सीएम योगी ने बताया किस तरह भारत सुरक्षा को लेकर हो रहा आत्मनिर्भर

भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच अब एक अहम मोड़ आया है। दोनों देशों ने युद्ध विराम पर सहमति जताई है, जिससे सीमा पर हो रही गोलीबारी और सैन्य गतिविधियों पर फिलहाल विराम लगा है।
हालांकि सवाल यह उठता है कि जो विपक्ष अभी तक सरकार के साथ खड़ा था और पाकिस्तान को करारा जवाब देने की मांग कर रहा था, क्या वह अब संघर्ष विराम के फैसले से भी सहमत है?
इस मुद्दे पर विपक्ष के कई बड़े नेताओं की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, जो यह संकेत देती हैं कि शांति की दिशा में उठाए गए कदमों का स्वागत तो हो रहा है, लेकिन कुछ गंभीर सवाल भी उठाए जा रहे हैं।
महबूबा मुफ्ती की प्रतिक्रिया: अमेरिका को दिया धन्यवाद
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महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सबसे ज्यादा तकलीफ जम्मू-कश्मीर के लोगों को होती है, क्योंकि युद्ध की सारी मार सबसे पहले सीमावर्ती क्षेत्रों के नागरिकों को झेलनी पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले के बाद शायद लोग लंबे समय बाद चैन की नींद सो पाएंगे
उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी: देरी से हुआ फैसला
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने संघर्ष विराम का स्वागत करते हुए कहा कि अगर यह फैसला दो-तीन दिन पहले लिया गया होता, तो कई लोगों की जान बच सकती थी। उन्होंने जम्मू, पुंछ और रजौरी जैसे इलाकों में हुए नुकसान पर चिंता जताई और सरकार से अपील की कि वह तुरंत राहत और पुनर्वास कार्य शुरू करे।
उमर अब्दुल्ला ने प्रशासन को निर्देश देने की मांग की कि नुकसान का आकलन किया जाए और जिन परिवारों को क्षति हुई है, उन्हें राहत दी जाए।
कपिल सिब्बल: निर्दोषों की जान अब नहीं जाएगी
राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि अब निर्दोष लोगों की जानें नहीं जाएंगी। उन्होंने संघर्ष विराम का स्वागत किया, लेकिन साथ ही पाकिस्तान से यह भी कहा कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे, क्योंकि जब तक आतंकी गतिविधियां बंद नहीं होतीं, तब तक यह संघर्ष अस्थायी ही रहेगा।
उन्होंने कहा कि असली समाधान तभी संभव है जब पाकिस्तान अपनी जमीन पर मौजूद आतंकी कैंपों को पूरी तरह खत्म करे।
अखिलेश यादव: शांति भी जरूरी, संप्रभुता भी
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने एक ट्वीट के माध्यम से कहा कि "शांति सर्वोपरि है और संप्रभुता भी।" उनका यह बयान इस ओर इशारा करता है कि वे संघर्ष विराम का समर्थन करते हैं, लेकिन भारत की सुरक्षा और गरिमा से कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस की मांग: सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र
कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि युद्ध विराम की घोषणा के बाद राजनीतिक दलों को विश्वास में लेना आवश्यक है।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि संसद का एक विशेष सत्र बुलाया जाए, जिसमें पिछले 18 दिनों की घटनाओं पर चर्चा की जाए। यह सत्र यह स्पष्ट करेगा कि भारत को क्या हासिल हुआ और क्या नुकसान हुआ।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी इस विषय पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि संघर्ष विराम की जानकारी भारतीय नागरिकों को अमेरिकी राष्ट्रपति के जरिए मिली, जो असहज करने वाली बात है। उन्होंने मांग की कि भारत सरकार संसद के माध्यम से देश को बताएं कि पिछले कुछ दिनों में क्या हुआ, और क्या यह निर्णय देश के हित में है।
मनोज झा: भारत ने कभी युद्ध नहीं चाहा
आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि भारत ने कभी युद्ध नहीं चाहा, हमेशा हम पर युद्ध थोपा गया है। लेकिन जब भी युद्ध हुआ, हमने साहस और बहादुरी के साथ लड़ा। उन्होंने कहा कि सेना ने सिर्फ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जबकि पाकिस्तान की ओर से नागरिक क्षेत्रों पर हमला किया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि यह फर्क भारत और पाकिस्तान की सैन्य सोच को दर्शाता है। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए और सेना के पराक्रम की प्रशंसा के साथ-साथ एक स्पष्ट संदेश दिया जाए।विपक्ष का समर्थन, लेकिन सवाल भी
विपक्ष की अधिकतर प्रतिक्रियाएं शांति की दिशा में उठाए गए इस कदम का समर्थन करती हैं, लेकिन सरकार से पारदर्शिता और जिम्मेदारी की भी मांग की जा रही है। महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला, कपिल सिब्बल, अखिलेश यादव, जयराम रमेश, पवन खेड़ा और मनोज झा जैसे नेताओं की टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि शांति की जरूरत सभी को है, लेकिन देश की सुरक्षा और संप्रभुता भी उतनी ही जरूरी मानी जा रही है।
अब यह देखना होगा कि यह संघर्ष विराम सिर्फ अस्थायी पड़ाव बनकर रह जाता है या वास्तव में भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक स्थायी सुधार की ओर इशारा करता है।