यूपी में इन दो बहनों ने एक साथ UPSC परीक्षा को किया पास
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उत्तर प्रदेश: उन्नाव के एक छोटे से गांव अजयपुर, तहसील पूरवा से निकलकर देश की सबसे कठिन मानी जाने वाली यूपीएससी परीक्षा में टॉप 20 में शामिल होना कोई आसान बात नहीं. लेकिन सौम्या मिश्रा और उनकी छोटी बहन सुमेधा मिश्रा ने यह कारनामा कर दिखाया है. सौम्या वर्तमान में मिर्जापुर में उपजिलाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं और चौथे प्रयास में उन्होंने देशभर में 18वीं रैंक हासिल की. वहीं, सुमेधा ने अपने दूसरे प्रयास में 253वीं रैंक प्राप्त की है.
इन दोनों बहनों की सफलता महज़ उनकी पढ़ाई की मेहनत तक सीमित नहीं रही, बल्कि उनके पिता राघवेंद्र मिश्रा के मार्गदर्शन और दृढ़ निश्चय की भी मिसाल है. दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में प्रोफेसर राघवेंद्र मिश्रा ने अपनी बेटियों को भी सरकारी स्कूल में ही पढ़ाया, यह दिखाते हुए कि सफलता किसी स्कूल की भव्यता पर नहीं, बल्कि सोच, मेहनत और मार्गदर्शन पर निर्भर करती है.
बचपन से अधिकारी बनने का सपना, पिता ने दिखाया रास्ता
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सौम्या बताती हैं कि उनके पिता ने बचपन से ही उन्हें संघ लोक सेवा आयोग के बारे में बताया था. उन्होंने दोनों बेटियों में बचपन से ही यह भावना भर दी थी कि एक दिन वे अधिकारी बनकर देश की सेवा करेंगी. इसी प्रेरणा से सौम्या और सुमेधा ने दिल्ली के राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय से स्कूली शिक्षा ग्रहण की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से भूगोल विषय में ऑनर्स किया.
सौम्या को एमए में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए गोल्ड मेडल भी मिल चुका है. उनका मानना है कि असफलता की स्थिति में खुद को दोष देना या निराश हो जाना समाधान नहीं है. उन्होंने बताया कि अपने हर असफल प्रयास के बाद उन्होंने खुद का मूल्यांकन किया, कमियों को समझा और अगली बार उन्हें ठीक कर आगे बढ़ी.
सुमेधा कहती हैं कि उन्होंने कोई कोचिंग नहीं किया. दोनों बहनों ने मिलकर एक स्पष्ट योजना बनाई और रोजाना 7 से 8 घंटे अध्ययन को समर्पित किया. “सकारात्मक सोच, परिवार का साथ और आत्मविश्वास ही असली पूंजी है,” सुमेधा कहती हैं. उनका यह भी मानना है कि आज के समय में ज़रूरी नहीं कि कोचिंग संस्थानों पर निर्भर हुआ जाए. अगर सोच स्पष्ट हो, संसाधनों का सही उपयोग किया जाए और लगातार मेहनत की जाए, तो बिना किसी विशेष सुविधा के भी सफलता संभव है.
बड़े स्कूलों की दौड़ नहीं, शिक्षा का उद्देश्य हो साफ
इन दोनों बहनों का यह संदेश भी बेहद सटीक है कि माता-पिता को अपने बच्चों के लिए बड़े-बड़े निजी स्कूलों की तलाश में नहीं भागना चाहिए. सरकारी स्कूलों में भी उच्च गुणवत्ता की शिक्षा संभव है, बशर्ते बच्चों को सही मार्गदर्शन और प्रेरणा दी जाए. सौम्या और सुमेधा की कहानी इसका प्रमाण है कि संसाधनों की कमी कभी सफलता की राह नहीं रोक सकती.
जहां सौम्या मिर्जापुर में एसडीएम के पद पर कार्यरत हैं, वहीं छोटी बहन सुमेधा की तैयारी दिल्ली में जारी रही. इस दौरान माता-पिता ने अपनी जिम्मेदारियां बांट लीं, मां रेणु मिश्रा मिर्जापुर में बड़ी बेटी के साथ रहीं, तो पिता दिल्ली में सुमेधा की तैयारी में सहायक बने रहे. यह भी साबित करता है कि एक परिवार अगर एकजुट होकर बच्चों के सपनों को अपनाए, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं.
प्रेरणा बन चुकी हैं सौम्या और सुमेधा
सौम्या और सुमेधा सिर्फ एक सफल कहानी नहीं हैं, बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा हैं. इनकी मेहनत, अनुशासन, संयम और आत्मविश्वास ने यह साबित कर दिया कि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले लोग भी असाधारण मुकाम हासिल कर सकते हैं. उनकी यह कहानी न सिर्फ यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं को हौसला देती है, बल्कि समाज में व्याप्त इस धारणा को भी तोड़ती है कि सफलता केवल अमीरों या प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वालों का हक है.