UP की पुलिस कर रही है गुंडागर्दी, अब तो योगी जी को ही करना होगा इलाज!

यह पूरा मामला एक रोडवेज बस का है जो सामान्य रूप से सड़क पर चल रही थी। लेकिन देखते ही देखते वह बस एक बॉक्सिंग रिंग में बदल गई। फर्क सिर्फ इतना था कि यहां लड़ने वाले कोई बाहरी उपद्रवी नहीं, बल्कि खुद पुलिसवाले थे — यानी वही जो संविधान की रक्षा की शपथ लेते हैं।

हमीरपुर के राठ कोतवाली में तैनात दो सिपाही — बिंद मुलायम और रामकृष्ण — एक आरोपी को कोर्ट लेकर जा रहे थे। उन्होंने राठ डिपो की एक बस में सफर करना शुरू किया। लेकिन बस में सीट नहीं मिली, तो दोनों सिपाहियों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। न तो टिकट लिया गया और न ही मर्यादा का पालन किया गया।
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इस दौरान कुछ यात्रियों ने जब घटना का वीडियो बनाना शुरू किया, तो सिपाहियों ने उनके मोबाइल छीनने की भी कोशिश की। साफ था कि वे अपनी गुंडई को उजागर नहीं होने देना चाहते थे।
घटना के बाद सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद हमीरपुर की एसपी डॉ. दीक्षा शर्मा ने तुरंत मामले का संज्ञान लिया और दोनों सिपाहियों को लाइन हाजिर कर दिया। हालांकि आम भाषा में कहें तो यह सिर्फ एक अस्थायी कार्रवाई है — न कोई एफआईआर, न सस्पेंशन और न ही चार्जशीट।
कंडक्टर सौरभ कुमार ने बताया कि सीट को लेकर विवाद हुआ, लेकिन उन्होंने कोई बदतमीजी नहीं की। फिर भी पुलिसवालों ने बर्बरता से पीटा। उनका कहना है कि अब उन्हें डर लगता है कि टिकट मांगने पर फिर मार न खानी पड़ जाए।
इस पूरे घटनाक्रम में एक गंभीर सवाल उठता है — क्या अब वर्दी ही सबसे बड़ा 'टिकट' बन गई है? क्या कानून के रक्षक ही कानून से ऊपर हो चुके हैं?
पहले जब लोग पुलिस को देखते थे, तो एक सुरक्षा का भाव मन में आता था। लेकिन अब डर लगने लगा है कि कहीं बस में सीट न मिलने पर थप्पड़ न पड़ जाए।
हमीरपुर की यह घटना साफ दर्शाती है कि कुछ पुलिसकर्मियों में अनुशासन और संवेदना का अभाव है। और सबसे दुखद बात यह है कि इस तरह की घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं, बल्कि आम होती जा रही हैं।
अब ज़रूरत है सख्त कार्रवाई की, ताकि पुलिस में बैठे ऐसे लोगों को यह एहसास हो कि वर्दी कोई 'छूट' नहीं, बल्कि एक 'ज़िम्मेदारी' है।
सरकार और पुलिस प्रशासन से जनता अब यही जानना चाहती है कि आम नागरिक की इज्ज़त और सुरक्षा की ‘सीट’ इस सिस्टम में कब रिज़र्व होगी?