गोरखपुर में पुलिस बनी गुंडा: ट्रक ड्राइवर को बीच सड़क पर पीटा, CCTV में कैद खाकी की गुंडागर्दी

आजमगढ़ निवासी ट्रक ड्राइवर मनोज कुमार अपनी रोजी-रोटी के लिए ट्रक लेकर गोरखपुर जा रहा था। यह उसका रोज का काम था। लेकिन उस रात उसे नहीं पता था कि उत्तर प्रदेश की सड़कों पर रात में गाड़ी चलाना अब किसी संगीन जुर्म से कम नहीं रहा।
जैसे ही उसका ट्रक कौड़ीराम चौराहे पर पहुंचा, पुलिस ने उसे रोक लिया। ड्राइवर को लगा कि सामान्य चेकिंग होगी – शायद कागज देखे जाएंगे। लेकिन जो हुआ वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था।
पुलिस वालों ने मनोज को ट्रक से नीचे खींच लिया। न कोई पूछताछ, न कोई नोटिस, न कोई चेतावनी। फिर शुरू हुई बर्बर पिटाई। थप्पड़, लात, डंडे, घूंसे – जो हाथ में आया, उसी से मनोज पर हमला किया गया। वह बार-बार चिल्लाता रहा कि वह बेगुनाह है, लेकिन पुलिस को उसकी इंसानियत से कोई मतलब नहीं था।
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इस अमानवीय घटना का सबसे हैरान करने वाला पहलू यह था कि मनोज को पीटने के बाद उल्टा उसी पर “शांति भंग” की धारा लगाकर कोर्ट में पेश कर दिया गया। यानी जो मारा गया, उसी को जेल भेज दिया गया। क्या यही है कानून की रक्षा?
विडंबना यह है कि इस पूरी घटना की वीडियो फुटेज मौजूद है – सीसीटीवी में साफ देखा जा सकता है कि मनोज को बिना किसी कारण पीटा गया। इसके बावजूद पुलिस का रवैया टालमटोल वाला रहा। आला अधिकारियों से पूछे जाने पर बस इतना कहा गया – “जांच चल रही है।”
जांच या लीपापोती?
ऐसा नहीं है कि यह पहला मामला है। पिछले कुछ महीनों में यूपी पुलिस द्वारा ड्राइवरों की पिटाई के कई वीडियो सामने आए हैं। लेकिन न किसी दोषी पुलिसकर्मी पर सख्त कार्रवाई हुई, न किसी को सस्पेंड किया गया। यहां तो सस्पेंशन भी अफसरों के मूड पर निर्भर करता है, और न्याय बस एक मज़ाक बनकर रह गया है।
कानून का काम है सुरक्षा देना, लेकिन जब कानून के रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो आम नागरिक कहां जाए? मनोज का कसूर सिर्फ इतना था कि वह ट्रक लेकर नौकरी कर रहा था। अब अगर पुलिस की नजर में रात में काम करना जुर्म है, तो हर मजदूर, ड्राइवर, डॉक्टर, गार्ड को जेल में डाल देना चाहिए।
क्या अब यूपी में पुलिस का मतलब है – ‘मैं ही कानून हूं’?
आज यूपी की जनता सवाल कर रही है:
क्या ट्रक चलाना गुनाह है?
क्या पुलिस की वर्दी अब खुली छूट बन चुकी है?
क्या सीसीटीवी में रिकॉर्ड होने के बाद भी कार्रवाई न होना न्याय का मज़ाक नहीं?
क्या पीड़ित पर ही केस दर्ज करना पुलिस के अत्याचार को वैध ठहराता है?
गोरखपुर पुलिस पर ये सारे सवाल उठ रहे हैं, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई। दो दिन से पत्रकार वहां डटे हुए हैं, लेकिन पुलिस की चुप्पी डराने वाली है।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब सत्ता और कानून का संतुलन बिगड़ता है, तो सबसे पहले आम नागरिक ही पिसता है। अगर अब भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो यह संदेश जाएगा कि यूपी में अब अपराधी नहीं, पुलिस ही सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है।
यूपी सरकार और पुलिस प्रशासन को चाहिए कि इस मामले में त्वरित और पारदर्शी जांच कर दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करे। वरना आने वाला कल ऐसा होगा, जहां जनता अपराधियों से नहीं, पुलिस से डरेगी।