लंपी वायरस के कहर से कराहता गौवंश
-डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी
देश के 16 राज्यों में लंपी चर्म रोग का संक्रमण फैल गया है. इसके कारण हजारों गोवंश असमय काल का ग्रास बन चुके हैं. इसी संकट की वजह से राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में दूध उत्पादन में 20-30 प्रतिशत, जबकि गुजरात में 0.25 प्रतिशत की कमी आई है. यह वायरस गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सहित 16 राज्यों में पैर पसार चुका है. अभी तक पूरे देश में 75 हजार से अधिक गोवंश की मौत हो चुकी है. सबसे खराब स्थिति राजस्थान की है. अकेले इस राज्य में 53 हजार से अधिक गोवंश की मौत हुई है. स्थिति यह है कि गोवंश को दफनाने के लिए जगह कम पड़ गई है. लंपी चर्म रोग के कारण राज्य में दूध उत्पादन प्रभावित हुआ है. हालात बिगड़ते देख केंद्र सरकार ने सक्रियता दिखाते हुए राज्यों को टीके उपलब्ध कराए हैं.
इस बीमारी को रोकने के लिए पशुओं में टीकाकरण भी किया जा रहा है, लेकिन हालाता अभी काबू में आते नहीं दिख रहे हैं. दो महीनों में ही देश के 10 से ज्यादा राज्यों में ये बीमारी फैल चुकी है. इससे गौवंश की मौतें हो रही है. इस बीच यह भी सवाल उठता है कि सरकार ने अभी तक लंपी डिजीज को महामारी घोषित क्यों नहीं किया है. एलएसडी नाम की बीमारी गुजरात, राजस्थान, यूपी, पंजाब और हरियाणा समेत दर्जनभर से ज्यादा राज्यों में फैल चुकी है. पशुपालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 197 जिलों में 16.42 लाख पशु इससे संक्रमित हो चुके हैं और जुलाई से 11 सितंबर 2022 के बीच 75 पशुओं की मौत हो चुकी है. केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और दुग्ध मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने प्रभावित जिलों का दौरा किया. उनका कहना है कि पशुधन मृत्यु दर नियंत्रण में है. दूध उत्पादन में बहुत अधिक कमी नहीं आई है. उन्होंने कहा कि स्थिति पर नजर रखी जा रही है.
लंपी वायारस से गायों के शरीर में गांठें बन जा रही हैं. उन्हें बुखार हो रहा है. यह बुखार और गांठें उनके लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि यह बीमारी आखिर कहां से भारत में आई. सबसे पहली बात यह कि, लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है. लंपी स्कीन डिजीज जिस वायरस के कारण होती है, उसका नाम कैपरिपो वायरस है. ये बीमारी गायों और भैसों को होती है. ये वायरस गोटपॉक्स और शिपपॉक्स या पॉक्स फैमिली का है. लंपी वायरस मवेशियों में मच्छर या खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए फैलता है. लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है. माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई. यह बात 1929 की है.
साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं.लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को प्रभावित करती है. देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक है. इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक है. रोग के लक्षणों में बुखार, दूध में कमी, त्वचा पर गांठें, नाक और आंखों से स्राव आदि शामिल हैं.
रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं. इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशु के नाक से स्राव, दूषित फीड और पानी से भी हो सकता है.वायरल बीमारी होने के कारण प्रभावित पशुओं का इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है. बीमारी की शुरुआत में ही इलाज मिलने पर इस रोग से ग्रस्त पशु 2-3 दिन के अन्तराल में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है. किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण है. प्रभावित जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.
बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए. लंपी वायरस का संक्रमण गौवंश की जान के लिए खतरनाक है. इसके साथ ही गाय का दूध और गोमूत्र और गोबर पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. गाय के दूध में मौजूद वायरस को खत्म भी किया जा सकता है. इसके लिए दूध को लंबे समय तक उबालना जरूरी होगा या फिर पाश्चराइजेशन के जरिए इस्तेमाल किए जाने वाला दूध किसी भी तरीके से नुकसानदायक नहीं होता है, क्योंकि इससे वायरस पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है. इंसान के लिए इसमें कोई भी हानिकारक तत्व नहीं बचते हैं, लेकिन अगर ये दूध गाय का बच्चा सेवन करे तो ये उसके लिए हानिकारक हो सकता है. ऐसे में मवेशी के बच्चे को अलग कर देना चाहिए.दूसरी तरफ चुकी लंपी वायरस की वजह से गाय की मृत्युदर कम होती है लेकिन इसका सीधा असर उसके दूध के उत्पादन और उसके गर्भाशय पर पड़ता है.
एक्सपर्ट के मुताबिक, बीमारी से दूध के उत्पादन में असर होता है जो 50 फीसदी तक कम हो जाता है. इसका सीधा असर दूध के उत्पादन में और मवेशी के गर्भाशय में भी पड़ता है जो गाय की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट भी कर देता है. लंपी वायरस से इंसानों को कोई खतरा नहीं, यह पशु से पशुओं में फैलता है. ऐसे में जानवर की लार और मच्छर के काटने से यह फैलता है. एक्सपर्ट का मानना है कि अगर जानवर की चखतों को नीम या हल्दी और घी का पेस्ट लगाया जाए तो इस बीमारी से ग्रस्त मवेशी 1 हफ्ते से 10 दिन में ठीक हो सकता है, लेकिन इससे निजात पाने का सबसे अहम तरीका वैक्सीनेशन है, जिसके जरिए इसके संक्रमण को तेजी से रोका जा सकता है.
लंपी वायरस के संक्रमण को रोकने के संबंध में एक्सपर्ट मानते हैं कि इसका सिर्फ और कारगर उपाय संक्रमित जानवर को बाकी जानवरों से अलग करना ही हो सकता है. हालांकि संक्रमण की रफ्तार तेज है लेकिन मवेशी की मृत्यु की संभावना कम होती है. ऐसे में किसान और गौशाला कर्मियों को सबसे पहले संक्रमित गाय को बाकी जानवरों से अलग कर उन्हें उपचार देने की जरूरत है. वरना ये संक्रमण तेजी से दूसरे जानवरों में फैल सकता है. लंपी डिजीज को रोकने के लिए वैक्सीनेशन में तेजी लानी होगी. जो इलाके सभी ज्यादा प्रभावित है वहां सभी गायों को वैक्सीन लगानी होगी. इसके साथ ही जिन इलाकों में केस कम हैं वहां भी गायों का पहले ही टीकाकरण करने की जरूरत है, जिससे बीमारी के प्रसार को काबू में किया जा सके.
फिलहाल लंपी वायरस से गायों को बचाने के लिए गोट पॉक्स की वैक्सीन इस्तेमाल की जा रही है, जिससे काफी हद तक मदद भी मिल रही है. केंद्र सरकार के मुताबिक अब तक डेढ़ करोड़ टीके राज्यों को दिए गए हैं. इस वायरस को रोकने के लिए और भी कई उपाय किए जा रहे हैं. जिस तरह कोरोना से इंसानों को बचाने के लिए होम आइसोलेशन, कंटेनमेंट जोन और टेस्टिंग की रणनीति अपनाई गई थी, ठीक उसी तरह इस वायरस से गायों को बचाने के लिए प्रभावित राज्यों में उन्हें अलग रखा जा रहा है, उनकी टेस्टिंग की जा रही है. अब कोरोना ने हमको काफी कुछ सिखा दिया है तो उसी से सबक लेकर हमें जल्दी ही लंपी वायरस से संक्रमित गायों पहचान करके उन्हें आइसोलेट करना होगा और वैक्सीनेशन करवाना होगा ताकि संक्रमण न फैले.
-चिकित्सक एवं लेखक