संघ प्रमुख के बयान पर हंगामा क्यों?

संघ प्रमुख के बयान पर हंगामा क्यों?
Mohan Bhagwat 1

संजय सक्सेना
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के ‘सभी भारतीयों का एक ही है डीएनए’ वाले बयान को लेकर सियासी मोर्र्चे पर घमासान मचा हुआ है. इससे यह साफ हो जाता है कि अपने देश में किस तरह सीधी-सच्ची बात पर भी ओछी राजनीति शुरू हो जाती है. भागवत के बयान पर कांग्रेस,समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी से लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने जैसी प्रतिक्रिया दी, उससे यह जाहिर हो जाता है कि आजादी के करीब 73 वर्षो के बाद भी अपने देश के नेताओं मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है.भागवत के बयान को लेकर किसी नेता ने यह सोचने-समझने की कोशिश नहीं की कि मोहन भागवत अपने इस कथन के जरिये सभी देशवासियों को एकता के सूत्र में बांधना चाहते हैं,जो समय की मांग और हकीकत दोनों ही है. संघ प्रमुख ने जो बात भारतीयों के संबंध में कही है,वह तो पूरी दुनिया के मुल्कों के वाशिंदों पर लागू होती है. हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम भारतीयों में जाति, मजहब, पूजा-पद्धति की भिन्नता भले ही हो,लेकिन हब सबके पूर्वज एक ही है. क्योंकि हमने और हमारे पूर्वजों ने इसी देश में जन्म लिया था,कहीं बाहर से नहीं आए थे. इसी लिए हम सब एक देश की संतान हैं और सबके पूर्वज एक ही हैं. भागवत के बयान में में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर आपत्ति जताई जाए. बावजूद इसके किसी न किसी बहाने संघ प्रमुख के बयान पर आपत्ति जताई गई और विमर्श को खास दिशा में मोड़ने की कोशिश की गई. इसका मकसद लोगों को गुमराह करना और अपने वोट बैंक को साधने के अलावा और कुछ नहीं नजर आता.संघ प्रमुख के बयान पर इसलिए हो-हल्ला कुछ ज्यादा मच रहा है क्योंकि अगले वर्ष उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, पंजाब सहित पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होना है,जहां वोटों का धु्रवीकरण काफी मायने रखता है. समाजवादी पार्टी हो या फिर कांग्रेस-बसपा सभी दलों के प्रमुख मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में खींचने में लगे हैं.

      दरअसल, यूपी विधान सभा चुनाव से पूर्व विपक्ष संघ प्रमुख के बयान के सहारे कुछ वैसा ही माहौल खड़ा करना चाहता हैं जैसा 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव के समय भागवत के बयान पर आरक्षण को लेकर बनाया गया था. तब विपक्ष के लिए संघ प्रमुख का बयान दलितों-पिछड़ों को उकसाने का मजबूत ‘हथियार’ बन गया था, जिसके चलते चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. बात यहीं तक सीमित नहीं है, ओवैसी जैसे नेताओं को तो यह भी रास नहीं आ रहा है कि संघ प्रमुख मॉब लिचिंग की आलोचना करते हुए ऐसा करने वाले हिन्दुओं को लताड़ें. आईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह व बसपा सुप्रीमां मायावती ने इसे लेकर भागवत पर अपना निशान साधा है. 

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  बसपा सुप्रीमो मायावती ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि गाजियाबाद में एक कार्यक्रम में भागवत ने जो बयान दिया था, वह ’मुंह में राम, बगल में छुरी’ जैसा है. लखनऊ में मायावती ने बयान जारी कर कहा कि संघ प्रमुख भागवत ने कहा था कि हिंदू और मुस्लिम दोनों का डीएनए एक ही है, लेकिन उनकी कही बात किसी के गले उतरने वाली नहीं है. संघ, भाजपा व उनकी सरकारों की कथनी और करनी में जमीन आसमान का फर्क है. जातिवाद, सांप्रदायिक व धार्मिक आदि मामलों में ये जो कहते हैं, उसका ठीक उल्टा करते हैं संघ प्रमुख देश की राजनीति को विभाजनकारी बताकर कोस रहे हैं,जो ठीक नहीं है. उन्होंने तंज कसा कि संघ के सहयोग व समर्थन के बिना भाजपा का अस्तित्व कुछ भी नहीं है. फिर भी संघ अपनी कही बातों को भाजपा व उनकी सरकारों पर लागू क्यों नहीं करवा पा रही है. केंद्र, यूपी समेत जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें चल रही हैं, वहां सरकारें संविधान की सही मंशा के मुताबिक चलने की बजाए ज्यादातर संघ के संकीर्ण एजेंडे पर चल रही है. जबकि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का कहना था कि यदि संघ प्रमुख अपने विचारों के प्रति ईमानदार हैं तो उन्हें भाजपा में उन लोगों को तत्काल हटाने का निर्देश देना चहिए, जिन्होंने निर्दोष मुसलमानां को प्रताड़ित किया. उधर, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख ओवैसी ने भागवत के बयान के बाद ट्वीट किया और कहा कि लिचिंग करने वाले अपराधियों को गाय-भैंस में अंतर नहीं मालूम होगा, पर कत्ल करने के लिए जुनैद, अखलाक, पहलू, रकबर, अलीमुद्दीन के नाम काफी थे. यह नफरत हिंदुत्व की देन है. अपराधियों को हिंदुत्ववादी सरकार के हत्यारों का माल्यार्पण होता है, अखलाक के हत्यारे की लाश पर तिरंगा लगाया जाता है. आसिफ को मारने वालों के समर्थन में महापंचायत बुलाई जाती है.

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  संघ प्रमुख के बयान पर विरोधी दलों के नेताओं के सुर भले ही बिगड़े हों,लेकिन उन्हें देवबंद का समर्थन मिल रहा है. सरसंघचालक द्वारा भीड़ हिंसा करने वालों को हिंदुत्व विरोधी करार देने वाले बयान का देवबंद के उलेमा ने समर्थन किया है. उलमा का कहना है कि मोहन भागवत केंद्र और राज्य सरकारों से भीड़ हिंसा पर सख्त कानून बनाने की मांग भी करें. मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी ने सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान को सराहनीय बताते हुए इसका समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि मोहन भागवत केंद्र और राज्य सरकारों से यह मांग करें कि भीड़ हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाएं. ताकि देश का अमन चैन कायम रह सके. मौलाना मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि आए दिन बेगुनाहों को घेर कर उनको मारा जाता है और कत्लेआम का वीडियो जारी किया जाता है. इन लोगों पर कार्रवाई न होने से ऐसे लोगों के हौसले बुलंद होते हैं. इससे देश में नफरत का माहौल बनता है. मोहन भागवत यदि केंद्र और राज्य सरकार से ऐसे लोगों पर कार्रवाई की मांग करें तो सरकार और पुलिस प्रशासन तुरंत हरकत में आएगा. इससे इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लगेगी.

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  बहरहाल, यह देखना दुखद है कि जब मोहन भागवत हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दे रहे हैं, तब कुछ नेता इसके लिए अतिरिक्त कोशिश कर रहे हैं कि हमारा समाज एकजुटता-सद्भावना की ऐसी बातों पर ध्यान न दे. इस कोशिश से यही प्रकट होता है कि कुछ लोगों की दिलचस्पी इसमें है हिंदू-मुस्लिम के बीच की दूरी खत्म न हो. इस संदर्भ में संघ प्रमुख ने यह सही कहा कि हिंदू-मुस्लिम एका की बातें इस अर्थ में भ्रामक हैं, क्योंकि वे तो पहले से ही एकजुट हैं और उन्हें अलग-अलग देखना सही नहीं. कायदे से इसका स्वागत करते हुए अपने-अपने स्तर पर ऐसी कोशिश की जानी चाहिए कि भारतीय समाज एकजुट हो और उसके बीच जो भी वैमनस्य है, वह खत्म हो. निःसंदेह कुछ लोग ऐसा नहीं होने देना चाहते और इसीलिए किसी ने संघ की कथनी-करनी में अंतर का उल्लेख किया तो किसी ने भीड़ की हिंसा का जिक्र. इतना ही नहीं, भीड़ की हिंसा के लिए संघ को कठघरे में खड़ा करने की भी कोशिश की गई. ऐसा तब किया गया, जब संघ प्रमुख गाय के नाम पर होने वाली भीड़ की हिंसा का विरोध करते रहे हैं.  उन्होंने कई बार साफ-साफ कहा कि उन्मादी भीड़ की हिंसा में शामिल लोग हिंदुत्व के विरोधी एवं आततायी हैं और उन्हें किसी भी तरीके से राष्ट्रवादी नहीं कहा जा सकता. ऐसी दो टूक बात पर भी मीन-मेख निकालने वालों के बारे में यही कहा जा सकता है कि वे घोर नकारात्मकता में डूबे हुए हैं.

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     लब्बोलुआब यह है कि गैर बीजेपी दलों को यदि अपनी राजनीति को आगे बढ़ाना है तो उन्हें जनता की सोच पर चलना होगा,न कि अपनी सोच जनता पर थोपने का प्रयास करें. आज बीजेपी और गैर बीजेपी दलों में सियासी रूप से जो फासला दिखाई दे रहा है, इसकी वजह यही है कि बीजेपी जनता की नब्ज टटोलती रहती है. उसके कार्यकर्ता कभी संगोष्ठी तो कभी जनजागरण यात्रा आदि कार्यक्रमों के सहारे जनता के साथ संवाद स्थापित कर ही लेते हैं,इतना ही नहीं बीजेपी और संघ इस कोशिश में भी लगा हुआ है कि कैसे मुसलमानों का ब्रेन वॉश किया जा सके ताकि वह संघ और बीजेपी को अपना दुश्मन मानना बंद करे. इसी लिए संघ प्रमुख यहां तक कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं कि आरएसएस को लेकर मुसलमानों के बीच जो भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं,उन भ्रांतियों को दूर करने के लिए मुसलमान संघ की शाखा में आएं ताकि उसे हकीकत का पता चल सके, जबकि अपवाद को छोड़कर गैर बीजेपी नेता ड्राइंग रूम की सियासत और सोशल प्लेटफार्म पर तुष्टिकरण की सियासत से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे हैं. इसकी वजह भी है, उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक है जिसको लेकर सपा और कांग्रेस के साथ साथ बीएसपी की भी नजरे रहती है. लगभग 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटर करीब 20 फीसदी के आसपास है. उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से करीब 125 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां अल्पसंख्यक वोट ही नतीजों में अहम भूमिका निभाते हैं. यही वजह है कि चुनाव नजदीक आते ही मुस्लिम वोट को अपने पाले में लाने के लिए राजनीतिक दलों में होड़ सी मच जाती है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)

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