Swarg Dawar In Ayodhya: क्या अयोध्या का स्वर्गद्वार वाकई स्वर्ग का प्रवेश द्वार है ?

Swarg Dawar In Ayodhya: क्या अयोध्या का स्वर्गद्वार वाकई  स्वर्ग का प्रवेश द्वार है ?
ayodhya railway station

 डा. राधे श्याम द्विवेदी
        भगवान विष्णु के चक्र पर अयोध्या बसी हुई है . आठवें मानवेंद्र मनु का जन्म इसी अयोध्या में ही हुआ था. यह अत्यन्त प्राचीन नगरी है जिसका वर्णन वेद, पुराण आदि में बखूबी मिलता है. अयोध्या के वर्तमान मंदिर 200 से 500 साल पुराने हैं, पर यहां के धर्मस्थल लाखों लाख साल पुराने हैं. अयोध्या का आकार धनुषाकार है. इसके नव द्वारों का उल्लेख प्राचीन धर्मग्रंथों में मिलता है.
अर्पण और समर्पण की अयोध्या

अयोध्या शब्द सुनते ही स्वत: अर्थ बोध होने लगता है-- जहां कोई युद्ध ना हुआ हो. जहां के लोग युद्ध प्रिय न हों, जहां के लोग प्रेम प्रिय हों. जहां प्रेम का साम्राज्य हो. जो श्रीराम प्रेम से पगी हों, वो अयोध्या है. इसका एक नाम अपराजिता भी है. जिसे कोई पराजित न कर सके. जिसे कोई जीत न सके या जहां आकर जीतने की इच्छा खत्म हो जाए. जहां सिर्फ अर्पण हो समर्पण हो, वह अयोध्या है.
परिमाप:-

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अयोध्या  शहर का क्षेत्रफल 12 योजन (84 किमी) और तीन योजन (31 किमी)  चौड़ा है. इसके उत्तरी और दक्षिणी छोर पर सरयू आैर तमसा नदी अवस्थित हैं. इन दोनों नदियों के बीच की औसत दूरी लगभग 20 किलोमीटर है. माना जाता है कि यह शहर मछली के आकार का है, जिसका अगला सिरा सरयू नदी के घाट पर स्थित है, जिसे गुप्तार घाट कहते हैं और इसका पिछला सिरा पूर्व में विल्व हरि घाट स्थित है. इस शहर को तीन ओर से सरयू नदी ने घेर रखा है.

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स्वर्गद्वार विशिष्ट महत्व वाला क्षेत्र:-
सरयू तट के सहस्त्रधारा तीर्थ से लेकर पूर्व दिशा में 636 धनुष या 1272 गज या 1.16 किमी.तक पुराण के ज्ञाताओं ने स्वर्गद्वार का विस्तार बतलाया है. अयोध्या में स्वर्गद्वार के नाम से एक विशिष्ट महत्व वाला मोहल्ला है, जिसकी मान्यता विष्णु पुराण और वाल्मीकि रामायण में मिलता है. इस स्वर्गद्वार की स्थापना विश्वामित्र ने की थी. विश्वामित्र ने राजा त्रिशंकु की सेवा से खुश होकर वरदान मांगने को कहा, जिस पर राजा त्रिशंकु ने सशरीर स्वर्ग प्राप्ति का वरदान मांगा. महर्षि विश्वामित्र ने इसके लिए विशेष यज्ञ कराया था, जिस स्थान में यज्ञ हुआ, उसी स्थान को स्वर्गद्वार के नाम से जाना जाता है. यह क्षेत्र प्राचीन भी है और पुण्य क्षेत्र वाला भी है.काल की गणना के अनुसार सरयू की सहस्त्रधारा से पूर्व की ओर 200 धनुष और फिर दक्षिण की ओर 200 धनुष की जमीन का माप किया. उसी क्षेत्र में यज्ञ शुरू किया गया. इसी स्थान से त्रिशंकु को स्वर्ग भेजा गया. उसके बाद से आज तक इसे स्वर्गद्वार के नाम से जाना जाता है. यह एक महत्वपूर्ण स्नान घाट भी है और एक विशिष्ट क्षेत्र का परिचायक भी है. सरयू नदी की सनातनी पवित्रता, राम आदि चारो भाइयों का कीडा करना,अनेक प्राचीनतम मंदिरों से युक्त यह सिद्ध स्थल के रूप में साक्षात स्वर्ग से कम तनिक भी नहीं है. जहां सहस्रधारा लक्ष्मण घाट लक्ष्मण जी के स्व धाम का स्थल रहा है वहीं गुप्तार तीर्थ भगवान राम उनके परिवार तथा समस्त अयोध्यावासियों का स्वर्गारोहण स्थल के रूप में जाना जाता है. सरयू नदी के तट पर बने अनेक घाटों में सबसे महत्वपूर्ण घाट स्वर्गद्वार है. स्वर्ग और पृथ्वी के समस्त तीर्थ प्रातः काल यहां अपनी उपस्थिति देते हैं . जिस श्रद्धालु को सभी तीर्थों के स्नान और पूजन का फल प्राप्त करना हो उसे यहां आकर स्नान करना चाहिए.
(रुद्र्यामालोक्त अयोध्या महात्म्य अध्याय 4 श्लोक 6 व 7)                

इस घाट को नागेश्वर और मुक्तिदाता के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यहां मरनेवाले व्यक्ति सीधे विष्णुलोक जाते हैं.(उक्त संदर्भ अध्याय 4 श्लोक 8 )

रामकोट से 700 मीटर उत्तर में स्थित स्वर्गद्वार सात घाटों चंद्रहरि, गुप्तहरि, चक्रहरि, विष्णुहरि, धर्महरि, बिल्वहरि और पुण्यहरि से मिलकर बना है.

पतितपवान क्षेत्र:-
इस तीर्थ में स्नान करने से सब तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है.स्वर्गद्वार में जो तप, जप, हवन, दर्शन, ध्यान ,अध्ययन  एवं दान आदि किया जाता है, वह सब अक्षय होता है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, वर्णसंकर , म्लेच्छ, संकीर्ण पापयोनि, कीड़े मकोड़े, मृग, पक्षी जो भी स्वर्गद्वार में काल से मृत्यु को प्राप्त होते हैं, वे सब  गरुड़ध्वज रथ पर आरूढ़ हो सुंदर कल्याण में बैकुंठ धाम में जाते हैं. जो स्वर्गद्वार में ब्राह्मणों को अन्नदान, रत्न दान, भूमि दान, गोदान तथा वस्त्र दान करते हैं, वे सब श्री हरि के धाम को जाते हैं. ( संदर्भ उपरोक्त अध्याय 4 श्लोक 9 से 15 तक ).

देवाधिदेव भगवान विष्णु अपने स्वरूप को चार शरीर में व्यक्त करके रघुवंश शिरोमणि श्री राम होकर अपने तीनों भाइयों के साथ यहां नित्य विहार करते हैं. इसी स्वर्गद्वार में कैलाश निवासी शिव भी वास करते हैं. मेरु तथा मंदराचल के समान पाप की बड़ी भारी राशि भी स्वर्गद्वार में पहुंचते ही नष्ट हो जाती हैं. ऋषि  देवता असुर ,जप होम परायण मनुष्य, सन्यासी और मुमुक्षु पुरुष स्वर्गद्वार का सेवन करते हैं. काशी में योग युक्त होकर शरीर त्याग करने वाले पुरुषों को जो गति प्राप्त होती हैं, वही एकादशी को सरयू में स्नान करने मात्र से मिल जाती हैं. वे भगवान विष्णु की भक्ति को पाकर निश्चय ही परमानंद को प्राप्त होते हैं.

स्वर्गद्वार क्षेत्र के प्रमुख मन्दिर:-
सहस्रधारा से नागेश्वरनाथ मंदिर तक की भूमि का टुकड़ा आमतौर पर अयोध्या में स्वर्ग द्वार के रूप में होता है.  सरयू नदी के सामने घाट पर इमारतों को देख सकते हैं. वे 18वीं शताब्दी में मुख्य रूप से राजा सफदर जंग के दरबार में हिंदू नवाब नवल राय बनवाए गए थे. घाटों पर बनी इमारतों से देखने में बहुत खूबसूरत हैं. वर्तमान में नदी का तल उत्तर की ओर स्थानांतरित हो गया है. 1960 के दशक के दौरान नए पुल के परिवेश में वर्तमान में नए घाटों का निर्माण किया गया था, जो देखने में एक उत्कृष्ट दृश्य देते हैं.इस घाट पर प्रमुख मंदिर राम मंदिर और बड़े-नारायण मंदिर हैं. काल गंगा और ताम्र वराह कनेक्शन तीर्थम हैं.इस घाट के पास सांग वेद स्कूल है, जो एक प्रसिद्ध वेद स्कूल है, जहां भगवान राम के जन्मदिन के दौरान विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं .यहां अनेक ऐतिहासिक और प्रसिद्ध मठ-मंदिर हैं. वहीं राम की धर्मस्थली के पास लगभग 15, 000 से अधिक घर बने हुए हैं, जिनमें 60 से ज्यादा गलियां हैं. स्वर्गद्वार क्षेत्र को हेरिटेज स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी की जा रही है.दस आध्यात्मिक ऊर्जा स्थलों में यूनेस्को से आई टीम ने नागेश्वरनाथ मंदिर के आसपास के स्थल को चिह्नित किया गया है. घाटों के साथ ही नदी तट पर अनेक मंदिर भी हैं, जिनमें सूर्यमंदिर और नागेश्वरनाथ मंदिर सर्वाधिक महत्व के माने जाते हैं. यहां कालेराम मंदिर, चंद्रहरि महादेव मंदिर, शेषावतार मंदिर, सहस्रधारा घाट, सरयू मंदिर, हनुमत सदन, हनुमत निवास सहित अन्य सिद्धस्थान हैं जो कि पौराणिक एवं रामायणकालीन माने जाते हैं.  यहां चतुर्भुज का मंदिर और विधिजी का मंदिर भी है.

नगर निगम अयोध्या द्वारा संचालित स्वर्गद्वार वार्ड :-
अयोध्या नगरी में स्वर्गद्वार वार्ड नंबर 55 है ,श्री महेन्द्र कुमार शुक्ला स्वर्गद्वार वार्ड नंबर 55 के सभासद हैं जिनका संपर्क नंबर 9792393000 है. इस क्षेत्र के विकास और उन्नयन के लिए श्री शुक्ला जी को सुझाव वा परामर्श दिया जा सकता है. इस वार्ड को स्वर्ग समान अयोध्या नगरी का प्रारंभिक बिंदु के रूप में देखा जा सकता है. यह वार्ड अपने आप में बेहद खास है क्योंकि यही से अयोध्या की प्रसिद्द पंचकोसी परिक्रमा का आरंभ और अंत होता है. यहां अयोध्या के विख्यात मंदिर और घाट भी स्थित हैं, जिनका पौराणिक महत्व काफी अधिक है. अयोध्या और फैजाबाद नगर पालिका के विलय से पूर्व यह वार्ड अयोध्या नगर पालिका का ही एक हिस्सा था, जो अब नगर निगम अयोध्या द्वारा संचालित किया जाता है.  इस वार्ड के उत्तर में सरयू नदी तक, दक्षिण में तुलसी उद्यान से पाली मन्दिर के सामने से होते हुए राजेन्द्र निवास तक, पूरब में पुराने पुल से मुख्य मार्ग होते हुए तुलसी उद्यान तक एवं पश्चिम में राजेन्द्र निवास से गौही मंन्दिर धर्मशाला होते हुए सरयू नदी तक विस्तृत है. वार्ड के प्रमुख मोहल्लों में स्वर्गद्वार, उर्दुबाज़ार मोहल्ला, लक्ष्मण घाट आंशिक, नया घाट, राम की पैडी आंशिक तथा नागेश्वरनाथ मंदिर, राम की पैडी, नया घाट, तुलसी उद्यान, विश्वकर्मा मंदिर, नरसिंह भवन, ग्वालियर मंदिर, श्री काले राम मंदिर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं. इसके साथ ही वार्ड की शिक्षा सुविधा की बात यदि की जायें तो यहां अवध विद्या मंदिर जूनियर हाई स्कूल, पूर्व माध्यमिक विद्यालय, एसएमबी इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी सहित अन्य प्राइवेट विद्यालय भी मौजूद हैं, जो छात्रों को बेहतर शिक्षा व्यवस्था मुहैया कराते हैं.

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