हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की लगातार बढ़ते दखल पर अंकुश लगाने के लिये अमेरिका, ब्रिटेन व आस्ट्रेलिया द्वारा नया गठबंधन ऑक्स बनाना नये कूटनीतिक समीकरणों को जन्म दे सकता है। चीन इससे तिलमिलाया हुआ है और इसे शीतयुद्ध को बढ़ावा देने वाला बता रहा है। पिछले दिनों भारत-आस्ट्रेलिया के मंत्रियों के बीच हुई बैठक में भी हिंद प्रशांत का मुद्दा मुख्य रहा था। वहीं शीघ्र ही अमेरिका में क्वाड देशों की बैठक मौजूदा चुनौतियों को लेकर होने वाली है। इस समझौते के तहत अमेरिका-ब्रिटेन की मदद से आस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बियों की तकनीक व सहयोग दिया जायेगा। ये पनडुब्बियां हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी हलचल पर नजर रखने के अलावा युद्ध की स्थिति हेतु मारक क्षमता से लैस होंगी। निस्संदेह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के संरचनात्मक निर्माण तथा समुद्री सीमाओं के अतिक्रमण से दुनिया के देश परेशान हैं। चीन व अमेरिका के व्यापार युद्ध ने इस तल्खी को और बढ़ाया है। भूभागों व महासागरों पर अतिक्रमण को जिस तेजी से चीन अंजाम दे रहा था, उसके प्रतिकार में ऑक्स का अस्तित्व में आना लाजिमी ही था। अमेरिका ने चीन की रणनीतिक घेराबंदी के लिये कई गठबंधन बनाये हैं। अमेरिका को चिंता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी और चीन, रूस व पाक का गठजोड़ नयी चुनौती पैदा कर सकता है।
दरअसल, अमेरिका इस बात को महसूस करता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र विश्व का महत्वपूर्ण व्यापारिक व सामरिक मार्ग है, जिस पर चीन का वर्चस्व कायम होना उसके लिये बड़ी मुश्किल पैदा कर सकता है। वैश्विक जगत में उभरते नए समीकरणों के मुकाबले के लिये अमेरिका अपनी सुविधा के अनुसार कूटनीतिक कदम उठा रहा है। जहां एक ओर चीन ऐतिहासिक सुरक्षा समझौते ऑक्स को गैर जिम्मेदाराना और शीत युद्ध की मानसिकता दर्शाने वाला बता रहा है, वहीं अमेरिका, ब्रिटेन व आस्ट्रेलिया इस आरोप को सिरे से खारिज कर रहे हैं। जानकार बता रहे हैं कि आस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पनडुब्बी की तकनीक मुहैया कराना चीन के प्रभाव कम करने का ही प्रयास है। दरअसल, इस क्षेत्र में विवाद के चलते ही पिछले पचास सालों में अमेरिका ने पहली बार किसी देश से पनडुब्बी तकनीक साझा की है। इससे पहले सिर्फ ब्रिटेन के साथ यह तकनीक साझा की गई थी। अब आस्ट्रेलिया परमाणु संचालित पनडुब्बियों का निर्माण करने में सक्षम हो पायेगा, जो परंपरागत पनडुब्बियों से ज्यादा तेज व मिसाइलों से अधिक दूरी तक मारक होंगी। साथ ही समझौते के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम तकनीक तथा साइबर साझेदारी भी आस्ट्रेलिया के साथ होगी। वहीं दूसरे विश्वयुद्ध के बाद तीन देशों के बीच हुए अब तक के सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा समझौते को लेकर फ्रांस व यूरोपीय देश नाराज हैं कि समझौते से पहले उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। दरअसल, इससे पहले फ्रांस ने आस्ट्रेलिया के साथ बारह पनडुब्बियों के लिये अपने देश का सबसे बड़े 50 बिलियन आस्ट्रेलियायी डॉलर का रक्षा सौदा किया था, जिसके रद्द होने से फ्रांस तिलमिलाया हुआ है। वह समझौते को फ्रांस की पीठ पर छुरा घोंपना बता रहा है।