यूपी के इस रूट पर 31 साल बाद हुआ ये बदलाव, ट्रेनों की बढ़ेगी रफ्तार

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यूपी के इस रूट पर 31 साल बाद हुआ ये बदलाव, ट्रेनों की बढ़ेगी रफ्तार
यूपी के इस रूट पर 31 साल बाद हुआ ये बदलाव, ट्रेनों की बढ़ेगी रफ्तार

देश का रेलवे बुनियादी ढांचा विशालतम होने के साथ बेहद पुराना है। इस रेलवे विभाग ने 31 साल बाद सिग्नल सिस्टम में परिवर्तन किया है। उत्तर मध्य रेलवे के अंतर्गत प्रयागराज जंक्शन पर रविवार को रूट रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली को हटाकर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली को स्थापित किया गया। भारतीय रेलवे ने एक लाख कि.लो से अधिक फैले देशव्यापी टैªक नेटवर्क के जरिये प्रतिदिन ढ़ाई करोड़ यात्री अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचते है। इस नए सिस्टम की मदद से अब ट्रेनों की मॉनिटरिंग और संचालन कंप्यूटर स्क्रीन के जरिए होगा,

जिससे न केवल ट्रेनों की रफ्तार में बढ़ोतरी होगी बल्कि सुरक्षा प्रणाली भी और बेहतर हो जाएगी। रामबाग स्टेशन से प्रयागराज जंक्शन तक आज ट्रेन की स्पीड का ट्रायल किया जाएगा। रेल संरक्षा आयुक्त पूर्वाेत्तर परिमंडल प्रणजीव सक्सेना आज निरीक्षण करेंगे। इसके बाद सीआरएस स्पेशल की ओर से प्रयागराज जंक्शन से प्रयागराज रामबाग रेलखंड पर ट्रायल किया जाना है। ट्रेन की रफ्तार का ट्रायल के बाद इस रेल ट्रैक पर ट्रेनों के संचालन की अनुमति मिलेगी। उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज मंडल का यह बदलाव ट्रेनों की सुरक्षा और संचालन में एक अगला लेख ट मील का पत्थर साबित होगा। इस नई प्रणाली से रेलवे अफसर अब कंप्यूटर स्क्रीन पर ट्रैफिक सिग्नल की मॉनिटरिंग कर सकेंगे,

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जिससे संचालन और प्रबंधन में सरलता और तेजी आएगी। आपको बता दें कि रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम वहीं सिस्टम है जिसमें रेलवे की ओर से ट्रेनों को सिगनल के तहत रूट पर पास दिया जाता है। इसके बाद ट्रेनें आगे बढ़ती हैण् इस सिस्टम में मानवीय चूक पर हादसों की संभावना रहती है। रविवार को इस तकनीकी परिवर्तन के लिए मेगा ब्लॉक लिया गया और 500 से अधिक रेलवे कर्मचारियों के साथ ठेकेदार के 500 कर्मचारियों ने मिलकर इस कार्य को पूरा किया। अब इस नई प्रणाली के जरिए एक साथ दो ट्रेनों को भी जंक्शन पर प्रवेश कराया जा सकेगा, जो पहले एक बड़ी चुनौती थी। प्रयागराज में 1869 में पहली बार ट्रेन चली थी, तब से लेकर अब तक सिग्नल प्रणाली में कई बदलाव हुए हैं। 1993 में यहां रूट रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली स्थापित की गई थी, लेकिन ट्रैफिक के बढ़ते दबाव और रेलवे के दोहरीकरण की योजनाओं को देखते हुए इस पुरानी तकनीक को आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग से बदलने का निर्णय लिया गया। काफी समय से इस पर काम चल रहा था।

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