यूपी में अब इस रूट पर लैपटॉप से चलाई जाएंगी ट्रेन !, इस जिले में सबसे पहले होगा इस तकनीक का उपयोग
सोने की चिड़िया भारत का सपना साकार होता दिखाई दे रहा है। दुनिया भर में विभिन्न आविष्कारकों को उच्च गति परिवहन एकस्व अधिकार की अनुमति प्रदान की गई। रेलवे में सुरक्षा बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इससे ट्रेन ऑपरेटरों को रीयल.टाइम अलर्ट मिलते हैं। इससे उन्हें किसी तरह की रुकावट होने पर तुरंत एक्शन लेने में मदद मिलती है। अब लैपटॉप से भी ट्रेनें संचालित की जा सकेंगी। हाई मैट्रिक्स का सबसे पहले झांसी में प्रयोग होगा।
किसी भी परिस्थिति में संचालन प्रभावित नहीं होगा। ट्रेनों का संचालन किसी भी परिस्थिति में बाधित न हो इसके लिए भारतीय रेल में पहली बार हाई मैट्रिक्स तकनीक का इस्तेमाल झांसी में किया जा रहा है। वीरांगना लक्ष्मीबाई झांसी स्टेशन से लेकर यार्ड तक यह तकनीक स्थापित की जा रही है। इसका काम मार्च 2025 में पूरा कर लिया जाएगा। भारतीय रेल में पहली बार इस्तेमाल होने वाली हाई मैट्रिक्स तकनीक झांसी स्टेशन और यार्ड में स्थापित की जा रही है।इसका रेल संचालन में सीधा लाभ होगा। इससे किसी भी विषम परिस्थिति में ट्रेनों का संचालन सुरक्षा के साथ बहाल रखा जा सकेगा। अगले साल इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा। ट्रेनों की तकनीक पर काम करने वाली संस्था आरडीएसओ (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड्स अऑर्गनाइजेशन) ने हाई मैट्रिक्स तकनीक को परखने के बाद उसे मुफीद घोषित किया है। इसके बाद ही मंडल में इसकी स्थापना का कार्य शुरू हुआ।
इसमें पूरी सिग्नलिंग प्रणाली ऑप्टिकल फाइबर केबल पर आधारित होगी। इसमें ट्रेनों के संचालन में इस्तेमाल होने वाले भारी भरकम उपकरण, सिग्नल केबिन और रेल संचालन के लिए स्थापित होने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर की भी आवश्यकता नहीं होगी। इन टर्मिनल से आपात स्थिति में कंट्रोलर को केवल अपना लैपटॉप जोड़ने की आवश्यकता होगी, जिसके बाद ट्रेनों का आवागमन सुचारू हो जाएगा। परियोजना इकाई की ओर से 36 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित की जा रही तकनीक को झांसी स्टेशन और वार्ड में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर स्थापित किया जा रहा है। इसकी सफलता के बाद इसे पूरे भारतीय रेल में लागू कर दिया जाएगा।
इसके बाद अन्य मंडलों में भी यह तकनीक स्थापित की जाएगी। ट्रेनों की रफ्तार बढ़ाकर 160 किलोमीटर प्रतिघंटा तक पहुंचाने के लिए भारतीय रेल पटरी से लेकर सिग्नल तक में बदलाव कर रही है। इसी बदलाव के क्रम में रेलवे अब अपनी पुरानी कॉपर आधारित सिग्नल केबल को भी आधुनिक हाई मैट्रिक्स तकनीक से बदलने जा रहा है।