Chaitra Navratri 2023: Mata Brahmacharini की पूजा कैसे करें और क्या हैं विधि, जानें- यहां

Chaitra Navratri 2023: Mata Brahmacharini की पूजा कैसे करें और क्या हैं विधि, जानें- यहां
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माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है. देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है. ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है. इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है.

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है. देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है. साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं.

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पौराणिक मान्यताएँ
मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे. हालाँकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई. ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया.

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कहानी यही ख़त्म नहीं होती है. उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया. देवी पहाड़ पर गईं और वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया. इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी. अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया.

ज्योतिषीय संदर्भ
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं. देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं.

मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

कवच मंत्र
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी.
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो.
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी॥

(उपरोक्त जानकारी Astrosage.com से साभार)

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