OPINION : बस्ती पर आज भी चस्पा है यह ‘आरोप’
अब आप गर्व से सीना तान कर कह सकते है कि बस्ती (Basti) ‘उजाड़’ नहीं है. बस्ती (Basti) उसी तरह से मण्डल मुख्यालय है जैसा भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र (Bhartendu Harishchand) की वाराणसी (Varanasi).
30 अप्रैल 1880 को जब भारतेन्दु जी अयोध्या (Ayodhya) से मेहदावल (Mehdawal) जाते हुए ‘पक्के’ पर रुके और एक घरनुमा दूकान में उन्हेंं एक टिमटिमाता दीपक दिखा तो उन्होने व्यंग से कहा था ‘ बस्ती को बस्ती कहौं तौ काको कहै उजाड़’.
तब बस्ती को गोरखपुर (Gorakhpur) से अलग हुए और जिला बने केवल 15 साल ही बीते थे. बस्ती का नया भूगोल करवटें ही ले रहा था. बस्ती का शैशव काल था.
आज मंडल मुख्यालय है Basti
आज बस्ती उसी भूगोल का मण्डल मुख्यालय है जिस भूगोल का जिला मुख्यालय भारतेंदु जी ने 30 अप्रैल 1880 को देखा था.
मेहदावल जाने के लिये देर शाम पालकी ना पाने का क्षोभ और क्रोध वह नहीं रोक पाये बस्ती पर चस्पा कर दिया ‘बस्ती को बस्ती कहौं तौ काको कहै उजाड़’.
आज भी बस्ती पर चस्पा है ‘आक्रोश’
आज भी बस्ती पर भारतेंदु जी का आक्रोश चस्पा है. सिद्धार्थ के नाम पर सिद्धार्थनगर और और संत कबीर के नाम पर संतकबीर नगर जिलों के साथ बस्ती उसी प्रकार से मण्डल मुख्यालय है जैसे भारतेंदु जी का वाराणसी.
1926 में बस्ती का ‘बस्ती गजट’
‘बस्ती गजट’ बस्ती के पत्रकाशन का श्रीगणेश रहा है. भारतेन्दु जी की नगरी वाराण्सी से ‘आज’ अखबार 1920 से शुरु हुआ और बस्ती जैसे उजाड़ कहे जाने वाले बस्ती से बाबू कैलाश पति ने 1926 में (यानि बनारस के ‘आज’ के मुकाबले केवल 6 वर्षो बाद ही) ‘बस्ती गजट’ का प्रकाशन शुरु कर दिया जो द्विभाषी साप्ताहिक था और हिन्दी तथा अंग्रेजी दो भाषाओं में छपता था.
कहना चाहें तो कह ही सकते है कि बस्ती जनपद की पत्रकारिता और पत्र प्रकाशन का आरम्भ पं. रामनाथ शुक्ल के’कवि कुल कंज दिवाकर’ साहित्यिक पत्रिका से है. जिसे उन्होने 1882 में प्रकाशित किया था.
यहां छपती थीं भारतेन्दु जी की कविताएं
‘कविकुल कंज दिवाकर’ की उत्कृष्टता और पहुंच का आकलन तो इसी से किया जा सकता है कि उसमें स्वयं भारतेन्दु हरिश्चन्द जैसे दिग्गजो की कवितायें छपती रही.
साहस जुटा कर सच कहना चाहे तो कहना ही पड़ेगा कि पं.रामनाथ शुक्ल ही भारतेन्दु जी की पत्रिकाओं के भी प्रमुख कर्ताधर्ता रहे.
जब हमारे शिकस्त देने से अंग्रेजों का दिल टूटने लगा-1857 के स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला अंग्रेजों और नेपाली सैनिकों के बूटों तले भले दबा दी गयी थी किन्तु जिस तरह से यहां के लोगो ने अंग्रेज सल्तनत को शिकस्त दिया उससे अंग्रेजो का दिल टूटने लगा था. अंग्रेजों के छक्के 1857 में ही छूट चुके थे.
यह है बस्ती का इतिहास
उन्हें लगने लगा था कि गोरखपुर से बस्ती का प्रशासन चला पाना कठिन है. इसी कारण 6मई 1865 को बस्ती में आजादी के दीवानों को दबाने के लिये पृथक प्रशासनिक इकाई के रुप में गोरखपुर से अलग बस्ती जनपद ने अस्तित्व ग्रहण किया.
जनपद के रुप में अलग इकाई के अस्तित्व के साथ भूगोल ने नये इतिहास की संरचना आरम्भ किया क्योकि पृथक भूगोल के बिना पृथक इतिहास की अवधारणा नहीं की जा सकती.
न कोई प्रेस, न कोई बैंक
ना कोई प्रेस ना कोई अखबार ना कोई बैंक – बस्ती जनपद मे स्वतंत्रता के प्रति जागृति के बावजूद यहां ना कोई प्रेस था ना हि यहां से कोई अखबार ही प्रकाशित होता था.
हिन्दी उर्दू में जब कोई विवाह आदि का निमंत्रण पत्र या पर्चा पोस्टर छपवाना होता था तो गोरखपुर या फैजाबाद (Faizabad)जाना पड़ता था.
गोरखपुर (Gorakhpur) जाने के लिये पार करना पड़ता राप्ती (Rapti River) और फैजाबाद के लिये सरयू (Saryu River). क्योंकि राप्ती और सरयू नदियों पर 1960 के दशक तक कोई पुल नहीं था.
गरमी के दिनो में पीपे के अस्थायी पुल बनाये जाते थे. बाकी दिनो में नांव का ही सहारा था. प्रेस और अखबार के साथ ही बस्ती में कोई बैंक भी नहीं था.
जब बस्ती में स्थापित हुआ स्काउट प्रेस
1926 बस्ती के लिये महत्वपूर्ण-1926 बस्ती जनपद के लिये अति महत्वपूर्ण रहा. जानेमाने समाजसेवी और वकील बाबू दौलतराम अस्थना ने इसी साल स्काउट प्रेस की स्थापना किया.
जिसे बाद में 1973 में बस्ती के प्रथम दैनिक समाचारपत्र ‘दैनिक ग्राम दूत’ के प्रकाशन मुद्रण का श्रेय मिला.
यहीं से बाबू गिरिजेश बहादुर सिंह राठौर ने बिना साधन के गौरीदत्त धर्मशाले के एक कमरे में रह कर एक पेंसिल और एक ताव कागज लेकर ग्रामदूत दैनिक का प्रकाशन 25 वर्षो तक करते रहे और यह प्रमाणित कर दिया कि ‘ क्रिया सिद्धि सत्वे भवति महतामृ ना उपकरणे’ .
कटेश्वर पार्क और टाउन क्लब की स्थापना
बाबू दौलतराम अस्थाना ने कटेश्वर पार्क और टाउन क्लब की स्थाना किया. वह कुछ समय तक जिला परिषद और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष भी रहे.
आज जिस कटेश्वरपार्क में नगरपालिका द्वारा स्थापित ‘ बाल बिहार’ चलाया जा रहा है उसी कटेश्वर पार्क की स्थापना के लिये बाबू दौलतराम अस्थाना ने एक दिन की सजा भी काटा.
सच कहना चाहें तो कह सकते हैं कि भारतेंदु जी के व्यंग ‘ बस्ती को बस्ती कहौं तो काको कहौ उजाड़ ‘. को झुठलाने और बस्ती पर लगे इस दाग को मिटाने के लिये बाबू दौलतराम अस्थाना ने क्या क्या नहीं किया ?
वास्तव में वह बस्ती के दौलत थे. और उन्होंने उजाड़ बस्ती को पल्लवित करने के लिये विकास का जो तानाबाना बुना, जो ढांचा खड़ा किया उसी नींव पर विकास का जो ढर्रा चल रहा है कि आज यदि भारतेंदु जी टिमटिमाते हुए एक दीपक वाले बस्ती को देख पाते तो उन्हें स्वयं भी आश्चर्य होता और बस्ती पर लगाये गये छोदरे पर पछतावा भी.
बाबू कैलाशपति का योगदान भुलाया नहीं जा सकता
1925 में बाबू कैलाशपति ने अंग्रेजी दफ्तर के ओ.एस. पद से सेवा निवृत्त्ति के बाद ‘बस्ती गजट’द्विभाषी साप्ताहिक 1926 में शुरु किया और एक बैंक भी स्थापित किया. इसके पहले बस्ती के लोगो के लिये रुपया जमा करने का साधन केवल डाकखाना था.
अंग्रेजी दफतर में ओ.एस.पद पर कार्य करते हुए बाबू कैलाश पति ने अनुभव किया कि वादकारियों को अदालतों के सम्मन अखबारों में प्रकाशित कराने में बड़ी कठिनाई होती है.
1920 में वाराणसी से प्रकाशित ‘आज’या 1911 से लखनऊ से प्रकाशित ‘पायनियर’ को सम्मन प्रकाशन हेतु भेजना पड़ता है. सम्मन प्रकाशन की सुविधा को देखते हुए बाबू कैलाशपति ने 1926 में ‘ बस्ती गजट’ के प्रकाशन का निश्चय किया.
जौनपुर निवासी बाबू कैलाश पति ने त्रिपाठी चित्र मंदिर के सामने स्थित कैलाशपति हाते से ‘बस्ती गजट’ का प्रकाशन मैगजीन आकार के 16 पृष्ठों में शुरु किया.
पहले के चार पृष्ठ अंग्रेजी और शेष 12 पृष्ठ हिन्दी में होता था. बस्ती का पहला समाचारपत्र द्विभाषी था. आवरण पृष्ठ पर जिलाधिकारी जिला जज,पुलिस कप्तान जैसे अधिकारयों के आदेश एवं सूचनायें प्रकाशित की जाती थी. अंतिम पृष्ठ पर कवितायें कहानियां और चुटकुले भी प्रकाशित होते थे.
कहां वितरित होता था बस्ती गजट
बस्ती गजट की प्रतियां अधिकारियो, विद्यालयों,राजाओं और जमींदारो को भेजी जाती थी. बाबू कैलाश पति इसके सम्पादक थे.
इसके प्रकाशन में मरवटियो के बाबू नागेश्वर सिंह,राजा साहब बस्ती,नरहरिया पाण्डेय,राजा शोहरत गढ़ शिवपति सिंह,गुलाम हुसेन पिंडारा, रायबहादुर सरयू प्रसाद,बाबू गनपत सहाय वकील, आदि का सहयोग प्राप्त था.
इनमें से अधिकांश ब्रिटिश सरकार के समर्थक या अमनसभाई थे.
सरकारी कार्यालय, राजा जमींदार तथा अंग्रेज शासको के सहयोग से प्रकाशित होने के कारण बस्ती का पहला अखबार आजादी के आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी नहीं निभा सका.
इसे आम लोगो का सहयोग भी नहीं मिला. फिर भी इसका प्रकाशन दस वर्षो तक निरन्तर होते रहना अपनेआप में एक उपलब्धि थी.
बाबू कैलाश पति की बढती उम्र के कारण वे कार्य कर पाने में असमर्थ होने लगे. इसीलिये अखबार का प्रकाशन भी बंद कर दिया और बैंक का कामकाज भी रोक दिया.
यद्यपि यह अखबार ‘गोरखपुर गजट’ नाम से बस्ती निवासी ईश्वर चन्द्र श्रीवास्तव एडवोकेट काफी दिनों तक गोरखपुर से चलातेे रहे.
कोई किसी से पीछे नहीं-
1926 में ही मीनाई साइब ने ‘इंसाफ’ नामक उर्दू साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया जो पांच छ माह चलने के बाद बंद हो गया. बाद में मीनाई साहब पाकिस्तान चले गये.
मो. इसहाक और मो इस्माइल की प्रेरणा से 1931 में मो. मकबूल ने उर्दू साप्ताहिक ‘कौम’का प्रकाशन किया. इसकी भी लीथो पर छपाई गोरखपुर से होती थी.
इसका प्रकाशन भी एक वर्ष तक होता रहा. शौक खत्म प्रकाशन बंद.
1936 में हीरा नन्द ओझा ने निष्पक्ष का प्रकाशन किया जो धर्मशाला रोड स्थित एक मकान से प्रकाशित होता था. 1945 में राजाराम शर्मा ने विजय नामक साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया.
जो दरिया खां जाने वाली गली के कोने पर मुख्य सडक पर स्थिति विजय प्रेस से छप कर प्रकाशित होता था.
इस अखबार के पृष्ठ आजादी के आन्दोलन की खबरो से भरें रहते थे और तल्ख टिप्पणियां प्रकाशित की जाती थी.
फिर आया आजादी के बाद का पर्व-स्वतंत्रता के बाद 1952 में राजाराम शर्मा और उमाशंकर पाण्डेय ने’पंचमुख’ हिन्दी साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया.
जो 1961 तक श्रीराम प्रेस से छपता रहा. बाद में 1982 में इसी प्रेस से ‘मौन दर्शन’ दैनिक का प्रकाशन मरवटिया के बाबू कृष्ण प्रताप सिंह ने आरम्भ किया.
जो लगभग दो दशको तक एक प्रभावी दैनिक की भूमिका निभाता रहा.
आजाादी के बाद बस्ती का पहला अखबार
कहना चाहे तो कह सकते है कि ‘पंचमुख’ आजादी के बाद का पहला अखबार था जो 1961 तक छपता रहा. 1962 में पं ईश दत्त ओझा ने समदर्शी और श्यामलाल ने ‘पूर्वी जिले’ साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया.
पूर्वी जिले तो श्यामलाल जी के निधन के बाद बंद हो गया लेकिन समदर्शी संतकबीर नगर से दैनिक और बस्ती से साप्ताहिक अब भी प्रकाशित हो रहा है.
कहना चाहे तो कह सकते हैं कि इन साप्ताहिको ने पूरी क्षमता से आम लोगो की समस्याओं को उठाया और आम लोगो का भरोसा भी प्राप्त किया.
इन पत्रों की चर्चा पं. अम्बिका प्रसाद बाजपेई ने अपनी पुस्तक ‘ हिन्दी समाचारपत्रों का इतिहास’ में किया है.
कवलजीत कौर ने जुटाया हिम्मत
बस्ती वह स्थान है जहां से कंवलजीत कौर ने 1972 में ‘ नारी स्वर ‘ हिन्दी साप्ताहिक का प्रकाशन उस समय शुरु किया जब महानगरो से भी महिलायें पत्र प्रकाशन के क्षेत्र में आने से संकोच करती थी.
बस्ती जैसे ‘उजाड़’ से 1990 में संजय द्विवेदी ने 13 वर्ष की उम्र में बाल पत्रिका ‘शावक’ का प्रकाशन किया.
आज संजय द्विवेदी जाने माने पत्रकार ,लेखक समीक्षक और माखनलाल चर्तुवेदी जन संचार विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष के रुप में अपनी प्रतिभा बिखेर रहे है और कर रहे हैं ‘मीडिया विमर्श’त्रैमासिक पत्रिका का अद्वितीय प्रकाशन .
बस्ती का पहला दैनिक ग्रामदूत
श्री गिरिजेश बहादुर सिंह राठौर ने 1968 में ग्रामदूत साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ किया जो 1973 से दैनिक प्रकाशित होने लगा. इसे बस्ती मण्डल के प्रथम दैनिक होने का श्रेय प्राप्त है.
ग्रामदूत दैनिक लगभग तीस वर्षो तक बस्ती मण्डल के प्रभावी दैनिक के रुप मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा.
बढ़ता ही जा रहा है भारतीय बस्ती का कारवां
1974 में गोरखपुर से एक पाक्षिक के रुप में शुरु भारतीय बस्ती 1977 में बस्ती से साप्ताहिक हो गया और 20 जुलाई 1981 से दैनिक के रुप में प्रकाशित होने लगा. 2008 से भारतीय बस्ती का अयोध्या फैजाबाद संस्करण प्रकाशित हो रहा है.
आज भारतीय बस्ती दैनिक बस्ती एवं फैजाबाद मण्डलों का प्रमुख दैनिक समाचार पत्र हैं. इनका ई पेपर भारत के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों मे चाव से पढ़ा जाता है.
भारतीय बस्ती के प्रकाशक संयुक्त सम्पादक प्रदीप चन्द्र पाण्डेय और सम्पादक दिनेश चन्द्र पाण्डेय हैं.
आवाज भारती समाचार प्रचार नेटवर्क और भारती समाचार फीचर सेवा का संचालन किया जा रहा है.
आवाज दर्पण हिंन्दी . साप्ताहिक अपने तरह के साप्ताहिक समाचार पत्र के रुप में प्रभावी भूमिका निभा रहा है. भारतीय बस्ती दैनिक 20 जुलाई से समाचार पोर्टल आरम्भ करने जा रहा है.
भरोसा है भारतीय बस्ती को मिलेगा आपका प्यार
भरोसा है कि भारतीय बस्ती के अन्य प्रकाशनो की तरह आम लोगो का प्यार और समर्थन समाचार पोर्टल को भी मिलेगा.
यकीन मानिये समाचार पोर्टल का मूल तत्व विश्वसनीयता ही होगा जो हमारी पूंजी रही है आज भी है और आगे भी रहेगी.
सके अतिरिक्त लोकमाध्यमों पर तमाम विचारोन्मेषी सक्रिय हैं जिन्होने फेसबुक ,व्हाट्सऐप पर अपने को जोड़कर लोक माध्यमों को सम्पन्न बनाने में लगे है.
बस्ती गोरखपुर , लखनऊ से प्रकाशित तमाम दैनिक समाचार पत्रों का मुख्य प्रसार क्षेत्र है.
जनपद में स्थानीय और बाहर के 53 पत्रकारों को शासन ने मान्यता दे रखा है जो अपना काम प्रभावी ढंग से कर रहे हैं.
इसके साथ ही तमाम ऐसे लोगो ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है जिनकी खबरें बस्ती की समस्याओं को उजागर तो करती ही है समाधान भी सुझाती है.
इसके अतिरिक्त तमाम लोग फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप पर प्रभावी भूमिका निभा रहे है जिससे आम लोगो को तात्कालिक खबरे उपलब्ध हो जाती है और अखबारों और चैनलों का इंतजार नहीं करना पड़ता.
हम एक बार फिर उन कलम और की बोर्ड के बेबाक सिपाहियों से क्षमा चाहेंगे जिनका नाम छूट गया है. वे हमारे लिये किसी तरह से कम महत्वपूर्ण नहीं है.
आज से शुरू होगा भारतीय बस्ती पोर्टल
भारतीय बस्ती समाचार पोर्टल– आज से आरम्भ होने वाला ‘ भारतीय बस्ती समाचार पोर्टल का मुख्य लक्ष्य लोगो को तात्कालिक और विश्वसनीय खबरे, उस पर टिप्पणिया तथा देश बिदेश की खबरो पर बस्ती और अयोध्या फैजाबाद समेत पूर्वाचल के लोगो के विचार क्षेत्र के सर्वागीण विकास का चित्रण प्रस्तुत किया जायेगा.
हम खबरो में पहले होंगे लेकिन किसी खबर को जल्दबाजी में प्रस्तुत करने का प्रयास कदापि नहीं करेगे. भाषा मर्यादित होगी और प्रस्तुतीकरण संयमित.
और अंत में-‘ ऐ जनम साथियों, ऐ करम साथियो!लो संभालो तू अपने ये साजोगजल मेरे नगमों को अब नीद आने लगी. यकीनन भारतीय बस्ती प्रकाशन समूह को आप का सहयोग मिलता ही रहेगा.
दिनेश चन्द्र पाण्डेय
सम्पादक भारतीय बस्ती प्रकाशन समूह
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