OPINION: आतंक के पर्याय बगदादी का खात्मा

OPINION: आतंक के पर्याय बगदादी का खात्मा
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-संतोष कुमार भार्गव
दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकवादी बगदादी मारा जा चुका है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बगदादी के मारे जाने की पुष्टि की है. ट्रंप ने कहा, दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी अबु बकर अल-बगदादी को एक ऑपरेशन में मार दिया गया है. वह इनसान की खाल में एक भयानक और क्रूर शैतान था. उसके आतंकियों ने 30 से ज्यादा देशों पर 150 से ज्यादा आतंकी हमले किए थे. वह और उसके दरिंदों ने 70,000 से अधिक हत्याएं की और कराई थीं. किसी का सिर कलम कर दिया गया, किसी को पिंजरे में कैद कर आग की लपटों के हवाले कर दिया गया, तो कहीं विस्फोटक धमाके कर इनसानी लाशें बिछा दी गईं. उसने खुद को ‘खलीफा’ घोषित किया था, लेकिन वह आतंक और पाशविक हत्याओं का ‘खलीफा’ जरूर था. अंततः उसकी भी मौत आई, तो उसकी आंखों में भी खौफ था, दहशत थी. उसने भी जिंदगी की भीख मांगी. कौन उस ‘जल्लाद’ को माफ करता?

बगदादी का जन्म 1971 में इराक के समारा शहर में हुआ था. उसका असली नाम ‘इब्राहिम अवाद इब्राहिम अली मुहम्मद अल बद्री अल सामाराई’ है. शुरुआत में बगदादी मौलवी हुआ करता था. कुछ लोगों का दावा है कि 2003 के पहले सद्दाम हुसैन के समय ही बगदादी आतंकवादी बन गया था. लेकिन दूसरा दावा है कि कैंप बुक्का में अमेरिकी हिरासत के दौरान वह आतंकवादी बना. बगदादी बाद में अलकायदा के इराकी डिवीजन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक से जुड़ गया और 2010 में इसका प्रमुख बन गया.

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अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान के मुताबिक, वह रोया, चीखा-चिल्लाया, गिड़गिड़ाया. जब कोई चारा शेष नहीं था, तो उसने आत्मघाती जैकेट के जरिए खुद को उड़ा लिया. वह कुत्ते और कायर की मौत मरा. अमरीका की ‘डेल्टा फोर्स’ के कमांडोज ने दो घंटे के आपरेशन में ही आईएसआईएस के सरगना अबू बकर बगदादी को ‘खाक’ कर दिया. इसमें प्रशिक्षित कुत्तों की भी भूमिका शानदार रही, जिन्होंने बगदादी की घेरेबंदी की. इस बार खबर सौ फीसदी पक्की है, क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति पूरे आपरेशन के चश्मदीद रहे और पहली बार ‘व्हाइट हाउस’ ने खुलासा किया है.

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अमरीका के प्रशिक्षित, हुनरमंद, साहसी कमांडो की टीम ने अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतारा था और अमरीका ने ही दुनिया के सबसे खौफनाक और दरिंदे आतंकी को चिथड़े-चिथड़े होने पर विवश किया. आपरेशन में बगदादी की दो बीवियां और तीन बच्चे भी विस्फोटक धमाकों ने भस्म कर दिए. अपनी जिंदगी के आखिरी पलों में बगदादी कितना डरा हुआ और कांपता हुआ होगा, उसके ब्यौरे खबरों में स्पष्ट हो चुके हैं, लेकिन हमारे लिए यह सवाल सबसे गौरतलब है कि पाकपरस्त बगदादी-हाफिज सईद और मसूद अजहर बगैरह-कब समाप्त होंगे? बगदादी खत्म हुआ है, लेकिन आतंकवाद का खात्मा कब होगा?

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हाफिज और मसूद ने भी बगदादी की तरह आतंकवाद की एक जमात खड़ी की है, कई आतंकी हमले कराए हैं, सीमापार से जारी आतंकवाद और छाया-युद्ध के विशेष सूत्रधारों में भी वही हैं. उन्हें कब ढेर किया जा सकेगा? क्या हम भी अमरीकी रणनीति की तर्ज पर कोई घेराबंदी कर, हमला कर सकते हैं? क्या हमारे कमांडो और व्यूह-रचना की व्यवस्था भी इतनी सक्षम है? हमें अपनी सेना और सरकार पर कोई भी संदेह नहीं है. अमरीका ने भी पलक झपकते बगदादी को नहीं धर दबोचा. बीते 5 साल से उसके ‘साम्राज्य’ और लड़ाकों पर हमले जारी थे. बगदादी के मारे जाने की खबर कई बार आई, लेकिन वह जिंदा रहा. इस बार उसके करीबी, भरोसेमंद राजदार ने ही उसे मौत की दहलीज तक पहुंचा दिया.

हाफिज और मसूद की सक्रियता और ठिकाने हमसे छिपे नहीं हैं. संभव है कि हमारी सरकार और सेना किसी रणनीति पर गंभीरता से विचार कर रही होंगी! उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट सरीखे हमले करके हमने साबित किया है कि हमारी वायुसेना और कमांडो किसी भी आपरेशन में सक्षम हैं. अमरीका ने भी एक लंबे अंतराल तक ड्रोन, सेटेलाइट के जरिए बगदादी की सक्रियता पर निगरानी रखी. बेशक हमारी और अमरीकी एजेंसियों की खुफिया सूचनाओं में बहुत फर्क है, लेकिन जो आतंकवाद हमारे पड़ोस में मौजूद है, पाला-पोसा जा रहा है, उसका खात्मा तो हमारी प्राथमिकता है. उधर बगदादी कांड किया गया, इधर कश्मीर के सोपोर इलाके के बस अड्डे पर ग्रेनेड से हमला किया गया, जिसमें 20 मासूम लोग जख्मी हो गए. कुछ की स्थिति गंभीर बताई गई है.

अमेरिका के एक भी सैनिक को क्षति न पहुंचने का अर्थ था कि विरोध बड़ा नहीं था. ओसामा को जब पाकिस्तान के एबटाबाद में नेवी सील के जवानों ने उसके सुरक्षित तीन मंजिले घर में उतरकर मारा था, तो वहां भी विरोध के लिए कोई नहीं था. अमेरिका ने बगदादी पर 2.5 करोड़ डॉलर (177 करोड़ रुपये) का इनाम रखा था. हालांकि, इसके पहले भी ऐसे कम-से-कम आठ बार उसे मारे जाने की बात की गयी थी. हर बार का दावा गलत निकला. अमेरिका के पूर्व रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने 22 जुलाई, 2017 को उसके मारे जाने के दावों को खारिज करते हुए कहा था- मेरा मानना है कि बगदादी जिंदा है और मैं तभी मानूंगा कि उसकी मौत हो गयी है, जब हमें पता चलेगा कि हमने उसे मार दिया है.

गदादी ने एक इस्लामिक मॉडल को स्थापित करने का प्रयास किया, जिसे पूरी दुनिया में फैलाना ही उसका मुख्य मकसद था. वहीं एक पहलू यह भी कि साम्राज्यवादी ताकतों ने आईएस को प्रशिक्षण, हथियार व पैसा देकर शियाओं के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. जब वह बेकाबू हो गया तो उसी को आतंक का क्रूर चेहरा बताकर उसके खात्मे को अभियान चलाया गया. इसके बावजूद आईएस के मजबूत संगठन और वैचारिक आकर्षण ने पूरी दुनिया के युवाओं को भ्रमित किया. केवल अफ्रीका व एशिया के देशों से ही नहीं, बल्कि तमाम यूरोपीय व अमेरिका देशों के युवा इस खूनी संगठन में शामिल होने पहुंचे. ऐसे में यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि बगदादी के खात्मे से आईएस खत्म हो जायेगा.

संगठन की शूरा काउंसिल नया नेतृत्व विकसित करेगी. इसके लड़ाके दुनिया के विभिन्न संगठनों में शामिल होकर मानवता के लिए चुनौती पैदा कर सकते हैं. जैसे कि अलकायदा के लड़ाके अफगानिस्तान और अफ्रीका में आतंक को सींचने में लगे हैं. पूरी दुनिया में  उसके समर्थक काले झंडों के साथ नजर आते हैं. बहरहाल, बगदादी का अपनी ही मांद में दर्दनाक अंत यह जरूर बताता है कि आतंक का खात्मा भी खौफनाक ही होता है. हमें हर तरह की कट्टरता व नफरत को खत्म करना होगा ताकि दूसरा बगदादी पैदा न हो.

बहरहाल यह अच्छा संकेत है कि जो देश अभी तक आतंकी संगठनों के कथित जेहाद का समर्थन किया करते थे, उनमें से ज्यादातर की सेनाएं अब आतंकियों के खिलाफ मोर्चेबंद हैं. सऊदी अरब की फौज यमन में, तुर्की की सेना सीरिया में हमलावर हैं. ईरान भी जंग में उतर चुका है. बेशक आईएसआईएस कमजोर हुआ है और अब बगदादी के बाद उसके टुकड़े भी संभव हैं, लेकिन ये जेहादी मुहिम एक तरह की मानसिकता फैलाते रहे हैं. हमारे देश से तो कुछ सौ नौजवान प्रभावित होकर आईएसआईएस में शामिल हुए हैं, लेकिन अमरीका, यूरोप और अरब देशों से हजारों युवा आईएस की वैचारिकता से प्रभावित होकर उससे जुड़े हैं. ऐसे ही हाफिज और मसूद के पैरोकार कश्मीर में मौजूद हैं. लिहाजा इन सरगनाओं के खिलाफ आपरेशन कर उनका वजूद ही खत्म करना होगा. क्योंकि आतंकवाद केवल भारत ही नहीं दुनिया भर के देशों के लिये बड़ी चुनौती बन चुका है.

-मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं. यह उनके निजी विचार हैं.

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