क्या यह चेहरे साल 2024 में करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला?

आर.के. सिन्हा
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सशक्त विपक्ष का होना अनिवार्य है. लोकतंत्र का मतलब ही वाद-विवाद-संवाद के द्वारा जनता की समस्याओं का करना होगा. जिन देशों में जिम्मेदार और जुझारू विपक्ष दल होते हैं, वहां पर सरकार हमेशा ही जनता के हक में काम करने के लिये प्रतिबद्ध रहती है. उस सरकार को यह अच्छी तरह मालूम होता है कि उसकी तरफ से कोई भी लापरवाही हुई तो विपक्ष उसे छोड़ेगा नहीं. पर हमारे यहां पर विपक्ष तो कई वर्षों से लगभग मृतप्राय: हो रहा है. उसी विपक्ष में अब बूढ़े और असमर्थ नेताओं के जरिये जान फूंकने की कोशिशें हो रही है ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरपरस्ती में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक (एनडीए) गठबंधन को साल 2024 में चुनौती दी जा सके. यहां तक सब ठीक है.
अब बताएं कि क्या इन कथित और स्वयंभू नेताओं के सहारे मोदी जी को चुनौती दी भी जा सकेगी या नहीं ? शरद पवार के साथ गीतकार 76 वर्षीय जावेद अख्तर भी आ गए हैं. यह वही जावेद अख्तर हैं जिन्होंने हाल ही में गाजियाबाद में एक दाढ़ी वाले शख्स के साथ हुई मारपीट की घटना को सांप्रदायिक रंग देने की चेष्टा की थी. हालांकि बाद में जब पुलिस अनुसन्धान से खुलासा हुआ कि वह सारा मामला आपसी रंजिश का था. उसमें सांप्रदायिकता का कोण लाना या देखना सरासर गलत था. लेकिन जब सारा मामला शीशे की तरफ साफ हुआ तो जावेद अख्तर चुप रहे.
शरद पवार के साथ तो सहानुभति जताई जा सकती है. वे देश का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब गुजरे कई दशकों से पाले हुए हैं. पर अफसोस कि उन्हें हर बार असफलता ही मिलती है. अब उन्होंने अपने साथ प्रशांत किशोर को जोड़ लिया है. यानी उन्होंने कभी भी उम्मीद नहीं छोड़ी है. उनकी जिजिविषा को सलाम करने का मन करता है. शरद पवार के साथ य़शवंत सिन्हा का विपक्षी एकता के लिए काम करने का मतलब है कि उन्हें अपनी नेता ममता बनर्जी का समर्थन मिल रहा है. य़शवंत सिन्हा पहले भाजपा में थे. इस बीच, ममता बनर्जी को लगता है कि पश्चिम बंगाल का विधान सभा चुनाव जीतने के बाद उनका अगला लक्ष्य दिल्ली होना चाहिए. यानी उनकी निगाह भी अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है.
Advertisement
जरा यह भी देखिए कि शरद पवार की सरपरस्ती में हुई राष्ट्र मंच की पहली बैठक से पता नहीं क्यूँ कांग्रेस को दूर रखा गया,पर बैठक के बाद कहा जाने लगा कि कांग्रेस के बिना राष्ट्र मंच नहीं बन सकता. यहां पर कई बातें साफ हो गईँ. राष्ट्र मंच को समझ आ गया कि उनके तिलों में तेल नहीं है कि वे नरेन्द्र मोदी जैसे दिग्गज लोकप्रिय जन नेता के नेतृत्व में चल रही एनडीए सरकार को चुनौती दे सकें. इसलिए राष्ट्र मंच नेता भी बैठक के बाद कांग्रेस को याद करने लगे. अगर कांग्रेस इस मोर्चे से जुड़ गई तो इसका नेता कौन होगा ? ये आगामी चुनावों में अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार किसे घोषित करेंगे ? पवार को या राहुल गांधी को? क्या कांग्रेस राहुल के दावे को खारिज करेगी ?
शरद पवार के लिए या शरद पवार राहुल गांधी को ही देश का अगल प्रधानमंत्री बनाने के लिए ही राष्ट्र मंच बना रहे हैं? इन सवालों के उत्तर देश की आम जनता को तो अवश्य ही चाहिए. यशवंत सिन्हा कह रहे हैं कि राष्ट्र मंच के सामने मोदी मुद्दा नहीं है. राष्ट्र के सामने जो मुद्दे हैं, वे ही मुद्दे हैं. तो बात ये है कि मोदी जी से लड़ने वालों के पास यह बताने के लिए कुछ नहीं है कि वे किन मुद्दों पर मोदी जी से मुकाबला करेंगे. वे देश के सामने उन बिन्दुओं को यदि विस्तार से रखें तो सही जिनको लेकर वे 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी जी से दो-दो हाथ करना चाहेंगे. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को गिराने का इरादा रखने वाले शरद पवार जरा यह भी बता दें कि महाराष्ट्र की जिस सरकार को बनाने में उनका खसम खास रोल रहा है, वह किस हद तक करप्शन से लड़ रही है ?
शरद पवार क्या बताएंगे कि उनकी पार्टी के नेता और महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के घरों पर हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी क्यों की ? जानकारों का कहन है कि ईडी की जांच से 4 करोड़ रुपए के हेरफेर का पता चला है, जो कथित तौर पर मुंबई में लगभग 10 बार मालिकों ने अनिल देशमुख को दिए थे. शरद पवार जी को तो एनडीए सरकार के खिलाफ किसी भी हद तक जाने का अधिकार है. पर वे जरा अपनी गिरेबान में भी झांक लें. कभी फुर्सत मिले तो वे बताएं कि ईमानदारी और पारदर्शिता जैसे मसलों पर उनकी क्या राय है ? (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं. यह उनके निजी विचार हैं.)