यूपी के इस गाँव के लड़के ने कर दिया कमाल, पहले ZOMATO में करता था delivery बॉय का काम
कोरोना वायरस महामारी ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रख दी हैण् ताजा आंकड़े बताते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर की वजह से भारत में एक करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो गए। सीतापुर के पंकज मौर्य एक डिलीवरी ब्वाय का काम करते थे फिर कोरोना में उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद उन्होंने कुल्हड़ बनाने का काम शुरू किया और फिर उनकी किस्मत बदल गई। वहीं कोरोना महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 97 फीसदी परिवारों की इनकम घट गई है।
वहां स्विगी और जोमैटो में डिलीवरी बाय का काम किया। लॉकडाउन में पंकज की नौकरी चली गई। घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। आर्थिक समस्याएं इस कदर हावी हो गई कि दो वक्त की रोटी के लाले पड़ने लगे। हजरतगंज में शर्मा जी की चाय पीते हुए कुल्हड़ का बिजनेस शुरू करने का आइडिया आया। सोशल मीडिया की मदद से कुल्हड़ बनाना शुरू कर दिया। अब इस कुल्हड़ की डिमांड ने पंकज की किस्मत बदल दी है।
अब वो मार्च से सितंबर तक एक सीजन में छह से सात लाख रुपये कमा लेते हैं। 2021 में दोबारा प्राइवेट कंपनियों में काम शुरू किया। लखनऊ में एक चाय की दुकान पर चाय पीते हुए यह आइडिया आया क्यों ना हम भी कुल्हड़ बनाकर अपने घर पर रोजगार कर सकते हैं। फिर सोशल मीडिया यूट्यूब की सहायता से जानकारी हासिल की और कुछ रुपये इकट्ठा किए। कुल्हड़ बनाने वाली आधुनिक मशीन खरीदा।
जहां से मशीन खरीद वहीं से ट्रेनिंग प्राप्त की। सीतापुर जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर सेवता गांव है। इस गांव में किसान के बेटे पंकज मौर्य पिछले तीन वर्षों से मिट्टी के डिजाइनदार कुल्हड़ बनाने का काम कर रहे हैं। इनके पिता गजोधर एक किसान है। इनकी मालियत हालत ठीक नहीं थी। पंकज बतातें है कि 2020 से पहले लखनऊ, हरियाणा व दिल्ली में प्राइवेट कंपनियों में काम करते थे।
लॉकडाउन होने के कारण घर पर आकर रुक गए जिससे उनकी आर्थिक हालत और बिगड़ गई। पंकज कहते है कि गांव के आसपास कुल्हड़ बनाने के लिए मिट्टी उपयुक्त नहीं है। हमें बाहर से मिट्टी मंगवानी पड़ती है। जिससे थोड़ा खर्चा और बढ़ जाता है। यदि सरकार मिट्टी दिलवाने का कार्य करें तो मैं इसको और अधिक विस्तार कर सकता हूं। उन्होंने बताया 2021 नवंबर से काम शुरू किया था। अब मैं अच्छा खासा कमा लेता हूं। मेरे साथ में पांच लोग और भी काम करते हैं। इस डिजाइन कुल्हड़ की डिमांड क्षेत्र में ही बहुत अधिक हो रही है। लोगों को आवश्यकता के अनुसार मैं उनको कुल्हड़ नहीं दे पाता रहा हूं। उन्होंने बताया खर्चा निकालकर साल में करीब दो लाख की बचत हो जाती है।