UP Politics: मायावती के पास नहीं कोई विकल्प! मजबूरी में फंस गईं बसपा चीफ?
BSP चीफ मायावती, ऐसे दोराहे पर हैं जहां से उनके सामने सिर्फ कुछ ही विकल्पों पर भरोसा करने का रास्ता है.

UP Politics: बहुजन समाज पार्टी के लिए बीते कुछ महीनें बहुत उतार चढ़ाव भरे रहे. फरवरी में शुरू हुई बयानबाजी और आंतरिक सियासत, मार्च 2025 में अपने उफान पर पहुंची और बसपा चीफ मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से निष्कासित कर दिया. इससे पहले उन्होंने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ और उनके सहयोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
अब एक बार फिर अप्रैल महीने में बसपा की सियासत नए रास्ते पर जाती दिख रही है. इस नए रास्ते पर परिस्थितियां ऐसी हैं कि राजनीतिक पंडितों को लग रहा है कि बसपा चीफ मजबूरी में फंस गईं हैं और उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं.
दरअसल, 13 अप्रैल 2025 को बसपा चीफ के भतीजे आकाश आनंद ने सोशल मीडिया पर साइट एक्स पर सिलसिलेवार चार पोस्ट्स किए. इस पोस्ट में कुल मजमून यह था कि उन्होंने अपने पूर्व के कार्यों के लिए माफी मांगी और बसपा चीफ से भावुक अपील की कि उन्हें पार्टी में वापस ले लिया जाए.
इसके कुछ देर बाद ही 13 अप्रैल, रविवार को ही बसपा चीफ ने आकाश आनंद की पोस्ट की प्रतिक्रिया दी और उन्हें माफ करने के संकेत दिए. हालांकि उन्होंने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को माफी नहीं दी और न ही यह कहा कि उनकी पार्टी में वापसी होगी.
कोई विकल्प नहीं!
अब मायावती ने एक बार फिर जब आकाश आनंद को बसपा में शामिल करने के संकेत दिए हैं तो राजनीतिक पंडितों का मानना है कि बसपा और मायावती, दोनों के पास इसका कोई विकल्प नहीं था. दरअसल, साल 2026 के पंचायत और साल 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मायावती और बसपा, दोनों को एक ऐसे खेवनहार की जरूरत है जो न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी बल्कि आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) का भी मुकाबला कर सके.
इसके अलावा मायावती ने भले ही बसपा के अनुभवी नेताओं को अहम जिम्मेदारियां दीं लेकिन पार्टी के भीतरखाने यह बात जरूर उठ रही थी कि आकाश आनंद की पार्टी को जरूरत है. आकाश आनंद को लेकर न सिर्फ यह कहा गया कि वह परिस्थितियों के शिकार बन गए बल्कि राजनीतिक सूत्रों ने यह भी कहा कि बुआ को चाहिए कि भतीजे को एक मौका और दें.
साल 2019 के लोकसभा, साल 2022 के यूपी विधानसभा और साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बसपा से जुड़े युवा काडर का भी मानना था कि आकाश आनंद अगर पार्टी में रहकर काम करते हैं, तो वह बसपा के संघर्ष का रास्ता बहुत हद तक आसान कर सकते हैं.
अब जबकि संविधान और दलितों की लड़ाई लड़ने के लिए सपा और कांग्रेस का गठबंधन मैदान में है. बीजेपी, लाभार्थी वर्ग के जरिए दलित और पिछड़े वोट को अपनी ओर करने में जुटी है और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद के साथ युवाओं का वर्ग जा रहा है, ऐसे में मायावती के सामने आकाश आनंद को माफ करने और पार्टी में वापस लेने के संकेत देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था.
आनंद के पास भी नहीं था कोई विकल्प?
दूसरी ओर जानकारों का यह भी कहना है कि आकाश आनंद के लिए भी बसपा जरूरी थी क्योंकि उनका अपना कोई विस्तृत जनाधार नहीं है. जब तक बसपा के शीर्ष पर मायावती हैं, तब तक आकाश आनंद, अलग रास्ता भी अख्तियार नहीं कर सकते थे इसलिए उनके सामने भी कोई विकल्प नहीं था.