155 साल पहले बना था जिला, जानें किसने रखा था नाम बस्ती और क्या है इसका इतिहास

बस्ती (Basti News). उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) स्थित बस्ती (Basti District) में फरवरी 2020 में जिला प्रशासन द्वारा राज्य के राजस्व परिषद को इस आशय की रिपोर्ट भेजी गई कि जिले का नाम बदल कर वशिष्ठ नगर (Vashisht Nagar) या वशिष्ठी (Vashishti) करने के लिए कम से कम 1 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे कि जल्द ही जिले का नाम बदल दिया जाएगा. हालांकि राजस्व बोर्ड ने जिला प्रशासन की रिपोर्ट पर आपत्ति जता दी और कहा कि इस प्रस्ताव पर फिर से विचार करें. आज 6 मई है यानी बस्ती का स्थापना दिवस. आइए हम आज के दिन आपको आपके जिले से रुबरु कराते हैं.
क्या आपको इस बात की जानकारी है कि आखिर बस्ती का पूरा इतिहास (History Of Basti Uttar Pradesh) क्या रहा है? अगर नहीं तो आइए हम आपको बताते हैं बस्ती का इतिहास क्या है और क्यों यह मांग की जाती रही है कि जिले का नाम बदल दिया जाय.
माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और उनके तीन अन्य भाईयों, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म के लिए गुरु वशिष्ठ ने राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था. यहां गुरु वशिष्ठ का आश्रम था. इस जगह को बाद में मखौड़ा के नाम से जाना गया जहां आज भी साल में एक बार गंगा दशहरा का मेला भी लगता है.
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हर्रैया के मखौड़ा में हुआ था पुत्रेष्टि यज्ञ
वर्तमान में हर्रैया तहसील स्थित मखौड़ा धाम के बारे में कहा जाता है कि यह बस्ती जिले में के सबसे प्राचीन स्थानों में से एक है जहां राजा दशरथ ने महर्षि वशिष्ठ की सलाह पर ऋषिश्रिंग की मदद से पुत्रेष्टि यज्ञ किया था. मान्यता है कि दशरथ और कौशल्या की बेटी जिनका नाम शांता है, जो ऋषिश्रिंग की पत्नी थीं. यज्ञ के बाद कुंड से बाहर खीर का बर्तन निकला और ऋषिश्रिंग ने दशरथ को खीर का बर्तन दिया, जिसे उन्होंने रानियों के बीच वितरित करने की सलाह दी.
कौशल्या ने आधी खीर खा ली. सुमित्रा ने इसका एक चौथाई खाया. कैकेयी ने कुछ खीर खाया और और शेष को सुमित्रा को वापस भेज दिया जिसने खीर को दूसरी बार खाया. कौशल्या ने राम को, कैकेयी ने भरत सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया. यहाँ पर धार्मिक मंदिर रामरेखा मंदिर भी इस प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान के समीप है.
बस्ती के इतिहास की जानकारी
प्राचीन काल में बस्ती को भगवान राम के गुरु वशिष्ठ ऋषि के नाम पर वाशिष्ठी के नाम से जाना जाता रहा. कहा जाता है कि उनका यहां आश्रम था. अंग्रेजों के जमाने में जब यह जिला बना तो निर्जन, वन और झाड़ियों से घिरा था. लोगों के प्रयास से यह धीरे-धीरे बसने योग्य बन गया. वर्तमान नाम राजाकल्हण द्वारा चयनित किया गया था.
उन्होंने लिखा है- यह बात 16वीं सदी की है. सन् 1801 में यह तहसील मुख्यालय बना और 6 मई 1865 को गोरखपुर से अलग होकर नया जिला मुख्यालय बनाया गया.’
1865 में बस्ती बना जिला
आपको बता दें सन् 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बना और फिर 6 मई 1865 को जनपद मुख्यालय बनाया गया. इसके बाद सन् 1988 में उत्तरी हिस्से को काटकर सिद्धार्थनगर जिला बनाया गया जिसे पहले डुमरियागंज नाम से जाना जाता था. इस जिले में बांसी और नौगढ़ भी आते हैं. यहां कपिलवस्तु भी हैं, जहां बुद्ध ने अपने जीवन के शुरुआती समय व्यतीत किये थे. यहां से 10 किलोमीटर पूर्व लुंबनी में बुद्ध का जन्म हुआ था.
आपको बता दें सन् 1997 में पूर्वी हिस्से को काटकर संतकबीरनगर जिला बनाया जिसे खलीलाबाद के नाम से भी जाना जाता है. यहां कबीर ने प्राण त्यागे थे. इसके बाद जुलाई 1997 में बस्ती मंडल मुख्यालय बना दिया गया. फिलहाल इसे मंडल में बस्ती, संतकबीरनगर और सिद्धार्थनगर आते हैं.
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