OPINION: पाठ्यक्रम में बदलाव पर बेवजह राजनीति
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-राजेश माहेश्वरी
विघालयी पाठ्यक्रम से मुगलों का इतिहास हटाने को लेकर बहस रूकने का नाम नहीं ले रही. पाठ्यक्रम में बदलाव के निर्णय के बाद सरकार विपक्ष के निशाने पर है. विपक्ष का आरोप है कि बीजेपीनीत एनडीए सरकार इतिहास बदलने की कोशिश कर रही है. इस पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी की तरफ से सफाई भी सामने आई, जिसमें कहा गया कि पढ़ाई के बोझ को कम करने के लिए मुगलों के चैप्टर हटाने का निर्णय लिया गया है. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब मुगलों से जुड़ी किसी चीज को बदला या फिर हटाया गया हो. इससे पहले भी देश और खासतौर पर उत्तर प्रदेश में मुगलकाल की कई सड़कों और जगहों के नाम बदले जा चुके हैं.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी 12वीं क्लास की किताबों से कुछ चैप्टर हटाए गए हैं, जिनमें ‘थीम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री 2’ के चैप्टर ‘किंग्स एंड क्रॉनिकल्सः द मुगल कोर्ट’ को हटाया गया है. राजनीति शास्त्र से भी कुछ चैप्टर हटाए गए हैं. जिसमें कांग्रेस शासनकाल पर आधारित एरा ऑफ वन पार्टी डॉमिनेंस शामिल है. इसके अलावा 11वीं के सिलेबस से भी कुछ हिस्से हटाए गए हैं. जिसमें सेंट्रल इस्लामिक लैंड और कन्फ्रंटेशन ऑफ कल्चर्स जैसे चैप्टर शामिल हैं. इसमें मुगलों का इतिहास बताया गया था, जिसे पिछले कई सालों से स्कूलों में पढ़ाया जा रहा था. जैसे ही ये खबर सामने आई तो राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई.
इस पूरे विवाद के बीच सरकार ने कहा है कि एनसीईआरटी ने पाठयक्रम में बदलाव के लिए 25 बाहरी विशेषज्ञों से परामर्श लिया है. 18 जुलाई, 2022 को लोकसभा में दिए गए जवाब से पता चलता है कि एनसीईआरटी के सात सब्जेक्ट डिपार्टमेंट द्वारा दो से पांच की संख्या वाले एक्सपर्ट ग्रुप्स को नियुक्त किया गया था. किताबों में बदलाव के लिए एनसीईआरटी के खुद के एक्सपर्ट्स भी लगे हुए थे. एनसीईआरटी की किताबों से हटाए गए टॉपिक्स को लेकर लगातार विपक्ष सवाल उठा रहा है. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि स्कॉलर्स ने भी इस पर सवाल किया है.
पाठ्यक्रम में बदलाव का असर यह होगा कि अब पाठ्य पुस्तकों में मुगल साम्राज्य और उसके बादशाहों-बाबर, अकबर, शाहजहां, औरंगजेब आदि-का इतिहास नहीं पढ़ाया जाएगा. महात्मा गांधी की हत्या के बाद आर.एस.एस. सरीखे कथित सांप्रदायिक संगठनों पर पाबंदी लगाई गई थी. आरएसएस गांधी को पसंद नहीं करता था, क्योंकि गांधी देश में हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार थे. कुछ हिंदूवादी और उग्र संगठन भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने पर आमादा थे, लिहाजा गांधी की हत्या के कई प्रयास किए गए. पाठ्यक्रम से इसे हटा दिया गया है, क्योंकि संघ पर पाबंदी तात्कालिक थी और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने ही उस पाबंदी को हटाया था. उस दौरान के पत्रों को पढना चाहिए कि आखिर सच क्या था?
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उन्हें क्यों न पढ़ाया जाना चाहिए? गुजरात के गोधरा में हिंदू कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया और फिर 2002 के सांप्रदायिक दंगे भडके. ऐसे कमोबेश सैकड़ों दंगे भारत की जमीं पर भडके और फैले हैं, बल्कि गोधरा से भी बर्बर और वीभत्स दंगों का साक्षी यह देश रहा है, पाठ्य पुस्तकों में किन दंगों को पढ़ाएंगे और किन्हें हटाएंगे, यह चयन करना असंभव है, लिहाजा गोधरा दंगों को हटाना विवेकपूर्ण निर्णय है. नफरती दंगों को छात्रों को पढ़ाने से कौन-सी विद्वत्ता और कौन-सा ज्ञान हासिल होगा? हिंदी की पुस्तक से महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता को हटाना हमें भी पीडित कर गया, लेकिन साहित्यिक विश्लेषण हमें स्पष्ट बताता है कि निराला के बाद करीब आठ दशकों की हिंदी कविता रची गई है. मूर्धन्य, समकालीन, प्रासंगिक कवियों की भरमार है, जो प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी आदि छायावादी कवियों से कमतर नहीं हैं. कविता का बहुत विस्तार हुआ है. छात्र उन कवियों और लेखकों की रचनाएं क्यों न पढ़ें? साहित्यिक विकास पर छाती पीटना महज प्रलाप है.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की स्थापना एक स्वायत्त संस्था के तौर पर 1961 में की गई थी. भारत में स्कूली शिक्षा के गुणात्मक सुधार में सहायता करने के लिए मुख्य रूप से इसकी स्थापना की गई.ऐसा कहा जाता है कि इसने राष्ट्र-निर्माण और देश भर में नैरेटिव और विचारों को स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई है. पिछले कुछ सालों में एनसीईआरटी ने अपने सिलेबस की विषय-वस्तु और सिद्धांत में कई बदलाव किए हैं, हालांकि इतिहास से कुछ अध्यायों को हटाने के लिए कई बार इसकी आलोचना भी हुई है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि सिलेबस में बदलाव किया गया है. सीबीएसई कई राज्य बोर्डों के साथ अपने पाठ्यक्रम में कक्षा 1 से 12 के लिए एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों का अनुसरण कर रहा है. इसके अलावा छात्र कई प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे आईआईटी, एनईईटी, यूपीएससी आदि के लिए इन किताबों पर भरोसा करते हैं. एनसीईआरटी के अनुसार, सिलेबस में जो बदलाव हुआ है वह देश भर के उन सभी स्कूलों पर लागू होगा जहां एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाई जा रही हैं. सीबीएसई और उत्तर प्रदेश बोर्ड सहित कई अन्य बोर्ड एनसीईआरटी की किताबों को मान्यता देता हैं. ये बदलाव चालू शैक्षणिक सत्र से लागू किए जाएंगे.
इससे पहले भी एनडीए सरकार ने सिलेबस बदलने की कोशिश की थी, जिसे उसने पहले के ‘मार्क्सवादी’ प्रभाव को हटाने वाला करार दिया था. 2005 में एनसीईआरटी सिलेबस में बड़े बदलाव हुए और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (2005) पेश की गई. इसके तहत कांग्रेस सरकार ने पिछली बीजेपी सरकार द्वारा किए गए बदलावों को पूर्ववत करने की कोशिश की. 2017 में एनसीईआरटी ने 182 पाठ्यपुस्तकों और टॉपिक्स को अपडेट किया जो वर्तमान सरकार की नीतियों से मेल खाता है. विवाद और बहस के बीच एनसीईआरटी के निदेशक ने स्पष्ट किया है कि ‘ये बात बिल्कुल झूठ है कि इतिहास को बदला जा रहा है. कोरोनाकाल के दौरान से सिलेबस कम करने की कोशिश शुरू हुई थी, जिसके तहत ये किया गया है. मुगलों का इतिहास सिलेबस से नहीं हटाया गया है, जिन चीजों का रिपीटिशन हो रहा था उन्हें हटाया गया है.’ बावजूद इस मुद्दे पर राजनीति जारी है.
हमें आजादी मिले 75 साल हो चुके हैं. आज भारत परमाणु-शक्ति वाला देश है, औद्योगिक और प्रौद्योगिकी सम्पन्न देशा है, विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. दुनिया का सबसे बड़ा, सकारात्मक और सार्थक बाजार वाला देश है. हम हथियार से विमान तक खुद बनाते हैं. साफ्टवेयर में दुनिया का सबसे ताकतवर देश है. फिर भी हम स्वतंत्रता से पहले के पूर्वाग्रही इतिहास को कब तक अपने छात्रों को पढ़ाते रहेंगे? इतिहास से खिलवाड़ नहीं किया जा रहा, बल्कि ‘नए तथ्यों’ को जोडने के प्रयास किए जा रहे हैं. किसी भी परिवर्तन पर हो-हल्ला मचाने की बजाय हमें उस परिवर्तन की सच्चाई को समझना श्रेयस्कर रहता है. लेकिन राजनीतिक दलों की राजनीति ही करनी है तो उसका इलाज किसी के पास नहीं है.
-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं.