OPINION: कब तक पूर्व की सरकारों पर दोष मढ़ते रहेंगे हमारे माननीय?

इन दिनों एक नए किस्म का चलन शुरू हो चुका है. अगर आप जिक्र आज का करेंगे तो लोग आपसे उस समय के बारे में पूछने लगेंगे या बताएंगे जब आप या तो इस धरती पर आए ही नहीं थे, या फिर होश संभाला ही नहीं था. कुछ ऐसा ही मंगलवार को एक बार फिर देखने को मिला.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)में बिजली (Electricity) के दाम बढ़ा (Electricity rate) दिए गए. करीब 10-12 फीसदी बिजली का रेट, कॉमर्शियल और घरेल कनेक्शन के लिए बढ़ाय गया.
अब उस पर समाजवादी पार्टी (Samajwadi party)और बहुजन समाज पार्टी (Bahujan samaj party) के नेताओं ने सवाल किए तो कहा गया यह पूर्व की सरकारों का दोष है क्योंकि उनके शासनकाल में ‘भ्रष्टाचार’ था.
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Electricity rate पर श्रीकांत शर्मा का यह बयान
उर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा (Shrikant Sharma) के इस बयान को किस संदर्भ में स्वीकार या खारिज किया जाये, यह कई लोगों के समझ के परे हैं.
उत्तर प्रदेश में बिजली (Electricity In Uttar pradesh) के दाम बढ़ाए (Electricity rate in up)जाने से राज्य के मध्यम वर्ग पर खास असर पड़ेगा.
अक्सर हमने देखा है कि विधानसभा या लोकसभा चुनाव के बाद देश या प्रदेश में जिस भी पार्टी की सरकार बनती है वह यह जरूर कहती है कि पहले की सरकार उन्हें ‘विरासत’ के तौर पर खाली खजाना दिया, ऐसे में विकास कार्यों को रफ्तार पकड़ने में समय लगेगा.
जनता कर लेती है स्वीकर
जनता यह आसानी से स्वीकार भी कर लेती है कि हां, वाकई ऐसा कुछ होगा. सरकार बनने के बाद पहले विधानसभा सत्र में अनुपूरक बजट पेश किया जाता है जिसके बाद औपचारिक तौर से राज्य में विकास को रफ्तार पकड़ लेना चाहिए. हालांकि यह नहीं सका.
सरकार बनने के करीब ढाई साल बाद भी अगर कोई पूर्व की सरकारों को बिजली का दाम बढ़ाने के लिए दोष दे रहा है तो इससे बड़ा मजाक जनता के लिए नहीं हो सकता.
आखिर उन सरकारों के मंत्रियों के बयानों पर कैसे भरोसा कर लिया जाये जो पहले दिन से विकास के नये आयाम तय करने की शुरुआत कर चुकी थी.
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आपने देखा होगा कि साल 2017 के मार्च में उत्तर प्रदेश की सरकार में जब नई कैबिनेट ने शपथ ली और अगले दिन मंत्री अपने-अपने दफ्तरों में पहुंचे तो खबरें बनीं कि फलाना मंत्री जी इतना पहले आ गये कि दफ्तर का कोई अधिकारी नहीं आया था, जिसके बाद उन्हें फटकार लगाई गई.
अगर पहले ही दिन से राज्य की सरकार एक्शन मोड में थी तो आखिर ढाई साल बाद इससे पहले की सरकार को दोष क्यों देना?
अगर कोई भी राजनीतिक दल यह उम्मीद करता है कि उसके नेता से सवाल न किया जाए क्यों कि वह तो बहुत ज्यादा काम कर रहे हैं तो क्या यह एक किस्म का जनता पर दबाव नहीं बन जाता कि अभी जो हो रहा है उसे होने दें? कुछ महीने बीत जाए फिर सरकार से सवाल करें!
दरअसल, बीते कुछ साल से यह ट्रेंड चल पड़ा है कि अगर आप बात विकास और उसकी रफ्तार की करेंगे तो तुरंत पूर्ववर्ती सरकार से कंपैरिजन कर दिया जाता है.
यह कंपैरिजन सरकार बनने के कुछ महीनों बाद तक तो काम चलाऊं होता है लेकिन इस तरह ढाई साल बाद भी पूर्व की सरकारों पर आरोप लगाना, यह कहीं न कहीं साबित करता है कि अमुक सरकार भी उन मसलों पर फेल रही जिसके लिए प्रचण्ड बहुमत से उन्हें चुना गया था.
यहां पढ़ें Electricity rate पर पूरा बयान
उत्तर प्रदेश के उर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने जब शपथ ली तो उन्होंने कहा कि राज्य के कई जिलों को वीआईपी स्टेटस होने के चलते 24 घंटे बिजली दी जाती थी, अब वह सभी में समान वितरित होगी. लेकिन क्या ऐसा वाकई हो रहा है?
मंगलवार को जब बिजली के दाम बढ़े (Electricity rate) तो श्रीकांत शर्मा ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर दावों की झड़ी लगा दी. उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने बिजली के बढ़े हुए दामों से गरीबों को मुक्त रखा.
पहले की सरकारों पर दोष देते हुए श्रीकांत ने लिखा कि बिजली के दामों पर आंशिक बढ़ोतरी इसलिए की गई क्यों पहले की सरकारों ने परिस्थितियां खराब हो गईं थीं. यह समझ के परे हैं अगर सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद भी राज्य के मंत्री को पहले की सरकारों पर दोष ही देना था तो आखिर जनता ने उन्हें क्यों चुना?
न उड़ाएं खिल्ली
बेहतर हो कि सरकारें और उसके काबीना मंत्री गण 5 साल की आधी से ज्यादा समयावधि पूरी हो जाने पर ऐसे बयान तो ना हीं दें जो उनकी खिल्ली तो उड़ाए ही साथ ही जनता को भी सोचने को मजबूर कर दे. सरकारें जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और ऐसे बयानों से बचे जो केवल चुनावी रैलियों में ही गुंजायमान होने लायक हों.
सरकारें अपनी तुलना पूर्व की सरकारों से करे तो अच्छी बात है और जनता में सही संदेश जाएगा लेकिन हर बात में अपोजिशन पर दोष मढ़ देना यह दिखाता है कि कुछ और कहने को नहीं मिला तो यही कह दिया.
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