अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई और पिसता मध्यमवर्गीय समाज

अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई और पिसता मध्यमवर्गीय समाज

अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई और पिसता मध्यमवर्गीय समाज
Opinion Bhartiya Basti 2

   मनोज सिंह
देश को आजाद हुए 75 वर्ष होने को है इतने अंतराल पर हमारी तीन पीढ़ियां बीत चुकी है देश जब आजाद हुआ था तब सब जिम्मेदार  लोगों ने संकल्प लिया था कि देश में खुशहाली लौटेगी और जो लोग अति गरीब हैं उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा इसकी कुछ झलक जय जवान-जय किसान तक उम्मीद जगी, किंतु दुख के साथ लिखना पड़ रहा है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी करोड़ों लोग देश में ऐसे हैं जो भूमिहीन है रही रोजगार की बात तो यह किसी से  छुपा नहीं है कि बहुत से मजदूर मजदूरी करना चाहते हैं और उनको काम नहीं मिलता क्योंकि मध्यमवर्गीय किसान घटतौली, एम एस पी रेट पर उचित खरीद  और महंगाई के चलते किसी तरह  कृषि कार्य में मजबूरी में स्वयं दिन रात लगे हुए हैं 
      सरकार द्वारा चलाई जा रही मनरेगा योजना मे कम मजदूरी के चलते अधिक हाजरी लगा कर किसी तरह से ग्राम सभाओं के कार्यों की खानापूर्ती की जाती रही  यही कारण है कि जब ऑनलाइन ऐप के माध्यम से हाजिरी लगाने की सरकार ने सकारात्मक पहल शुरू किया तो कड़वा सच है कि कम मजदूरी के चलते किसी तरह से लोग कुछ काम करा कर कुछ बिना काम कराये  आज तक  गाड़ी चला रहे थे वह आंदोलित हो गये ग्राम प्रधानों द्वारा एक तरफ जहां ऐप का विरोध कर रहे थे वही मनरेगा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने की आवाज उठा रहे थे सरकार को चाहिए कि वर्तमान दौर में चल रही मजदूरी को मनरेगा मजदूरी के बराबर करना चाहिए और प्रदेश में अच्छी नेटवर्किंग व्यवस्था देकर लागू करना चाहिए 
       दरअसल सरकारे जमीनी हकीकत की बजाए कागजी  खाना पूर्ति करके अपना पीठ स्वयं  ठोकना चाहती हैं यह रोग केवल वर्तमान सरकार की ही नहीं है बल्कि और भी सरकारें  इसी रास्ते पर चलती रहने के कारण आज भी गरीबी और अमीरी कि खाई बढ़ती जा रही है लेकिन सरकारें आंकडो  पर सरकार चलाकर अपनी वाहवाही स्वयं लूटने में लगीं रहती है 
       तृतीय विश्व युद्ध के समय ग्रीस देश में 1941 से लेकर 1944 तक युद्ध के कारण और अकाल की चलते 3 लाख से अधिक लोगों ने कुपोषण के चलते जान गवा दी जिसके परिणाम स्वरुप वहां के कुछ समाज सेवी और शिक्षाविद ने मिलकर आक्सफैम (आर्थिक विषमता) का गठन किया वर्तमान समय में 20 देशों में आक्सफैम आर्थिक विषमता पर सर्वे करके अपने आंकड़े एकत्रित करता है 
        आर्थिक विषमता तो विश्व के अन्य देशों में भी है लेकिन भारत की आर्थिक विषमता की रिपोर्ट चौंकाने वाली है 
         सर्वे में देश के 1% लोगों के पास 40% से अधिक संपत्ति है 50% लोगों के पास 3% संपत्ति है देश के 10% लोगों के पास 72% हिस्सा है वहीं 90% लोगों के पास 28% संपत्ति है यह आंकड़े 1947 के ना हो कर वर्तमान दौर का है
     साल 2020 एवं 2021 में सरकार द्वारा कारपोरेट घरानों को एक लाख करोड़ से ज्यादा लोन में छूट दिया गया जो मनरेगा के  जारी बजट से ज्यादा है 
     राज्यों की और केंद्र की सरकार यदि अपने फिजूलखर्ची पर रोक लगाकर देश के बड़े व्यवसायियों को विश्वास में लेकर अगर देश हित में कुछ और टैक्स कार्पोरेट घरानों पर बढ़ाने का प्रयास करें तो निशन्देह देश की गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने में बड़ी सफलता मिलेगी 
    सरकार द्वारा 30% कार्पोरेट घरानों के टैक्स को घटाकर 22% कर दिया गया 8% टैक्स बढाकर करोड़ों युवाओं की बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में सरकार को बड़ी सफलता मिल सकती है  
  लेकिन इसके लिए सैकड़ों करोड़ रुपए विज्ञापनों के खर्च करने के बजाय वह जमीनी कार्य किया जाए जिससे समाज और देश का भला हो                                       उन उत्पादकों को बढ़ाना होगा  जिसका निर्यात देश करता है और  उन उत्पादकों का इस्तेमाल कम करना होगा जिसे देश आयात करता है जीएसटी की जटिलता को कम करने के लिए सीमेंट फैक्ट्रियों और स्टील कंपनियों के कारखानों तथा अन्य उत्पादों पर ही लोडिंग होते समय ही जीएसटी लगाकर छोटे व्यवसायियों को बेवजह  एक परसेंट टैक्स के लिए परेशान करने की प्रक्रिया बंद होनी चाहिए
 वर्तमान समय में सीमेंट पर केंद्र और प्रदेश सरकार का क्रमशः 14 +14=  28 % तथा स्टील पर क्रमशः 9+9=18 %टैक्स वसूला जा रहा है इसी तरह अन्य उत्पादों पर भी सरकार ने अपने टैक्स निर्धारित कर रखे हैं सरकार को चाहिए कि अपने निर्धारित टैक्स का माल बाजार में पहुंचने से ऋपहले सरकार को हर संभव प्रयास होना चाहिए कि बिना उचित टैक्स दिए माल फैक्ट्री से बाहर ना जाए लेकिन छोटे 
व्यवसायियों को 1% जीएसटी टैक्स के लिए परेशान करने से बचना चाहिए क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी के चलते बहुत से व्यापारी भारी नुकसान उठा चुके हैं 
       आज भी देश में बड़े और उदार अरबपति व्यवसायियों की कमी नहीं है जो देश की गरीबी दूर करने के लिए लाखों-करोड़ रुपए अपना थोड़ा सा टैक्स बढाकर देने की लिए आगे ना आए लेकिन राजनैतिक दलों को भी बड़े बड़े मंच लगाकर , लाखों की भीड़ इकट्ठा करने के लिए करोड़ों रुपए पानी की तरह उड़ाना और विज्ञापन के नाम पर सैकड़ों करोड़ रूपया खर्च करने से बजाय जमीनी समस्या और बेराजगार युवाओं की समस्याओं को दूर करने तथा देश के अतिगरीबो के उत्थान के लिए सार्थक प्रयास मानवता को ध्यान में रखते हुए विना भेद भाव के करना होगा 

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