Basti Vidhan Sabha Chunav 2022: टिकट की चाहत, राजनीतिक विरासत बचाने के लिए घर वापसी
Basti Chunav 2022: - दलबदलुओं को समेटने में सपा अव्वल - बहादुरपुर ब्लाक प्रमुख रामकुमार सपा में शामिल - त्रयम्बक नाथ पाठक, महेश सिंह सपा में फिर समायोजित

-भारतीय बस्ती संवाददाता- बस्ती. उत्तर प्रदेश (UP Election 2022)में चुनावी सुगबुगाहट शुरू होते ही नेताओं का अपने दलों से मोहभंग होने लगा है. दम घुटने की शिकायतों में हुई बढ़ोत्तरी को देखते हुए उनके समर्थकों के सामने नये दल की पैरोकारी करने में पसीना छूट रहा है. बस्ती में (Basti Vidhan Sabha Chunav 2022) इस साल मई में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में ही त्रयम्बक नाथ पाठक, महेश सिंह के दल बदलने की नींव पड़ गयी थी.
सत्ताधारी भाजपा के नाव पर सवार रहे दोनों नेताओं को ब्लॉक प्रमुख बनने की पूरी आस थी. मगर ऐन मौके पर टिकट बंटवारे में दोनों पूर्व ब्लॉक प्रमुखों के नाम गायब होते ही दोनों नेताओं और उनके समर्थकों ने जमकर हंगामा किया गया. इसके बावजूद दोनों नेताओं के क्षेत्र में कोई परिवर्तन न करके परसरामपुर और गौर ब्लॉक में उनके धुरविरोधियों को तरजीह दी गई. गौर ब्लॉक में महेश सिंह के सामने जटाशंकर शुक्ल और परसरामपुर में त्रयम्बक नाथ पाठक के सामने श्रीष पाण्डेय को पार्टी द्वारा टिकट देकर उतारा गया. भाजपा द्वारा आशीर्वाद प्राप्त नेताओं को ब्लॉक प्रमुख चुनाव में भले ही विजयश्री मिल गयी मगर उन दोनों ब्लॉकों में जीते हुए प्रत्याशियों और पार्टी के सामने दो बड़े स्थानीय नेताओं के विरोध की पटकथा लिखी जा चुकी थी.
दोनों नेताओं के पुराने दल में जाने के कयास लगाये जा रहे थे. जिसे अमलीजामा अब पहनाया गया. समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष महेन्द्रनाथ यादव ने बीते रविवार को सांसद हरीश द्विवेदी के प्रतिनिधि केके दुबे के करीबी बहादुरपुर ब्लॉक प्रमुख रामकुमार को पार्टी में शामिल करा दिया. सपा द्वारा चली गयी इस चाल से भाजपा मठाधीशों में हड़कंप मच गया. भाजपा के ब्लॉक प्रमुख द्वारा सपा की सदस्यता लेते ही लखनऊ से बस्ती तक के राजनीतिक घटनाक्रम में गर्मी आ गयी. सपा जिलाध्यक्ष के बढ़ते कद को देखते ही दूसरे दिन पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चैधरी के नेतृत्व में त्रयम्बक नाथ पाठक, महेश सिंह कलहंस समेत अन्य नेताओं ने अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ले ली.
सूत्रों की मानें तो चुनाव पूर्व दल बदलने की होड़ में और नेता लाइन में लगे हुए है. टिकट की चाहत और राजनीतिक विरासत बचाये रखने के चक्कर में नेताओं का अब अपने पुराने दलों से मोहभंग होकर दम घुटने का सिलसिला शुरू हो चुका है. देखना दिलचस्प होगा की और कितने नेता घुटन के शिकार होकर पार्टियों को बाय-बाय कहते है.