.’ गोया प्रज्ञा ने अपने इस घृणित बयान से प्रधानमंत्री तक को असहज कर दिया था. यही प्रज्ञा ठाकुर थीं जिसने मुंबई हमले के शहीद हेमंत करकरे की शहादत का अपमान करते हुये कहा था कि 'करकरे ने उन्हें प्रताड़ित किया था और उन्होंने उनके (करकरे के) सर्वनाश का श्राप दिया था, इसलिए आतंकवादियों ने उन्हें मार दिया. '  उस समय भी प्रज्ञा के बयान से कोहराम मच गया था. यही प्रज्ञा ठाकुर वर्ष 2008 में हुए मालेगांव विस्फ़ोट के मामले में आरोपी हैं जिस में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे. प्रज्ञा इसी अपराध में अभी भी ज़मानत पर हैं. इन सब के अतिरिक्त भी वे अनेक बार साम्प्रदायिकता व वैमनस्य  फैलाने वाले फ़ायर ब्रांड बयान देती रही हैं. 

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एक ओर तो प्रज्ञा के बयान उनके संस्कारों व कथित 'देशभक्ति ' का परिचय कराते हैं,दूसरी ओर जिस राहुल को वह देश से निकाल फेंकने व 'विदेशी महिला' से उत्पन्न पुत्र होने के नाते उनके देशभक्त न होने जैसी निम्नस्तरीय भाषा का प्रयोग कर रही हैं वह पंडित मोतीलाल व जवाहर लाल तथा फ़िरोज़ गांधी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों व इंदिरा गांधी व राजीव गांधी जैसे शहीदों के वंशज हैं. राहुल गांधी ने अपने उन्हीं संस्कारों की वजह से वर्तमान समय में अपनी ज़िम्मेदारियाँ महसूस करते हुये देश को साम्प्रदायिक दुर्भावना को छोड़ एक सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से भारत जोड़ो यात्रा जैसे साहसपूर्ण व कठिन कार्य का ज़ोखिम उठाया. इस समय भी वे संसद से लेकर सड़कों तक विपक्ष की एकमात्र सबसे सशक्त आवाज़ हैं. ऐसे में इस बात पर चिंतन ज़रूरी है कि आख़िर  'राष्ट्र भक्ति ' के माप दण्ड हैं क्या ?  राहुल गांधी का विपक्षी नेता के नाते सरकार व सत्ता से सवाल करना या गाँधी के हत्यारे को महिमामंडित करना व शहीदों का अपमान करना ?

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