बस्ती में मनरेगा के पैसों का बंदरबांट? नाबालिग बच्चों से भी कराया जा रहा है काम!
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भारत जैसे देश में मनरेगा योजना गरीबों और जरूरतमंदों के लिए वरदान की तरह है। यह ग्रामीण लोगों को बेरोजगारी से लड़ने में मदद करती है। इसका उद्देश्य लगभग 52 मिलियन लोगों की सेवा करना और उनके परिवारों को आजीविका प्रदान करना है।
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ऑनलाइन सिस्टम में सेंधमारी अगर हुई है तो ऐसा मुमकिन है कि मनरेगा में सेंधमारी बड़ा आसान है। कितना आसान है और सेंधमारी की पैठ कितनी मजबूत है। इस योजना से जुड़कर रोजगार पाने के लिए मजदूर का एक कार्ड बनता है, जिसे जॉब कार्ड कहा जाता है। इसी कार्ड में मजदूर की दैनिक हाजिरी सहित मजदूर को कितने दिन का रोजगार मिला है जैसी तमाम जानकारियों का लेखा-जोखा होता है। ये कार्ड कोई भी इच्छुक मजदूर पंचायत की सहायता से बनवा सकता है। इस योजना से जुड़कर रोजगार पाने के लिए मजदूर का एक कार्ड बनता हैए जिसे जॉब कार्ड कहा जाता है। इसी कार्ड में मजदूर की दैनिक हाजिरी सहित मजदूर को कितने दिन का रोजगार मिला है जैसी तमाम जानकारियों का लेखा-जोखा होता है। ये कार्ड कोई भी इच्छुक मजदूर पंचायत की सहायता से बनवा सकता है। यह निराशाजनक है कि जो लाखों श्रमिक काम कर रहे थे, अब वे खाली बैठ गए हैं। मनरेगा के माध्यम से प्रतिवर्ष ग्रामीण इलाकों में रोजगार का सृजन किया जाता है। इस योजना में सरकार हर वर्ष बड़ा निवेश करती है। वित्तवर्ष 2024-25 में ही छियासी हजार करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई। यह समझ से परे है कि इतना बड़ा बजट रखने के बावजूद इस योजना से जुड़े श्रमिक क्यों हटाए जा रहे हैं। जबकि संवैधानिक प्रतिबद्धता जताई गई है कि मनरेगा के जरिए ग्रामीण भारत के नागरिकों को देश के विकास से जोड़ा जाएगा। शहरों की तरह गांवों में भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।