अमेरिका के विस्तारवादी षड्यंत्रों को भुगत रहा है यूक्रेन

अमेरिका के विस्तारवादी षड्यंत्रों को भुगत रहा है यूक्रेन
russian and ukraine war

संजीव ठाकुर
अभी फिर वर्तमान में अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन को बड़ी मदद करने को तैयार हो गए हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक यूक्रेन के यात्रा के दौरान कई लाखों पाउंड और हथियारों की मदद का वादा कर आए हैं. जाहिर तौर पर यूक्रेन का हौसला काफी बढ़ा हुआ है हालाकी यूक्रेन ने रूस के साथ युद्ध में भारी तबाही का सामना करना पड़ा है नुकसान दोनों देशों को बहुत हुआ है वैसे भी युद्ध में कुछ हासिल होता नहीं है पर युद्ध रोकने के बदले अमेरिका ब्रिटेन और यूरोपीय देश अभी भी यूक्रेन को उकसाने में लगे हुए जो विश्व शांति के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कभी भी अपनी सनक में परमाणु बम का इस्तेमाल कर पूरी मानव जाति को खतरे में डाल सकते हैं,ऐसे में भारत ही एक ऐसा देश है जो युद्ध रोकने के लिए दोनों देशों की मदद कर सकता है.

रूस, यूक्रेन युद्ध तात्कालिक कारणों से नहीं हो रहा है, इसके पीछे अमेरिका की षड्यंत्र वादी नीतियों की कई साजिशें अंतर्निहित हैं. अमेरिका सदैव रूस को वैश्विक जन मंच पर नीचा दिखाना चाहता रहा है. जिस तरह पूर्व में सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक रूस( यू,एस.एस.आर) के उसने कई टुकड़े करवाएं थे, उसी मंसूबों को लेकर आगे बढ़ते हुए उसने लगभग 26 स्थानों पर जैविक बम बनाने के केंद्र अलग-अलग देशों में स्थापित कर रखे हैं, ताकि जब भी मौका लगे अमेरिका उस देश से दुश्मन देशों पर जैविक हथियारों से हमला कर उनकी स्थिति कमजोर कर अपनी नीतियों का गुलाम बना सके .

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यूक्रेन में भी तीन महत्वपूर्ण स्थानों में अमेरिका जैविक हथियार बनाने के केंद्र चला रहा था. निश्चित तौर पर रुस को इसकी जानकारी लग चुकी थी. इन जैविक हथियारों का प्रयोग यूक्रेन में रखने का अमेरिकी मकसद सिर्फ और सिर्फ यही था कि इन हथियारों का प्रयोग या तो वह बेलारूस अथवा रूस पर करना चाह था. रूस अमेरिका के इस षड्यंत्र को अच्छे से समझ चुका था. दूसरी तरफ यूक्रेन को अमेरिका तथा यूरोपीय संगठन और नैटो की दोस्ती पर अंधा भरोसा था.

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वह रूस की चेतावनी को लगातार अनसुनी कर नैटो देशों सदस्य बनने का मैराथन प्रयास कर रहा था. रूस को यूक्रेन तथा यूक्रेन में रहने वाले पूर्व रूसी नागरिकों की यह हरकत नागवार गुजरी. रूस पिछले कई वर्षों से यूक्रेन को यूरोपीय देशों तथा नेताओं से संपर्क न रखने के लिए तथा अमेरिकी नियंत्रण को यूक्रेन से हटाने के लिए यूक्रेन के हुक्मरानों को चेतावनी देता रहा है. पर व्लादीमीर जेलेंस्की के राष्ट्रपति बनने के बाद यूक्रेन की रूस विरोधी हरकतें तथा प्रतिक्रिया तेज होकर अमेरिकी समर्थन में ज्यादा होने लगी. अमेरिका रूस पर दबाव डालने के लिए यूक्रेन को अपना सामरिक अड्डा बनाने के षड्यंत्र के तहत यूक्रेन की लगातार आर्थिक सामरिक मदद कर रहा था. जाहिर तौर पर रूस अमेरिका की हरकत को पिछले कई वर्षों से पैनी नजर रख यह अनुभव कर रहा था कि अमेरिका के रूस के प्रति इरादे ठीक नहीं हैं.

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रूस ने पिछले कई वर्षों से यूक्रेन को संभलने तथा अमेरिका से अलग होने की समझाइश भी दी थी. जेलेंस्की ने रूस में रूसी भाषा पर प्रतिबंध लगाकर रूस को और क्रोधित कर अपना घोर विरोधी बना लिया था. जिसकी परिणति आज यूक्रेन बहुत बुरी तरह से भुगत रहा है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने राष्ट्र के विभाजन का दर्दनाक स्वरूप देखा था .वह अब रूस को फिर से उसी रूप में संयुक्त करना चाहता है .रूस ने सदैव यूक्रेन को नाटो देशों का सदस्य न बनने देने पर अपने वीटो पावर का इस्तेमाल किया.

दूसरी वजह यह भी थी कि यूक्रेन से होकर जर्मनी तक रूस की गैस तथा तेल की पाइप लाइन बनाकर वह यूरोपीय देशों को कच्चा तेल तथा गैस सप्लाई बड़े आर्थिक आधार पर कर रहा था. तीसरी वजह रूस यूक्रेन युद्ध की यह रही कि रूस ने सदैव यूक्रेन को चेतावनी दी थी कि अमेरिका को यूक्रेन में सामरिक महत्व का अड्डा ना बनाने दिया जाए जाहिर तौर पर यूक्रेन के सारे प्रशासन पर अमेरिका के इशारे पर गतिविधियां निर्धारित की जाती रही हैं. इससे रूस को अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आने लगा. इसके अलावा बाहुबली रूस यूक्रेन को सबक सिखाने के साथ यूरोपीय देशों तथा अमेरिका को भी सबक सिखाना चाहता है.

20 दिनों के यूक्रेन से युद्ध में रूस ने अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा एवं अन्य यूरोपीय देशों को यह बहुत बेहतर तरीके से समझा दिया है कि रूस अभी भी सुपर पावर है एवं आर्थिक प्रतिबंधों से उस पर कोई तात्कालिक प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. पर यह तो निश्चित हो गया की यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की सारी भ्रांतियां, भ्रम एवं मुगालता इस युद्ध की विभीषिका और बड़े आर्थिक नुकसान से दूर हो गया कि मौका पड़ने पर रूस और नैटो देश के साथ अन्य यूरोपीय देश उसको खुल कर सैन्य मदद करेंगे पर ऐसा कुछ हुआ नहीं. ये सारे देश यूक्रेन को युद्ध लड़ते देख सिर्फ बाहर खड़े होकर तमाशाबिन बने रहे,और सिर्फ उकसाने का काम ही करते रहे, किसी ने भी इस युद्ध में यूक्रेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रूस के विरुद्ध मैदान में युद्ध करने की हिम्मत नहीं दिखाई.

ये तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की और वहां की आम जनता का साहस, आत्मविश्वास एवं लड़ने की अदम्य इच्छा शक्ति के कारण ही रूस की सेना के विरुद्ध 8 माह से लड़ाई लड़कर टिके हुए हैं. अब समझौते के लिए रूस ने कड़ी 4 प्रतिबंधात्मक शर्तें रख दी हैं जिससे यूक्रेन पूरी तरह अमेरिका, नेटो देश तथा यूरोपीय देशों से अलग-थलग पड़ कर रूस की इच्छाओं के अनुरूप भविष्य तय करेगा. यूक्रेन सिर्फ अमेरिकी विस्तार वादी षड्यंत्र तथा उसके द्वारा रूस के विरुद्ध की गई अन्य साजिशों का खामियाजा भुगत रहा है और जान-माल तथा बड़े आर्थिक नुकसान को झेल रहा है.

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