बस्ती में मनरेगा के पैसों का बंदरबांट? नाबालिग बच्चों से भी कराया जा रहा है काम!

बस्ती में मनरेगा के पैसों का बंदरबांट? नाबालिग बच्चों से भी कराया जा रहा है काम!
Basti News

भारत जैसे देश में मनरेगा योजना गरीबों और जरूरतमंदों के लिए वरदान की तरह है। यह ग्रामीण लोगों को बेरोजगारी से लड़ने में मदद करती है। इसका उद्देश्य लगभग 52 मिलियन लोगों की सेवा करना और उनके परिवारों को आजीविका प्रदान करना है।

मनरेगा में फर्जीवाड़े की डीएम से शिकायत

इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिन का रोजगार देकर उनकी आजीविका सुरक्षित करना है। इससे आजीविका मजबूत हुई है और गरीबों को संसाधन उपलब्ध हुए हैं। एक तिहाई नौकरियाँ महिलाओं को सुनिश्चित की गयी हैं। इसने सड़कें, तालाब, नहरें और कुएँ जैसी उत्पादक परिसंपत्तियाँ निर्मित की हैं। योजना का मकसद था किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना, यानी कि सरकार वैसे किसी भी अकुशल मजदूर को प्रत्येक वित्तीय साल में 220 रुपये की दिहाड़ी पर 100 दिनों तक का रोजगार देगी जो काम करने को इच्छुक हों। लेकिन ये योजना ज़मीन पर कितनी कारगर है, इसे समझने के लिए हमने पिछले एक महीने में जिला बस्ती में इसका गहन जायजा लिया। कप्तानगंज क्षेत्र के महुलानी के रहने वाले मो. नईम ने डीएम को शपथ पत्र के साथ मनरेगा में फर्जीवाड़ा करने की शिकायत की है। डीएम ने मामले की जांच के लिए डीपीआरओ को निर्देश दिया है। वहीं बिना काम कराए ही भुगतान लिया जा रहा है। गांव में एक ही चकमार्ग पर नाम बदलकर उस पर भुगतान किया जा रहा है। शिकायत पत्र में मो. नईम ने कहा है कि दुबौलिया ब्लॉक के ग्राम पंचायत महुलानी बुजुर्ग गांव में मनरेगा का धन खपाने के लिए नया तरीका अपनाया जा रहा है। गांव में नाबालिग बच्चों से काम कराया जा रहा है।

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अब मनरेगा में नहीं चलेगा भ्रष्‍टाचार

ऑनलाइन सिस्टम में सेंधमारी अगर हुई है तो ऐसा मुमकिन है कि मनरेगा में सेंधमारी बड़ा आसान है। कितना आसान है और सेंधमारी की पैठ कितनी मजबूत है। इस योजना से जुड़कर रोजगार पाने के लिए मजदूर का एक कार्ड बनता है, जिसे जॉब कार्ड कहा जाता है। इसी कार्ड में मजदूर की दैनिक हाजिरी सहित मजदूर को कितने दिन का रोजगार मिला है जैसी तमाम जानकारियों का लेखा-जोखा होता है। ये कार्ड कोई भी इच्छुक मजदूर पंचायत की सहायता से बनवा सकता है। इस योजना से जुड़कर रोजगार पाने के लिए मजदूर का एक कार्ड बनता हैए जिसे जॉब कार्ड कहा जाता है। इसी कार्ड में मजदूर की दैनिक हाजिरी सहित मजदूर को कितने दिन का रोजगार मिला है जैसी तमाम जानकारियों का लेखा-जोखा होता है। ये कार्ड कोई भी इच्छुक मजदूर पंचायत की सहायता से बनवा सकता है। यह निराशाजनक है कि जो लाखों श्रमिक काम कर रहे थे, अब वे खाली बैठ गए हैं। मनरेगा के माध्यम से प्रतिवर्ष ग्रामीण इलाकों में रोजगार का सृजन किया जाता है। इस योजना में सरकार हर वर्ष बड़ा निवेश करती है। वित्तवर्ष 2024-25 में ही छियासी हजार करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई। यह समझ से परे है कि इतना बड़ा बजट रखने के बावजूद इस योजना से जुड़े श्रमिक क्यों हटाए जा रहे हैं। जबकि संवैधानिक प्रतिबद्धता जताई गई है कि मनरेगा के जरिए ग्रामीण भारत के नागरिकों को देश के विकास से जोड़ा जाएगा। शहरों की तरह गांवों में भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

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