UP में वापसी के लिए बीजेपी कस रही कमर, विपक्ष के तीखे तेवरों को ‘कुंद’ करने की कोशिश
Uttar Pradesh Assembly Election: संगठन और सरकार की ऊपर से नीचे तक नब्ज टटोल रही दिल्ली
स्वदेश कुमार.
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में पुनः वापसी के लिए ‘मिशन-2022’ पर काम शुरू कर दिया है. एक तरह से अगले वर्ष होने वाले विधान सभा चुनाव के लिए केन्द्र ने कमान अपने हाथों में ले ली है. आलाकमान के के कई बड़े नेता यूपी आकर संगठन और सरकार की ऊपर से नीचे तक नब्ज टटोल रहे हैं, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि नब्ज टटोलते समय सरकार या संगठन की कोई कमजोरी विरोधियों के हाथ नहीं लग जाए. जिससे जनता के बीच योगी सरकार को लेकर किसी तरह का गलत मैसेज जाए. इसी को ध्यान में रखकर बीजेपी आलाकमान संभवता योगी सरकार की कैबिनेट में कोई बड़ा फेरबदल नहीं करेगी ?
आलाकमान को जहां लगेगा कि सुधार की जरूरत है,वहां चुपचाप तरीके से सुधार भी होगा,लेकिन यह सब पर्दे के पीछे से किया जाएगा. हो सकता है इसी लिए योगी कैबिनेट में कुछ विस्तार किया जाए,लेकिन छुट्टी सिर्फ उन मंत्रियों की ही की जाए,जिनकी नकारात्मक छवि के कारण सरकार की बदनामी हो रही है.
आलाकमान को सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि एक तरफ तो कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में योगी सरकार ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया,वहीं विरोधियों ने योगी की कामयाबी को नाकामयाबी में बदलने में बाजी मार ली,जबकि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश के हालात काफी सुधरे हुए थे.इसी लिए अब बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व कोरोना से निपटने मे योगी की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाएगा ताकि कोरोना काल मेें फेली जनता की नाराजगी को कम किया जा सके.
बीजेपी आलाकमान कोरोना काल में योगी सरकार के खिलाफ किए गए दुष्प्रचार को रोकने के लिए बैठक पर बैठक कर रही है. इन बैठकों में कोरोना में आॅक्सीजन व बेड की कमी और इस कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों को लेकर गैरों के साथ अपनों (भाजपा के लोगों) की मुखर हुई नाराजगी की समीक्षा की जा रही है.वैसे कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी के कई नाराज नेता योगी सरकार के खिलाफ मुखर होकर अपना सियासी हित पूरा करने में लगे हैं, यह वह नेता हैं जिनका अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव में टिकट कटने की उम्मीद है.
गौरतलब हो, पंचायत चुनाव हो या फिर विधान सभा के उप-चुनाव में कई बीजेपी विधायकों के क्षेत्र में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था और जनता भी इन नेताओं से नाराज चल रही है. इनको टिकट दिया गया तो इनका चुनाव हारना तय है. लखनऊ में नब्ज टओलने के बाद अब दिल्ली में मिशन यूपी 2022 का खाका खींचा जाएगा. इसमें पूरा जोर कोरोना महामाारी से हुए नुकसान की भरपाई पर रहेगा.
इसके तहत मंत्रिमंडल में कुछ बदलाव के साथ विस्तार व अधिकारियों की चुनाव तक नए सिरे से तैनाती हो सकती है. संगठन में निचले स्तर पर व सरकार के कुछ मंत्रियों की भूमिका बदलने तथा नौकरशाही के कुछ प्रमुख चेहरों की काट-छांट तक ही समिति रखने का मुख्य आधार सत्ता विरोधी लहर को थामना ही होगा,लेकिन योगी के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी,क्योंकि आलाकमान को डर इस बात का भी है कि स्वच्छ छवि वाले योगी को लगा कि आलाकमान द्वारा उनको अपमानित किया जा रहा है तो योगी विद्रोही रूख भी अख्तियार कर सकते हैं.
दरअसल, पंचायत चुनाव के नतीजों ने भाजपा को बेचैन कर रखा है.प्रदेश की नौकरशाही को महत्व और नेताओं की अनदेखी को लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं,सांसदों व विधायकों की शिकवा-शिकायतें शुरू से ही मुखर रही थीं. पर, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भाजपा के ही लोगों का व्यवस्था को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल खड़ा करना और इसी बीच पंचायत चुनाव के नतीजे भाजपा की उम्मीदों के अनुसार न आना, संघ से लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक की चिंता का सबब बन गया है.
भले ही संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और भाजपा के बीएल संतोष के प्रदेश दौरे व लखनऊ प्रवास पूर्व निर्धारित थे, लेकिन दोनों ने अपने दौरे का एजेंडा बदलकर जिस तरह 2022 की चुनावी चुनौतियों के समाधान पर केंद्रित कर दिया उससे यूपी को लेकर बीजेपी आलाकमान की चिंता को समझा जा सकता है.
लगभग दो दशक बाद पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तथा संघ किसी भी स्थिति में प्रदेश को खोना नहीं चाहता है. उसे पता है कि यूपी हारने का मतलब क्या होता है? संतोष के दौरे के एजेंडे से भी यह साफ झलकता दिखा था. भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बीएल संतोष के सामने अपनी पीड़ा रखने वालों में ज्यादातर मंत्री ऐसे थे जिनकी पहचान मुखर या असंतुष्ट के तौर पर है. अलबत्ता कुछ ऐसे मंत्रियों ने भी संतोष से मुलाकात की जिन्हें लेकर विवाद चल रहा है. संतोष के सामने असंतोष जाहिर करने वाले योगी सरकार के मंत्री कितना संतुष्ट हो पाते हैं यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन विवादित मंत्रियों की धड़कनें जरूर बढ़ी हुई हैं. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)