OPINION: किसे नामंजूर है यूनिफॉर्म सिविल कोड?

OPINION: किसे नामंजूर है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
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आर के सिन्हा
आप देख ही रहे होंगे कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी “समान नागरिक संहिता” को लागू करने की कोशिशें फिर से शुरू होते ही कठमुल्ला मुसलमान और कई तरह के राष्ट्र विरोधी और अलगाववादी तत्व लामबंद होने लगे हैं वे कहने लगे हैं कि वे इस कानून को कतई स्वीकार नहीं करेंगे.  इसके साथ ही वे भी इसका विरोध कर रहे हैं जो कुछ वर्षों से दलित-मुस्लिम एकता के बड़े पैरोकार होने का दावा करते हैं. अब उन्हें यह कौन बताए कि बाबा साहेब आंबेडकर ने यूनिफोर्म सिविल कोड को देश के लिये निहायत जरूरी बताया था. बाबा साहेब ने 23 नवंबर 1948 को संविधान सभा की बहस में यूनिफोर्म सिविल कोड के हक में जोरदार भाषण दिया था . जो मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए मरने-मारने की बातें कर रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि उन्हें शरीयत कानून इतना ही प्रिय है तो वे बैंकों से मिलने वाले ब्याज को क्यों लेते हैं. इस्लाम में तो ब्याज लेने पर रोक है. अगरशराब क्यों पीते हैं ? जाहिर है, वे इस सवाल को सुनते ही पतली गली से आगे निकल जाते हैं.

यकीन मानिए कि इन अंधकार युग में जीना चाहने वालों को यह भी सुनना पसंद नहीं है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र,  आयरलैंड आदि देशों में भी पहले से ही लागू हैं. यानी अमेरिका जैसा संसार का सबसे अहम देश यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू कर चुका है और अनेक इस्लामिक देश भी इसके प्रति निष्ठा रखते हैं. इन सभी देशों में सभी धर्मों के नागरिकों के  लिए एक समान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं. कुछ कठमुल्लों के अलावा यूनिफॉर्म सिविल कोड का कहीं कोई विरोध भी नहीं है.

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अपने को मुसलमानों का प्रवक्ता बताने वाले आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से कहा जा रहा है कि संविधान निर्माताओं ने मजहबी आजादी को बरकरार रखा था. लोकतांत्रिक देश में किसी पर एक कानून थोपना उसूलों के खिलाफ है. जैसे दक्षिण भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले मामा-भांजी से शादी करते हैं I लेकिन, यह उत्तर भारत में नहीं होता है. ऐसे बहुत से मामले में है जिनमें इस कानून के तहत विरोध नजर आएगा. ये बहुत लुंज-पुज तर्क है. एक बात नोटिस करें कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कभी वक्फ संपत्तियों में होने वली लूट पर कोई बयान नहीं देता. देश में वक्फ की संपत्तियों को दोनों हाथों से कब्जाया जा रहा है. पर मजाल है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कभी इसके खिलाफ बोले.

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूनिफोर्म सिविल कोड के मसले को कुछ समय पहले भोपाल में उठाया. तब ही से इस प्रश्न पर बहस छिड़ी हुई है. पर, ये   मुद्दा कोई नया तो नहीं है. कई दशकों से इस पर बहस चल रही है. सुप्रीम कोर्ट भी कुछ मामलों में इसका जिक्र कर चुका है. जिनमें से सबसे पहला और बड़ा मामला इंदौर की बुजुर्ग महिला शाह बानो का है. जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ को दरकिनार करते हुए हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था.

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दरअसल मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए तीन तलाक को खत्म कर दिया है . उन्होंने कहा था कि इससे मुस्लिम महिलाओं को सबसे बड़ी राहत देने का काम हुआ है. केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि तीन तलाक के कानून बनने के बाद 95 प्रतिशत ऐसे मामले बंद हो गये I इसे यूनिफॉर्म सिविल कोड से जोड़कर देखा गया. तब कहा गया कि सरकार की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड  की तरफ पहला कदम बढ़ा लिया गया है. शाह बानो का मामला भी इसी ट्रिपल तलाक से जुड़ा हुआ था, जिसकी सुनवाई के दौरान बाद में यूनिफोर्म सिविल कोड का जिक्र आया था.

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मैं यहां पर शाह बानो केस को संक्षेप में बताना चाहता हूं. शाह बानो का कम उम्र में निकाह इंदौर के एक वकील मोहम्मद अहमद खान से हुआ. फिर दोनों के पांच बच्चे भी हो गए, लेकिन निकाह के करीब 14 साल बाद अहमद खान ने दूसरा निकाह कर लिया. अहमद ने 1978 में शाह बानो को तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे दिया और घर से बेदखल कर दिया. तब खान ने शाह बानो को 200 रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने का वादा किया. पर वो इससे भी मुकर गया. तब 62 साल की शाह बानो ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया. पेशे से वकील अहमद खान ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए शाह बानो को गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया. हाईकोर्ट ने शाह बानो के हक में फैसला दिया. अब शाह बानो का पति अहमद सुप्रीम कोर्ट में चला गया. सुप्रीम कोर्ट में   भी उसकी अपील खारिज हुई. पर तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक अप्रत्याशित फैसला लेते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक अध्यादेश लाकर पलट दिया. इसके बाद राजीव गांधी सरकार मुस्लिम महिला (अधिकार और तलाक संरक्षण) विधेयक 1986 लेकर आई और इससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला शून्य हो गया. इसके बाद मुस्लिम विवाह के मामले में फिर से शरीयत कानून को लागू कर दिया गया. तो भारत को एक प्रगतिशील देश बनाने के रास्ते में कांग्रेस ने खूब अवरोध खड़े किए. पर यह तो मानना ही होगा कि सुप्रीम कोर्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत बार-बार बता चुका है.

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यह जानना जरूरी है कि क्या है समान नागरिक संहिता? दरअसल समान नागरिक संहिता “एक देश एक कानून” की विचारधार पर आधारित है. यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत देश के सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक ही कानून लागू किए जाने का प्रस्ताव है. यूनिफॉर्म सिविल कोड में संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह, तलाक और गोद लेना आदि को लेकर सभी के लिए एक समान कानून बनाया जाना है.

इस बीच, कुछ लोग कहने लगे हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने की स्थिति में आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं पर असर पडेगा. आदिवासी  अपनी परंपराओं के अनुसार चलते हैं. अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हुआ तो आदिवासियों की परंपराएं नष्ट होने लगेंगी.आदिवासियों की पहचान ख़तरे में पड़ जाएगी. पर मेरा मानना है कि सरकार सब की राय लेने के बाद ही यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करना चाहेगी. उसकी तरफ से कोई भी फैसला इस तरह से नहीं लिया जाएग जिससे कि  आदिवासियों की संस्कृति और परंपराएं पर नकारात्मक असर हो. (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद हैं)

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