यूपी: बलिया की शक्ति दुबे से पंचर बनाने वाले के बेटे तक… UPSC में लहराया संघर्ष का झंडा
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संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी ने 22 अप्रैल 2025 को सिविल सेवा परीक्षा 2024 के परिणाम घोषित किए. जिसमें प्रयागराज की बेटी शक्ति दुबे ने ऑल इंडिया रैंक 1 प्राप्त कर इतिहास रच दिया. यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार. बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के लिए गर्व का विषय है।.
शक्ति दुबे की शैक्षिक यात्रा, सफलता का संदेश
हमारी बेटी बचपन से ही पढ़ाई में तेज रही है. सुबह से रात तक पढ़ाई करती थी. हमने सिर्फ उसे पढ़ाई का माहौल दिया, बाकी उसकी मेहनत और महादेव की कृपा है जो आज ये दिन देखने को मिला. शक्ति के पिता देवेंद्र कुमार दूबे पुलिस विभाग में कार्यरत हैं, रिजल्ट आने के बाद देवेन्द्र भावुक हो गए. उन्होंने बताया कि बेटी पिछले साल इंटरव्यू तक पहुंची थी, बस कुछ नंबरों से रह गई लेकिन इस बार भगवान ने बड़ी कृपा की. हमने हमेशा बच्चों को पढ़ने की आजादी दी, बेटी ने मेहनत से हमें गौरवान्वित कर दिया. परिवार के अनुसार शक्ति हमेशा पढ़ाई में अव्वल रही हैं. गोल्ड मेडल के बाद उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ड.ैब. किया. हमेशा टॉपर रही हैं. बेटी की मेहनत और हमारे आशीर्वाद का मिला फल मिला है. देवेंद्र कुमार दूबे ने कहा,हम पुलिस विभाग में थे, ड्यूटी पर रहते थे लेकिन घर पर पत्नी ने पूरा साथ दिया. जब भी ज़रूरत होती, हम संसाधन जुटा देते थे. पर असली मेहनत तो बेटी की थी. यह कहानी केवल एक परिवार की नहीं, बल्कि हर उस सपने की है जो मेहनत और समर्पण से साकार होता है. शक्ति दुबे की सफलता उन सभी बेटियों के लिए प्रेरणा है जो अपने हौसलों से ऊंचाइयों को छूना चाहती हैं. यह दिखाता है कि लगन, आशीर्वाद और परिश्रम से हर मंज़िल पाई जा सकती है.
यह सिर्फ एक कहानी नहीं, यह प्रेरणा है.
जब कोई कहता है कि सपनों को देखने का हक सिर्फ अमीरों को होता है. तो ऐसे ही किस्से उस सोच को झुठला देते हैं. एक पंचर बनाने वाला जिसने अपनी जिंदगी सड़क किनारे टायरों में हवा भरते और पंचर बनाते हुए गुजार दी. उसने कभी सोचा नहीं था कि उसका बेटा एक दिन बड़ी परीक्षा में सिलेक्ट हो जाएगा. लेकिन उसने अपने बेटे को सपने देखना जरूर सिखाया. यह कहानी है एक ऐसे परिवार की जो तंगहाली में जीता रहा. लेकिन कभी हार नहीं मानी. पिता दिन.रात मेहनत करता रहा. धूप.बारिश सब कुछ सहता रहा. सिर्फ इसलिए कि उसका बेटा पढ़ सके. बेटे ने भी पिता के पसीने की कीमत समझी. वह पढ़ाई में जुटा रहा. न रुकने की कसम खाई. स्कूल के बाद सीधे लाइब्रेरी, फिर ट्यूशन, और देर रात तक पढ़ाई उसने खुद को झोंक दिया. आखिरकार मेहनत रंग लाई वह बेटा सिलेक्ट हो गया. चाहे वो हो या कोई अन्य बड़ी प्रतियोगिता यह चयन सिर्फ एक परीक्षा का नहीं. बल्कि उम्मीदों, संघर्षों और सपनों की जीत थी. पिता की आंखों में खुशी के आँसू थे.
वह जो कभी लोगों के टायर ठीक करता था. आज उसके बेटे ने ज़िंदगी की बड़ी गाड़ी आगे बढ़ा दी थी. संत कबीरनगर में मेंहदावल तहसील के फतेहपुर गांव निवासी इकबाल अहमद ने यूपीएससी परीक्षा में 998वीं रैंक हासिल की है. पिता मकबूल अहमद एसबीआई बैंक नंदौर के पास साइकिल पंचर की दुकान चलाते थे. तबीयत ठीक नहीं होने के कारण दो साल से उनकी दुकान बंद है. इकबाल पांच भाई-बहनों में से एक हैं, जिनमें तीन भाई और दो बहनें हैं. उनके अन्य भाई पेंटर का काम करते हैं. इकबाल ने इंटर तक की पढ़ाई मेंहदावल से पूरी की. उच्च शिक्षा के लिए वे कुछ वर्षों तक गोरखपुर गए। वर्तमान में वे बस्ती जिले में श्रम प्रवर्तन अधिकारी हैं. सिर्फ पढ़ाई नहीं यह इस बात का प्रमाण है कि अगर जज़्बा हो. तो कोई भी बैकग्राउंड आपकी मंज़िल का रास्ता नहीं रोक सकता.