दाम टूटे, मांग लौटी: पाम तेल की गिरती कीमतों के पीछे की पूरी कहानी

पाम तेल जिसे लंबे समय तक सस्ता और कम प्रीमियम वाला तेल माना जाता था, उसने हाल के वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक वक्त ऐसा भी आया जब इसकी कीमतें आसमान छूने लगीं और यह सोयाबीन ऑयल के मुकाबले एक प्रीमियम ऑयल बन गया। लेकिन अब फिर से पाम तेल के दामों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसके पीछे कौन-कौन से कारण हैं? और भारत समेत दुनिया भर में इसका क्या असर पड़ रहा है? आइए विस्तार से समझते हैं।
पिछले कुछ समय में पाम तेल की कीमतों में जो गिरावट आई है, उसके पीछे कई वजहें हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि साल 2025 के पहले क्वार्टर यानी जनवरी से मार्च के बीच उत्पादन में भारी गिरावट देखने को मिली थी। यह गिरावट मौसमी कारणों की वजह से थी, जो हर साल देखी जाती है। ऐसे समय में उम्मीद थी कि पाम ऑयल की आपूर्ति कम रहेगी और इसकी कीमतें ऊंची बनी रहेंगी।
इस स्थिति को देखते हुए पाम ने सोयाबीन ऑयल के सामने खुद को एक प्रीमियम ऑयल की तरह प्रस्तुत किया। लेकिन उस समय भी अंदेशा था कि ईद के आसपास डिमांड तो बढ़ेगी लेकिन फास्टिंग पीरियड लंबा होने के कारण और त्योहारी ब्रेक के बाद लेबर के वापस लौटने में देरी की वजह से प्रोडक्शन फिर से बढ़ेगा। और ठीक वैसा ही हुआ।
ईद के बाद इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में लेबर की वापसी से पाम तेल का उत्पादन बढ़ा है और यह अब साफ दिख रहा है। यानी अब पाम तेल की सप्लाई को लेकर कोई चिंता नहीं है, और यह एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से इसकी कीमतें कम हुई हैं।
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इन सबके बीच भारत जैसे देश, जो पहले पाम ऑयल को प्रीमियम रेट्स पर नहीं खरीद रहे थे और सोयाबीन ऑयल में शिफ्ट हो गए थे, अब फिर से पाम ऑयल की तरफ लौट रहे हैं। वजह है – डिस्काउंट। पाम ऑयल ने अपनी खोई हुई डिमांड वापस पाने के लिए अब सोयाबीन ऑयल के मुकाबले सस्ते दाम पर खुद को बाजार में पेश किया है।
अभी भारत की तरफ से काफी अच्छी बाइंग देखने को मिल रही है। पहले जहां हर महीने तीन-चार लाख टन पाम ऑयल इंपोर्ट होता था, अब यह आंकड़ा मई तक पांच से छह लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है। अगर पाम ने यही डिस्काउंट बनाए रखा तो आने वाले महीनों में यह आंकड़ा सात लाख टन भी हो सकता है।
अब बात करें प्राइस ट्रेंड की, तो पिछले कुछ हफ्तों में पाम ऑयल की कीमतों में 500 से 600 रिंगेट की गिरावट आई है। अप्रैल में जहां यह 4700 रिंगेट पर ट्रेड कर रहा था, वहीं अब यह 4170 रिंगेट तक आ गया है। 4000 रिंगेट का स्तर एक मनोवैज्ञानिक सपोर्ट लेवल है जिसे एक बार पाम ऑयल ने तोड़ा भी था लेकिन फिर तेजी से रिकवर किया। इससे यह संकेत मिलता है कि फिलहाल बाजार को 4000 रिंगेट के स्तर पर मजबूत सपोर्ट मिल रहा है।
अब सवाल है कि ग्लोबल डिमांड कैसी है?
पहले क्वार्टर में डिमांड काफी कमजोर थी, लेकिन अब अप्रैल-मई में बाजार धीरे-धीरे वापसी कर रहे हैं। चाहे पैक्ड प्रोडक्ट हो या बल्क ऑयल, हर तरफ से थोड़ी-थोड़ी डिमांड दिखने लगी है। चीन और भारत में फिर से पाम ऑयल की खरीदारी बढ़ी है, जो एक बड़ा सकारात्मक संकेत है।
अब अगर हम इंडोनेशिया की बायोडीजल पॉलिसी की बात करें तो वहां अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है। इंडोनेशिया अपनी बायोडीजल नीति को बरकरार रखे हुए है। हालांकि, इसमें कोई बदलाव होगा या नहीं, इसका निर्धारण क्रूड ऑयल की कीमतों की स्थिरता पर निर्भर करेगा। अगर क्रूड और नीचे गया, तो बायोडीजल की मांग और लागत पर असर पड़ सकता है।
पाम ऑयल की मौजूदा स्थिति एक दिलचस्प दौर में पहुंच चुकी है। एक तरफ प्रोडक्शन की टाइट सप्लाई अब ढीली पड़ चुकी है, दूसरी तरफ कीमतों में गिरावट से ग्लोबली डिमांड वापस आने लगी है। भारत जैसे बड़े उपभोक्ता देश अब फिर से पाम ऑयल की ओर लौट रहे हैं, जिससे आने वाले समय में इसका इंपोर्ट और डिमांड दोनों में इजाफा हो सकता है।
लेकिन यह भी साफ है कि यह सब बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि पाम ऑयल निर्माता देश डिस्काउंट को बनाए रखते हैं या नहीं, और ग्लोबल क्रूड मार्केट किस दिशा में जाता है। फिलहाल तो पाम ऑयल की कीमतें नीचे हैं, डिमांड वापस आ रही है – और यही दोनों फैक्टर इस बाजार को फिलहाल सहारा दे रहे हैं।