दहशत-ए-कोरोना : एक अबूझ पहेली

दहशत-ए-कोरोना : एक अबूझ पहेली
Coronavirus Covid 19
 तनवीर जाफ़री
पूरे विश्व में एक बार फिर कोविड के विस्तार को लेकर चिंतायें बढ़ने लगी हैं. भारत सहित दुनिया के अनेक देश इस ख़तरनाक वायरस का मुक़ाबला व इसकी रोक थाम करने के लिये तरह तरह की तैय्यारियों में जुट गये हैं. एक बार फिर तरह तरह के प्रतिबंधों से लेकर कई नये नये नियम भी बनाये जा रहे हैं. विदेश से आने वाले यात्रियों की टेस्ट व जाँच शुरू कर दी गयी है. और पहले की ही तरह इस बार भी पड़ोसी देश चीन को लेकर ही वैश्विक स्तर पर फिर वही सुना जाने लगा है कि -'चीन में अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों को रखने और उनका इलाज करने की जगह नहीं है. वहां क़ब्रिस्तान में लाशों की लाइनें लगी हुई हैं. ऐसे में भारत जैसे उस देश के लोगों का कोरोना के संभावित ख़तरों अथवा उसकी दहशत को लेकर फ़िक्रमंद होना लाज़िमी भी है जिसने कोविड के दो वर्ष पूर्व के विस्तार के दौरान अकल्पनीय हालात का सामना किया हो. निःसंदेह देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर देने वाला लॉक डाउन,ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ते मरीज़,मरीज़ों व उनके परिजनों की चीख़ पुकार, थल-जल-वायु में थमे हुये यातायात के पहिये,रेलवे ट्रैक पर व सड़क मार्ग से हज़ारों किलोमीटर की पैदल यात्रा पर चलने वाले करोड़ों कामगारों का परिवार,रास्ते में भूख और थकान से दम तोड़ते लोग,शमशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिये लगी लंबी लाइनें,नदियों में तैरती व किनारे पड़ी लावारिस लाशें, यह दृश्य और उसकी दहशत देश कभी भूल नहीं सकता. इसीलिये कोविड/कोरोना या इससे जुड़े किसी नये वैरिएंट की ख़बर और इन ख़बरों के माध्यम से फैलने वाली अथवा फैलाई जाने वाली दहशत को लेकर आम लोगों की चिंतायें स्वभाविक हैं.
 
भारत के लिये सबसे बड़ी चिंता पड़ोसी चीन देश में कथित अनियंत्रित कोविड विस्तार की ख़बरों की वजह से अधिक है. परन्तु चीन के अधिकारी कहते रहते हैं कि विश्व मीडिया चीन में कोविड दुर्दशा का प्रोपेगंडा कर रहा है उसकी तुलना में चीन के हालात उतने ख़राब नहीं हैं. केवल चीनी सत्ता के पक्षकार ही नहीं बल्कि चीन के विभिन्न नगरों व महानगरों में रहने वाले तमाम ऐसे भारतीय भी जो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया विशेषकर भारतीय प्रोपेगंडा मीडिया द्वारा चीन के बारे में कोरोना से संबंधित ख़बरों को बिना किसी तथ्य,पुष्टि अथवा सत्यापन के प्रचारित करने को लेकर बेहद दुखी हैं. वे चीन की वास्तविक सामान्य स्थिति दर्शाने वाले अनेक वीडीओ अपलोड कर रहे हैं. अपने ऐसे वीडीओ में वे स्पष्ट रूप से बता व दिखा रहे हैं कि भारतीय मीडिया द्वारा चीन के बारे में कोरोना संबंधी दुष्प्रचार की वजह से किस तरह भारत में रह रहे उनके परिजन चिंतित हो जाते हैं. ऐसे कई भारतीय चीन के बाज़ारों की सामान्य रौनक़ और बेफ़िक्र चीनियों की रोज़मर्रा की नियमित ज़िंदिगी की वीडीओ व तस्वीरें शेयर करते हुये यही बताना चाह रहे हैं कि चीन में सब कुछ नियंत्रण में है और चीन संबंधी झूठी ख़बरों ने ही जान बूझ कर दहशत का माहौल बना रखा है.
 
कोरोना के बढ़ते ख़तरों के मद्देनज़र भारत में भी सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर मास्क लगाने के निर्देश जारी किये हैं. परन्तु जनता द्वारा इन निर्देशों का पालन करना तो दूर स्वयं नियम निर्माताओं द्वारा ही इस पर अमल नहीं किया जा रहा है. पिछले दिनों देश की लोकसभा के साथ साथ उत्तर प्रदेश व अन्य कई राज्यों की विधान सभा कार्रवाइयों या मुख्यमंत्री स्तर की एक ही दिन व समय पर चलने वाली विभिन्न बैठकों के चित्र प्रकाशित हुये. इनमें केवल लोकसभा का चित्र ऐसा था जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक मंत्री मुंह पर मास्क ढके दिखाई दे रहे थे. शायद ऐसा इसलिये भी था कि उसी दिन सरकार को सार्वजनिक स्थलों पर मास्क लगाने का निर्देश जारी करना था और कोरोना की दहशत के मद्देनज़र राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा को स्थगित करने की अपील भी करनी थी. अन्यथा अन्य राज्यों से उसी दिन प्राप्त होने वाले चित्रों में मुख्य मंत्रियों से लेकर उच्चाधिकारियों तक किसी ने भी मास्क नहीं पहना हुआ था. इसी तरह के विरोधाभास आम लोगों के मन में कोरोना के ख़तरों को लेकर संदेह पैदा करते हैं.
 
वैसे भी भारत सहित पूरे विश्व में लोगों का एक वर्ग ऐसा भी है जो कोविड वैक्सीन से लेकर मास्क सुरक्षा तक के किसी भी कोविड सुरक्षा उपाय को पूरी तरह ख़ारिज करता है. ऐसा इसलिये भी है कि क्योंकि स्वयं वैज्ञानिक भी किसी भी कोविड संबंधी उपाय या इलाज को कोविड से सुरक्षा का शर्तिया उपाय नहीं बल्कि इससे रक्षा करने का तरीक़ा मात्र ही मानते हैं. कोविड के ख़तरों के प्रति लोगों के गंभीर न होने का दूसरा कारण यह भी है कि जनता कोरोना के घोर प्रकोप के दौरान ही कुंभ मेले के आयोजन से लेकर बिहार व बंगाल जैसे अनेक राज्यों के चुनावों में नेताओं द्वारा की जाने वाली लाखों लोगों की रैलियां,रोड शो व जनसभायें तथा उन्हीं दिनों दिल्ली सीमा पर लाखों किसानों की मौजूदगी में एक वर्ष तक दिन रात चला किसान आंदोलन भी देख चुकी है. पूरा देश इस बात से भी बख़ूबी वाक़िफ़ है कि नीति निर्माताओं से लेकर आम लोगों तक कौन कोरोना नियमों का कितना पालन करता है. कोरोना नियमों को लेकर अपनाया जाने वाला दोहरा मापदंड और लोगों की मनमानी भी इसकी दहशत व गंभीरता को कम करते हैं .
 
वहीं विश्व का एक वर्ग जिनमें काफ़ी संख्या में डॉक्टर्स व बुद्धिजीवी भी शामिल हैं,ऐसा भी है जो इस पूरे कोविड प्रकरण को दवा,वैक्सीन और अन्य तमाम औषधि सामग्री बेचे जाने का एक विश्वव्यापी नेटवर्क मानता है. और इससे संबंधित दहशत को एक सुनियोजित प्रोपेगंडा षड़यंत्र का ही एक हिस्सा. आश्चर्य की बात तो यह है कि दुनिया के किसी भी देश ने न तो कोरोना दहशत को एक सुनियोजित प्रोपेगंडा षड्यंत्र  बताने वाले किसी एक भी व्यक्ति के विरुद्ध कोई क़ानूनी कार्रवाई की न ही मास्क व वैक्सीन का बहिष्कार करने वालों के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाया. बल्कि इस तरह के स्वर और भी तेज़ होते जा रहे हैं. इसलिये आम नागरिकों का यह सोचना स्वभाविक है कि कोविड वास्तव में किसी बीमारी के किसी ख़तरनाक वायरस का ही नाम है या फिर दहशत-ए-कोरोना दुनिया के लिये एक अबूझ पहेली बन चुकी है.
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