Basti VidhanSabha Chunav 2022: टिकट के लिए दल और दिल बदलने में लगे बस्ती के नेताजी
Basti Sadar Chunav 2022: - आस्था की अदला-बदली में समर्थकों पर आफत - भाजपा, सपा, बसपा में भगदड़ मचने की संभावना

-भारतीय बस्ती संवाददाता-
बस्ती. टिकट के लिए नेताओं की आस्था बदलने में देर नहीं लगती. आने वाले विधानसभा (Basti VidhanSabha Chunav 2022)चुनाव की बात करें तो पार्टियों में टिकट की चाह रखने वाले सभी नेताओं को टिकट दे पाना सबके वश की बात नहीं होती. ऐसे में तमाम टिकटार्थी दलों से बाहर निकल कर दूसरा ठौर तलाशने लगते है.
नेताओं के दल बदलने में सबसे ज्यादा आफत उनके समर्थकों की होती है. उन्हें अपने नेताओं की तरह पलक झपकते ही अपनी निष्ठा बदल देनी पड़ती है. अपने नेता के दल के हिसाब से बोलना, लिखना पड़ता है. ऐसे में नेताओं के साथ समाज के कंटीले रास्तों पर उनके समर्थकों का चलना मजबूरी बन जाता है.
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इस बार के विधानसभा चुनाव में भी इस तरह के मामले देखने को मिलेंगे. टिकट की चाह रखने वाले सबसे ज्यादा नेता भाजपा के दरवाजे पर खड़े है. वाजिब है की सबको पार्टी से टिकट नहीं मिल पाएगा. ऐसे में तमाम असंतुष्ट नेता दूसरे दलों की तरफ का रास्ता भी देखेंगे. यही हाल कमोेबेश समाजवादी पार्टी का है. भाजपा से सीधे तौर पर सपा लड़ती हुई दिख रही है. भाजपा से असंतुष्ट नेता सबसे पहले सपा का दरवाजा खटखटाएंगे. वहां पहले से ही पार्टी के लोग टिकट की चाह में खड़े है. ऐसे में वहां भी असंतुष्ट नेताओं को बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा.
असंतुष्ट नेताओं के लिए आज भी सबसे पसंदीदा दल बसपा बनी हुई है. जिसके पास पैसा है और लड़ने का दम होता है वो बसपा के लिए लाइन लगा कर खड़ा हो जाता है. कांग्रेस का भी यही हाल है. टिकट की चाहत रखने वाले कांग्रेस का दरवाजा खटखटा कर वहां से टिकट ले आते है. जिससे उसके समर्पित कार्यकर्ताओं का हौंसला टूटता रहता है. पार्टी में हाइजैकरों की वजह से पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है.
कांग्रेस नेता व दो बार नगर पंचायत अध्यक्ष रहे सईद खान पूर्व में रूधौली विधानसभा से चुनाव भी लड़ चुके है. इस बार टिकट की चाह में सबसे पहले उनका दिल और दल बदला. अपने संभावति प्रत्याशिता को लेकर रूधौली में दौड़ना शुरू कर चुके है. ऐसे ही तमाम और बड़े नाम हैं जो सिर्फ टिकट बंटवारे का इंतजार कर रहे है. टिकट पाने की जुगत में अपने सभी हथकंडों पर काम भी कर रहे है. यही कारण है की सभी दलों में अपने संबंधों को फिर से जगाया जा रहा है. जिससे वर्तमान दलों में टिकट न मिलने पर दूसरे दलों में घंटी बजाई जा सके.