Budget 2023: आम आदमी को राहत दे बजट

Budget 2023: आम आदमी को राहत दे बजट
FM Nirmala Sitharaman budget 2023
-राजेश माहेश्वरी
संसद का बजट सत्र आगामी 31 जनवरी से प्रारंभ होने जा रहा है और बजट तैयार करने की प्रक्रिया भी अंतिम दौर में है. आम आदमी बेसब्री से बजट-2023 का इंतजार कर रहा है. आम आदमी ऐसे बजट की उम्मीद कर रहा हैं जो रोजगार के अवसर बढ़ाए, जरूरी वस्तुओं की कीमतों को कम करे, करों का बोझ घटाए और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मददगार साबित हो सके. बड़ा सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार आम आदमी की उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी?
 
बजट पर राजनीति और चुनावों की छाया से इंकार नहीं किया जा सकता. ऐेसे में राजनीति हितों के हिसाब से बजट को डिजाइन करने की परंपरा हमारे देश में रही है. इसलिए ये उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष 9 राज्यों के चुनाव होने के साथ ही चूंकि 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व केंद्र सरकार का ये आखिरी पूर्ण बजट होगा इसलिए आम जनता के लिए राहत का पिटारा खोला जा सकता है. जानकारों कहते हैं कि, बजट में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है, जो कि कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है. सरकार पर स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ाने के साथ-साथ छोटे व्यवसायों और किसानों को राहत देने का दबाव है. 
 
आम आदमी भी उन उपायों की उम्मीद कर रहा है जो आवास, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा को और अधिक किफायती बनाएंगे. इसके अलावा, सरकार से बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने की उम्मीद है, जो महामारी के कारण तेजी से बढ़ी है. आम आदमी ऐसी नीतियों की उम्मीद कर रहा है जो अधिक रोजगार के अवसर पैदा करेगी. साथ ही प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करेगी. सरकार को महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित छोटे व्यवसायों, कारीगरों और किसानों जैसे असंगठित क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है.
 
सरकार से आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के मुद्दे को भी हल करने की उम्मीद है, जिसने आम आदमी को मुश्किल में डाल दिया है. आम आदमी ऐसे उपायों की उम्मीद कर रहा है जो महंगाई को नियंत्रित करेंगे और आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को अधिक किफायती बनाएंगे. आम आदमी भी सरकार से ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद कर रहा है, क्योंकि अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग महामारी और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच की कमी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. सरकार को ऐसी योजनाओं के साथ आने की जरूरत है जो ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार लाएं और आजीविका के अधिक अवसर प्रदान करें.
 
जहां तक बात इनकम टैक्स की है तो ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि आबादी का बहुत ही छोटा हिस्सा उससे प्रभावित होता है लेकिन उपभोक्ता बाजार को ये तबका चूंकि प्रभावित करता है लिहाजा इसका ध्यान रखा जाना जरूरी है. और फिर इस वर्ग में कर्मचारियों की संख्या ज्यादा होने से जनमत पर भी ये असर डालता है. इसलिये उम्मीद लगाई जा रही है कि मोदी सरकार आयकर छूट के जरिये इसे राहत देगी. देश में दूसरे बड़े दबाव समूह के तौर पर किसान हैं. 
 
दो साल पहले चले लम्बे आन्दोलन के बाद सरकार ने किसानों के हित में अनेक निर्णय किये जिनमें समर्थन मूल्यों में वृद्धि प्रमुख थी. रही बात उद्योग जगत की तो सरकार किसी की भी हो उसके हितों की चिंता करती है क्योंकि अर्थव्यवस्था के पहिये को वही गति प्रदान करता है. लेकिन इन सबसे अलग हटकर बहुत बड़ी संख्या जनता के उस हिस्से की है जो स्वरोजगार से जुड़ा है या फिर निजी क्षेत्र में साधारण सी नौकरी करता है. व्यापारी वर्ग में भी ज्यादातर लघु और मध्यमवर्गीय ही हैं परन्तु ये वर्ग चूंकि संगठित नहीं है इसलिए सरकार के कानों तक अपनी आवाज नहीं पहुंचा पाता. उस दृष्टि से प्रधानमंत्री द्वारा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास नामक जो नारा दिया गया उसकी झलक आगामी बजट में दिखाई देगी, ऐसी उम्मीद सब कर रहे हैं. 
 
हर साल बजट आता है, तो नौकरीपेशा लोगों की नजर इस बात पर होती है कि उसको टैक्स में कोई छूट मिल रही है या नहीं. बीते कई सालों से इस मोर्चे पर मायूसी मिलती रही है. मध्यवर्ग में ये शिकायत बढ़ी है कि सबसे ज्यादा बोझ उसी पर है और सबसे ज्यादा टैक्स उसी को देना पड़ता है. हालांकि, अब भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण टैक्स छूट का वादा नहीं कर रहीं हैं. बस ये कह रही हैं कि मिडिल क्लास की तकलीफ वे समझ रही हैं.
 
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके भारत में वर्तमान कर ढांचा विकास के लिए ज्यादा से ज्यादा धन अर्जित करने के उद्देश्य पर टिका है. पहले टैक्स वसूलकर हाइवे बनाना और उसके बाद टोल टैक्स लगाकर उसकी कीमत वसूलना उसी सोच का प्रमाण है. लोक कल्याणकारी राज्य में संपन्न वर्ग से कर लेकर वंचित वर्ग के उत्थान पर खर्च करने का चलन होता है. लेकिन हमारे देश की जो कर प्रणाली है उसमें गरीब व्यक्ति को भी अप्रत्यक्ष तौर पर उन करों का भुगतान करना पड़ता है जो संपन्न वर्ग से अपेक्षित हैं. 
 
एक और अहम बिंदु यह है कि सरकार जिस सामाजिक सुरक्षा के नाम पर सरकारें अरबों खरबों खर्च करती हैं उससे व्यवसायी समुदाय वंचित है. जीवन भर तरह-तरह के करों से सरकार का खजाना भरने वाले व्यापारी के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी हो जाने पर उसके परिवार वालों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ता है. कोरोना के दौरान बड़ी संख्या में युवा व्यवसायी मृत्यु का शिकार हुए जिससे उनके आश्रितों का भविष्य अंधकारमय हो गया. किसी व्यापारी की अचानक मृत्यु होने पर उसके परिजनों को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा न मिलना अनुचित है. अपेक्षा है बजट में इस वर्ग के लिए ऐसी किसी योजना का समावेश होगा जिससे किसी अनहोनी के बाद उसके परिजन किसी तरह मोहताज न हों. 
 
विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना महामारी के प्रकोप के से भारतीय अर्थव्यवस्था राजकोषीय नतीजों से उबरना शुरू कर चुकी है. ऐसे में इस बजट से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में ठोस वृद्धि होने की उम्मीद है. केंद्रीय बजट में राजकोषीय प्रोत्साहन और स्पेशल स्कीम के जरिए इसे और मजबूत किया जा सकता है. केंद्र सरकार इस बजट में उन नीतियों को प्राथमिकता देगी जो बुनियादी ढांचे, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को लाभ पहुंचा सकती हैं और रिन्यूवेबल एनर्जी को बढ़ावा दे सकती है. ताकि देश को वैश्विक स्तर पर अपनी क्षमता का एहसास हो सके. देश में आत्मनिर्भर समाधान लाने के लिए प्रौद्योगिकी प्रदाताओं के बीच मैन्यूफैक्चरिंग इनवेस्टमेंट को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
 
कोरोना काल में चूंकि अर्थव्यवस्था डगमगा गई थी जिसकी वजह से सरकार ने अनेक रियायतें बंद कर दीं. यद्यपि गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न और निःशुल्क इलाज की सुविधा तो जारी है किन्तु रेल यात्रा में विभिन्न वर्गों को मिलने वाली छूट बंद है. विशेष तौर पर वरिष्ट नागरिकों के लिए तो ये सुविधा न्यायोचित है. इसी तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पेट्रोलियम कम्पनियों की मुनाफाखोरी घटाने पर इस बजट में ध्यान दिया जाना जरूरी है. वहीं सरकार को करों पहाड़ छोटा करते हुए आय बढ़ाने के सिद्धांत को अमल में लाना चाहिए. वर्तमान में करों की दरें सरकार के लिए भले ही लाभ का सौदा हों लेकिन उन्हें जनता पर बोझ कहना गलत नहीं होगा. सरकार को रोजमर्रा के नागरिकों की चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता के साथ आर्थिक विकास की आवश्यकता को संतुलित करना होगा.
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