Economic Survey 2021-22: आर्थिक समीक्षा 2021-22 की मुख्‍य बातें

 Economic Survey 2021-22: आर्थिक समीक्षा 2021-22 की मुख्‍य बातें
Economic survey 2022

केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश की. आर्थिक समीक्षा की मुख्‍य बातें इस प्रकार हैं :-

अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति :

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 2020-21 में 7.3 प्रतिशत की गिरावट के बाद 2021-22 में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के 9.3 प्रतिशत (पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार) बढ़ने का अनुमान है.

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2022-23 में जीडीपी की विकास दर 8 - 8.5 प्रतिशत रह सकती है.

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आर्थिक पुनरुद्धार को समर्थन देने के लिए आने वाले साल में वित्‍तीय प्रणाली के साथ निजी क्षेत्र के निवेश में बढ़ोतरी की संभावना है.

2022-23 के लिए यह अनुमान विश्‍व बैंक और एशियाई विकास बैंक की क्रमश: 8.7 और 7.5 प्रतिशत रियल टर्म जीडीपी विकास की संभावना के अनुरूप है.

आईएमएफ के ताजा विश्‍व आर्थिक परिदृश्‍य अनुमान के तहत, 2021-22  और 2022-23 में भारत की रियल जीडीपी विकास दर 9 प्रतिशत और 2023-24 में 7.1 प्रतिशत रहने की संभावना है, जिससे भारत अगले तीन साल तक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था बनी रहेगी.

2021-22 में कृषि और संबंधित क्षेत्रों के 3.9 प्रतिशत; उद्योग के 11.8 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र के 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

मांग की बात करें तो 2021-22 में खपत 7.0 प्रतिशत, सकल स्‍थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) 15 प्रतिशत, निर्यात 16.5 प्रतिशत और आयात 29.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

बृहद आर्थिक स्‍थायित्‍व संकेतकों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है.

ऊंचे विदेशी मुद्रा भंडार, टिकाऊ प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश और निर्यात में वृद्धि के संयोजन से 2022-23 में वैश्विक स्‍तर पर तरलता में संभावित कमी के खिलाफ पर्याप्‍त समर्थन देने में सहायता मिलेगी.

2020-21 में लागू पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में ‘दूसरी लहर’ का आर्थिक प्रभाव कम रहा, हालांकि इसका स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रभाव काफी गंभीर था.

भारत सरकार की विशेष प्रतिक्रिया में समाज के कमजोर तबकों और कारोबारी क्षेत्र को प्रभावित होने से बचाने के लिए सुरक्षा जाल तैयार करना, विकास दर को                                             गति देने के लिए पूंजीगत व्‍यय में खासी बढ़ोतरी और टिकाऊ दीर्घकालिक विस्‍तार के लिए आपूर्ति के क्षेत्र में सुधार शामिल रहे.

सरकार की लचीली और बहुस्‍तरीय प्रतिक्रिया आंशिक रूप से ‘त्‍वरित’ रूपरेखा पर आधारित है, जिसमें बेहद अनिश्चिता के माहौल में खामियों को दूर करने पर जोर दिया गया और 80 हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स (एचएफआई) का इस्‍तेमाल किया गया.

  राजकोषीय मजबूती :

 2021-22 बजट अनुमान (2020-21 के अनंतिम आंकड़ों की तुलना में) 9.6 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि की तुलना में केन्‍द्र सरकार की राजस्‍व प्राप्तियां (अप्रैल-नवम्‍बर, 2021) 67.2 प्रतिशत तक बढ़ गईं.

सालाना आधार पर अप्रैल-नवम्‍बर, 2021 के दौरान सकल कर-राजस्‍व में 50 प्रतिशत से ज्‍यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई. यह 2019-20 के महामारी से पहले के स्‍तरों की तुलना में भी बेहतर प्रदर्शन है.

अप्रैल-नवम्‍बर, 2021 के दौरान बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रों पर जोर के साथ पूंजी व्‍यय में  सालाना आधार पर 13.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई.

टिकाऊ राजस्‍व संग्रह और एक लक्षित व्‍यय नीति से अप्रैल-नवम्‍बर, 2021 के दौरान राजको‍षीय घाटे को बजट अनुमान के 46.2 प्रतिशत के स्‍तर पर सीमित रखने में सफलता मिली.

कोविड-19 के चलते उधारी बढ़ने के साथ 2020-21 में केन्‍द्र सरकार का कर्ज बढ़कर जीडीपी का 59.3 प्रतिशत हो गया, जो 2019-20 में जीडीपी के 49.1 प्रतिशत के स्‍तर पर था. हालांकि अर्थव्‍यवस्‍था में सुधार के साथ इसमें गिरावट आने का अनुमान है.

 बाह्य क्षेत्र: 

भारत के वाणिज्यिक निर्यात एवं आयात ने दमदार वापसी की और चालू वित्‍त वर्ष के दौरान यह कोविड से पहले के स्‍तरों से ज्‍यादा हो गया.

पर्यटन से कमजोर राजस्‍व के बावजूद प्राप्तियों और भुगतान के महामारी से पहले के स्‍तरों पर पहुंचने के साथ सकल सेवाओं में अच्‍छी बढ़ोतरी दर्ज की गई.

विदेशी निवेश में निरंतर बढ़ोतरी, सकल बाह्य वाणिज्यिक उधारी में बढ़ोतरी, बैंकिंग पूंजी में सुधार और अतिरिक्‍त विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) आवंटन के दम पर 2021-22 की पहली छमाही में सकल पूंजी प्रवाह बढ़कर 65.6 बिलियन डॉलर हो गया.

सितम्‍बर 2021 के अंत तक एक साल पहले के 556.8 बिलियन डॉलर की तुलना में भारत का बाह्य कर्ज बढ़कर 593.1 बिलियन डॉलर हो गया. इससे आईएमएफ द्वारा अतिरिक्‍त एसडीआर आवंटन के साथ ही ज्‍यादा वाणिज्यिक उधारी के संकेत मिलते हैं.

2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से ऊपर निकल गया और यह 31 दिसम्‍बर, 2021 तक 633.6 बिलियन डॉलर के स्‍तर पर पहुंच गया.

नवम्‍बर, 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत चौथा सबसे ज्‍यादा विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश था.

मौद्रिक प्रबंधन तथा वित्तीय मध्यस्थताः

 प्रणाली में तरलता अधिशेष रही

2021-22 में रेपो दर 4 प्रतिशत पर बनी रही

भारतीय रिजर्व बैंक ने और अधिक तरलता प्रदान करने के लिए जी-सेक अधिग्रहण कार्यक्रम तथा सामाजिक दीर्घकालिक रेपो संचालन जैसे विभिन्न कदम उठाए हैं.

वाणिज्यिक बैंकिंग प्रणाली द्वारा अच्छी तरह महामारी के आर्थिक झटके को दूर कर दिया हैः

2021-22 में वार्षिक आधार पर ऋण वृद्धि अप्रैल, 2021 के 5.3 प्रतिशत से बढ़कर 31 दिसंबर, 2021 तक 9.2 प्रतिशत हुई

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का कुल अनुत्पादक अग्रिम अनुपात 2017-18 अंत के 11.2 प्रतिशत से घटकर सितंबर, 2021 के अंत में 6.9 प्रतिशत हो गया

समान अवधि के दौरान शुद्ध अनुत्पादक अग्रिम अनुपात 6 प्रतिशत से घटकर 2.2 प्रतिशत हो गया

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का पूंजी-जोखिम भारांक परिसंपत्ति अनुपात 2013-14 के 13 प्रतिशत से बढ़ते हुए सितंबर, 2021 के अंत में 16.54 प्रतिशत रहा.

सितंबर, 2021 में समाप्त होने वाली अवधि के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए परिसंपत्तियों पर रिटर्न और इक्विविटी पर रिटर्न सकारात्मक बना रहा है.

पूंजी बाजारों के लिए असाधारण वर्षः

अप्रैल-नवंबर, 2021 में 75 प्रारंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से 89,066 करोड़ रुपये उगाहे गए, जो पिछले एक दशक के किसी भी वर्ष में सबसे अधिक है.

18 अक्टूबर, 2021 को सेंसेक्स और निफ्टी 61,766 तथा 18,477 की ऊंचाई पर पहुंचे.

प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्था में भारतीय बाजारों ने अप्रैल-दिसंबर, 2021 में समकक्ष बाजारों से अच्छा प्रदर्शन किया.

मूल्य तथा मुद्रास्फीतिः

 औसत शीर्ष सीपीआई-संयुक्त मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सुधरकर 5.2 प्रतिशत हुई, जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह 6.6 प्रतिशत थी.

खुदरा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार के कारण आई.

2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 2.9 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 9.1 प्रतिशत थी.

वर्ष के दौरान प्रभावी आपूर्ति प्रबंधन ने अधिकतर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखा.

दालों और खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए गए.

सैंट्रल एक्साइज में कमी तथा बाद में अधिकतर राज्यों द्वारा वैल्यू एडेट टैक्स में कटौतियों से पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में सुधार लाने में मदद मिली.

थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 12.5 प्रतिशत बढ़ी.

ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआः

पिछले वर्ष में निम्न आधार

आर्थिक गतिविधियों में तेजी

कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में भारी वृद्धि तथा अन्य आयातित वस्तुओं तथा

उच्च माल ढुलाई लागत

सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति के बीच अंतरः

मई, 2020 में यह अंतर शीर्ष पर 9.6 प्रतिशत  रहा.

लेकिन इस वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति के दिसंबर, 2021 की थोक मुद्रास्फीति के 8.0 प्रतिशत के नीचे आने से इस अंतर में उलटफेर हुआ.

इस अंतर की व्याख्या निम्नलिखित कारकों द्वारा की जा सकती हैः

बेस प्रभाव के कारण अंतर

दो सूचकांकों के स्कोप तथा कवरेज में अंतर

मूल्य संग्रह

कवर की गई वस्तुएं

वस्तु भारों में अंतर तथा

आयातित कच्चे मालों की कीमत ज्यादा होने के कारण डब्ल्यूपीआई आधारित मुद्रास्फीति संवेदी हो जाती है.

डब्ल्यूपीआई में बेस प्रभाव की क्रमिक समाप्ति से सीपीआई-सी तथा डब्ल्यूपीआई में अंतर कम होने की आशा की जाती है.

सतत विकास तथ जलवायु परिवर्तनः

 नीति आयोग एसडीजी इंडिया सूचकांक तथा डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया, जबकि यह 2019-20 में 60 तथा 2018-19 में 57 था.

फ्रंट रनर्स (65-99 स्कोर) की संख्या 2020-21 में 22 राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में बढ़ी, जो 2019-20 में 10 थी.

नीति आयोग पूर्वोत्तर क्षेत्र जिला एसडीजी सूचकांक 2021-22 में पूर्वोत्तर भारत में 64 जिले फ्रंट रनर्स तथा 39 जिले परफॉर्मर रहे.

भारत, विश्व में दसवां सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला देश है.

2010 से 2020 के दौरान वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में 2020 में भारत का विश्व में तीसरा स्थान रहा.

2020 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र में कवर किए गए वन 24 प्रतिशत रहे यानी विश्व के कुल वन क्षेत्र का 2 प्रतिशत.

अगस्त, 2021 में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2021 अधिसूचित किए गए, जिसका उद्देश्य 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करना है.

प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक दायित्व पर प्रारूप विनियमन अधिसूचित किया गया.

गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के तटों पर अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की अनुपालन स्थिति 2017 के 39 प्रतिशत से सुधर कर 2020 में 81 प्रतिशत हो गई.

उत्सर्जित अपशिष्ट में 2017 के 349.13 मिलियन लीटर दैनिक (एमएलडी) से 2020 में 280.20 एमएलडी की कमी आई.

प्रधानमंत्री ने नवंबर, 2021 में ग्लास्गो में आयोजित पक्षों के 26वें सम्मेलन (सीओपी-26) के राष्ट्रीय वक्तव्य के हिस्से के रूप में उत्सर्जन मे कमी लाने के लिए 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की.

एक शब्द ‘लाइफ’ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) प्रारंभ करने की आवश्यकता महसूस करते हुए बिना सोचे-समझे तथा विनाशकारी खपत के बदले सोचपूर्ण तथा जानबूझकर उपयोग करने का आग्रह किया गया है.

कृषि तथा खाद्य प्रबंधनः

 पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में विकास देखा गया. देश के कुल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण 18.8 प्रतिशत (2021-22) की वृद्धि हुई, इस तरह 2020-21 में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसल विविधिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा रहा है.

2014 की एसएएस रिपोर्ट की तुलना में नवीनतम सिचुएशन असेसमेंट सर्वे (एसएएस) में फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्तियों में 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

पशुपालन, डेयरी तथा मछलीपालन सहित संबंधित क्षेत्र तेजी से उच्च वृद्धि वाले क्षेत्र के रूप में तथा कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण वृद्धि के प्रमुख प्रेरक के रूप में उभर रहे हैं.

2019-20 में समाप्त होने वाले पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15 प्रतिशत के सीएजीआर पर बढ़ा रहा.

कृषि परिवारों के विभिन्न समूहों में यह स्थाई आय का साधन रहा है और ऐसे उन परिवारों की औसत मासिक आय का यह लगभग 15 प्रतिशत है.

अवसंरचना विकास, रियायती परिवहन तथा माइक्रो खाद्य उद्यमों के औपचारिकरण के लिए समर्थन जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से सरकार खाद्य प्रसंस्करण को सहायता देती है.

भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य प्रबंधन कार्यक्रम चलाता है. सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क कवरेज का और अधिक विस्तार किया है.

 उद्योग और बुनियादी ढ़ांचाः

 अप्रैल-नवम्बर, 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (आईआईपी) बढ़कर 17.4 प्रतिशत (वर्ष दर वर्ष) हो गया. यह अप्रैल-नवम्बर, 2020 में (-)15.3 प्रतिशत था.

भारतीय रेलवे के लिए पूंजीगत व्यय 2009-2014 के दौरान 45,980 करोड़ रुपये के वार्षिक औसत से बढ़कर 2020-21 में 155,181 करोड़ रुपये हो गया और 2021-22 में इसे 215,058 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का बजट रखा गया है, इस प्रकार इसमें 2014 के स्तर की तुलना में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है.

वर्ष 2020-21 में प्रतिदिन सड़क निर्माण की सीमा को बढ़ाकर 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन कर दिया गया है जो 2019-20 में 28 किलोमीटर प्रतिदिन थी, इस प्रकार इसमें 30.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है.

बड़े कॉरपोरेट के बिक्री अनुपात से निवल लाभ वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितम्बर तिमाही में महामारी के बावजूद 10.6 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया है. (आरबीआई अध्ययन)

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के शुभारंभ से लेनदेन लागत घटाने और व्यापार को आसान बनाने के कार्य में सुधार लाने के उपायों के साथ-साथ डिजिटल और वस्तुगत दोनों बुनियादी ढांचे को बढ़ावा मिला है, जिससे रिकवरी की गति में मदद मिलेगी.  

सेवाएं:

जीवीए की सेवाओं ने वर्ष 2021-22 की जुलाई-सितम्बर तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है. व्यापार, परिवहन आदि जैसे कॉन्टेक्ट इंटेन्सिव सेक्टरों का जीवीए अभी भी पूर्व-महामारी स्तर से नीचे बना हुआ है.

समग्र सेवा क्षेत्र जीवीए में 2021-22 में 8.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है.

अप्रैल-दिसम्बर, 2021 के दौरान रेल मालभाड़ा ने पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया है जबकि हवाई मालभाड़ा और बंदरगाह यातायात लगभग अपने पूर्व-महामारी स्तरों तक पहुंच गये हैं. हवाई और रेल यात्री यातायात में धीर-धीरे वृद्धि हो रही है जो यह दर्शाता है कि महामारी की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर का प्रभाव कहीं अधिक कम था.

वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया जो भारत में कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग 54 प्रतिशत है.

आईटी-बीपीएम सेवा राजस्व 2020-21 में 194 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में 1.38 लाख कर्मचारी शामिल किए गए.

प्रमुख सरकारी सुधारों में आईटी-बीपीओ क्षेत्र में टेलिकॉम विनियमों को हटाना और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना शामिल है.

सेवा निर्यात ने 2020-21 की जनवरी-मार्च तिमाही में पूर्व-महामारी स्तर को पार कर लिया और इसमें 2021-22 की पहली छमाही में 21.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई. सॉफ्टवेयर और आईटी सेवा निर्यात के लिए वैश्विक मांग से इसमें मजबूती आई है.

भारत अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बन गया है. नये मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स की संख्या 2021-22 में बढ़कर 14 हजार से अधिक हो गई है जो 2016-17 में केवल 735 थी.

44 भारतीय स्टार्ट-अप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न दर्जा हासिल किया इससे यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 83 हो गई है और इनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं.

सामाजिक बुनियादी ढ़ांचा और रोजगारः

 16 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 टीके की 157.94 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं. इसमें 91.39 करोड़ पहली खुराक और 66.05 करोड़ दूसरी खुराक शामिल हैं.

अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान से रोजगार सूचकांक वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान वापस पूर्व-महामारी स्तर पर आ गए हैं.

मार्च, 2021 तक प्राप्त तिमाही आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएफएलएस) आंकड़ों के अनुसार महामारी के कारण प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोजगार लगभग पूर्व महामारी स्तर तक वापस आ गये हैं.

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) आंकड़ों के अनुसार दूसरी कोविड लहर के दौरान रोजगारों का औपचारीकरण जारी रहा. कोविड की पहली लहर की तुलना में रोजगारों के औपचारीकरण पर कोविड का प्रतिकूल प्रभाव कम रहा है.

सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर जीडीपी के अनुपात के रूप में केन्द्र और राज्यों का व्यय जो 2014-15 में 6.2 प्रतिशत था 2021-22 (बजट अनुमान) में बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गया.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 के अनुसार-

कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2019-21 में घटकर 2 हो गई जो 2015-16 में 2.2 थी.

शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच साल से कम शिशुओं की मृत्यु दर में कमी हुई है और अस्पतालों/प्रसव केन्द्रों में शिशुओं के जन्म में 2015-16 की तुलना में 2019-21 में सुधार हुआ हैं.

जल जीवन मिशन के तहत 83 जिले ‘हर घर जल’, जिले बन गए हैं.

महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित श्रम के लिए बफर उपलब्ध कराने हेतु महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस) के लिए निधियों का अधिक आवंटन.

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