गोमाता हमारी यज्ञ संस्कृति की प्रतीक : स्वामी गोपालदास

गोरखपुर गोरखनाथ मंदिर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 52वीं पुण्यतिथि एवं ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की 7वीं पुण्यतिथि समारोह के अन्तर्गत ‘‘भारतीय संस्कृति एवं गो-सेवा’’ संगोष्ठी में मुख्य वक्ता अरैल आश्रम, प्रयागराज से पधारे स्वामी गोपालदास ने कहा कि धर्मरक्षा, स्वास्थ्य रक्षा, आर्थिक लाभ और पर्यावरण की दृष्टि से गौ तथा गौवंश का संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक है। हमारे वैदिक ग्रन्थों से लेकर पौराणिक ग्रन्थों तक में गाय की महिमा गायी गयी है। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम गोमाता के प्रति आस्था के प्रश्न के गर्भ से ही उपजा था। भारत के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 में घोषणा की थी कि नवगठित सरकार गौ हत्या पर प्रतिबंध लगायेगी। हनुमान प्रसाद पोद्दार, बाबा राघवदास, स्वामी करपात्री, लाला हरदेवसहाय जैसे महापुरूषों के नेतृत्व में गोवंश की हत्या पर प्रतिबन्ध के लिए जन-जागरण एवं आन्दोलन चलाए गये। आज भी अहिंसा के पुजारी इस देश में बड़ी संख्या में गो वंश की प्रतिदिन हत्या होती है। भारतीय संस्कृति यज्ञ की संस्कृति हैं। गोमूत्र, गोदूध, गोबर, गोघृत आदि के बिना पंचामृत व यज्ञ की कल्पना ही नहीं की जा सकती। गोमाता हमारी यज्ञ संस्कृति की प्रतीक है। ये हमारे सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक जीवन की धुरी है। भारत का बोध वाक्य रहा ‘भारत देश से नाता है गो हमारी माता है’ ऐसे देश में गोवंश की हत्या महापाप है। गौ धन की रक्षा का संकल्प देश की वर्तमान आवश्यकता है। गो-सेवा विषय नहीं हमारा अस्तित्व है। पंचगव्य के बिना मानव द्विज नही हो सकता। भगवान का धरती पर अवतरण गौ माता की रक्षा के लिए होता रहा है। गौ माता और धरती माता अभिन्न है। गौ माता को स्थिर रूप में देखना हो तो धरती मां को देखो और धरती मां को चलते फिरते देखना हो तो गौ माता को देखो। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 56 जिलों में गो संरक्षण केन्द्र काम करना प्रारम्भ कर दिये है तथा बाकी जिलों में काम हो रहा है। इसी प्रकार 127 कान्हा उपवन शहरी क्षेत्रों में गो संरक्षण केन्द्र खोले गये है। उत्तर प्रदेश में 526 रजिस्टर्ड गोशालाएं है। यदि कोई किसान चार गो वंश रखता है तो उसे प्रति गो वंश के हिसाब से 30 रूपये प्रतिदिन प्रोत्साहन राशि दी जायेगी। उन्होनें कहा कि इधर के 30-40 वर्षो में हमने रासायनिक खादों के माध्यम से खाद्यानों में जहर घोला है जिसके कारण चिकित्सालय भरे पड़े है। इधर जैविक खेती का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ है जो अव्यवहारिक है जो मैं स्वयं अपने खेतों में इसकी स्थलता प्रमाणित की है। जैविक खेती के लिए एक एकड़ खेत में तीन सौ कुण्टल खाद चाहिए और इसके लिए 18-20 गो वंश चाहिए। जबकि पद्म सुभाष कालेकर द्वारा जीरो बजट आधारित प्रकृतिक खेती का जौ तरीका खोजा गया है। वह भारत के खेतों और किसानों की काया पलट देगी। उन्होनें कहा कि भारतीय नश्ल के गायों के गोबर और गो मूत्र में ही वह ताकत है कि उसर भूमि को एक वर्ष में उपजाऊ बना देगीें।
गो-सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष अतुल सिंह ने कहा कि भारत में नई कृषि क्रांति का युग दस्तक दे रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कृषि को भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनाने का जो अभियान छेड़ रखा है वह जीरो बजट कृषि योजना और गो वंश के संरक्षण संर्वधन से ही पूर्ण होगा। गो वंश की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है। आगे भारतीय नश्ल की गायों पर हुए शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि कृषि रासायनिक खादो और जैविक खादों की अपेक्षा गो वंश के गोबर और गो मूत्र पर आधारित खेती न केवल हमारी लागत शून्य करेगी अपितु स्वास्थ्य वर्धक अन्न का उत्पादन करेगी और किसानो की आय मे अकल्पनीय वृद्धि होगी। न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया में पशु वैज्ञानिकों ने भारतीय नस्ल की गायों और जर्सी गायों के दूध पर जो शोध निष्कर्ष दिये है वह हमारी आँख खोलने वाला है। जर्सी गायों का दूध उत्तेजना पैदा करता है। विशाद पैदा करता है। रक्तचाप बढ़ाता है। जबकि भारतीय नश्ल की सभी गायों का दूध मानव स्वास्थ्य के लिए अमृत है। भारतीयों ऋषियों ने यह शोध आज से हजारों वर्ष पहले कर लिया था। वेद के रचयिताओं ने लिखा है कि गाय विश्व की माता है। गाय की महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि माँ की ही तरह नौ माह दस दिनों में गाय भी बच्चा देती है। मां के दूध के बाद एक मात्र गाय का दूध माॅ के दूध जैसा अमृत है। उन्होनें गो वंश पर आधारित कृषि और कृषि उत्पादों पर नये शोध एंव उनके स्वयं के द्वारा किये जा रहें प्रयोंगो को विस्तार से रखा।
उत्तर प्रदेश सरकार गो-सेवा आयोग का गठन करके गोवंश के संरक्षण के लिए पांच हजार से अधिक गो-आश्रय स्थल का निर्माण कराया है। गो-संरक्षण के लिए अपराधियों को जो गाय का व्यापार विदेशों तक करते थे, उनके उपर कार्यवाही करने उनका मनोबल नीचे गिराया है। गो हत्या को जघन्य अपराध की श्रेणी में लाकर गाय को संरक्षण देने का कार्य उत्तर प्रदेश सरकार कर रही है। जो सम्मान प्राचीन काल में गाय को मिलता है आज वही सम्मान दिलाने के लिए मुख्यमंत्री के निर्देशन में गो-सेवा आयोग निरंतर कार्य कर रहा है।
जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य जी महाराज ने कहा कि 33 करोड़ देवी-देवता जितना मानव पर उपकार नही कर सकते उतना गौ माता अकेले कर सकती है। इसलिए ही हिन्दू गोमाता में तंैतीस करोड़ देवी-देवताओं का हम एक साथ दर्शन करते हैं। अपनी सरलता और उपयोगिता के कारण गौ वंश की महत्ता प्रायः सभी सभ्य देशों में न्यूनाधिक रूप से विद्यमान है। भारत जैसे धर्मप्राण एवं कृषि प्रधान देश में तो जननी और जन्मभूमि के समान लोक वंद्य माता के रूप में गौ और गौवंश की महत्ता अनादिकाल से है। गाय, गीता और गंगा भारतीय संस्कृति की प्रतीक है। गीता की तरह ही गाय पूज्य है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि गौ रूद्रो की माता हैं। गाय हिन्दू-मुसलमान-ईसाई का भेद नहीं करती बल्कि सभी को एक समान मीठा दूध देती है। उन्होंने ने आहवान किया अब समय आ गया है कि भारत में भारतीय गोवंश पर आधारित वैज्ञानिक कृषि प्रारम्भ की जाय। भारत दुनिया भर को खाद्यान्न उपलब्ध कराने में समर्थ होगा। गांव का पैस गांव में और शहर का पैसा भी गांव में जायेगा। उन्होंने कहा कि गाय पशु नहीं अपितु हिन्दुत्व की आत्मा है।
दिगम्बर अखाड़ा अयोध्या के महन्त सुरेशदास जी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज भारत में गोरक्षा आन्दोलन के अग्रणी नेताआंे में एक थे। स्वतंत्रता के बाद से ही गोवंश की हत्या रोकने सम्बन्धी कानून बनाने के लिए धर्माचार्यों ने अनेकों बार अभियान चलाया। महन्त दिग्विजयनाथ महाराज ने गोवध बंदी को आवश्यक मानने हुए कहा था कि गोरक्षा का प्रश्न मेरे लिए स्वराज्य से भी अधिक महत्वपूर्ण है। ब्रहा्रलीन अवेद्यनाथ महाराज ने कहा था कि यदि गाय नष्ट हो गयी तो भारतीय संस्कृति नष्ट हो जायेगी। गोरक्षा केवल कानून बनाने से नहीं होगी इसके लिए समान जनमानस को जागरूक होना पड़ेगा। जब तक समाज गोसंरक्षण के बारे में नही सोचेगा तब तक गोरक्षा संभव नही है। गोरक्षा के लिए गोरक्षपीठ प्रारम्भ से ही संकल्पित है। हमें यहां से संकल्प लेकर जाना है कि जहाॅ तक संभव होगा गोरक्षण में अपनी सहभागिता निभायेंगे। जनजागरण एवं जनसंघर्ष के बिना गोरक्षा का अभियान पूरा नहीं होगा। सर्वमयी गौ हमारे लिए वरदायिनी है। उन्होनें कहा समुद्र मन्थन के फलस्वरूप उत्पन्न 14 रत्नों में ‘सुरभि‘ अर्थात गौ भी थी। गायों को तीनो लोकों की माता कहा गया है। पुण्यकामी गृहस्थ जनों को गौ सेवा करनी चाहिए। जो गौ सेवा परायण होता है उसकी श्री वृद्धि शीघ्र होती है। भविष्य पुराण में कहा गया है गौ की पीठ में ब्रम्ह, गले में विष्णु, मुख में रूद्र प्रतिष्ठित है।
नैमिषारण्य से पधारे स्वामी विद्याचैतन्य जी महाराज ने कहा कि भारत में प्रतिवर्ष गोबर आदि जैविक खाद के अभाव में लगभग 6 से 7 प्रतिशत भूमि बंजर होती जा रही है। ऐसे में गो और गोवंश की उपयोगिता हमारे कृषि कार्य हेतु अपरिहार्य बनती जा रही है। धर्म और आध्यात्म के साथ-साथ आर्थिक स्वावलम्बन के लिए भी गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध देश की आवश्यकता है। यदि मानव की रक्षा करनी है तो गो और गंगा की रक्षा करनी होगी।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो0 यू0पी0 सिंह ने कहा कि जिस गौ को हम माता मानते है, कृषि प्रधान देश में हमारे आर्थिक संरचना की जो रीढ़ है, उसी गोवंश का अस्तित्व ही जिस प्रकार आज खतरे मे है वो भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है और चिंता का विषय है। गोमाता की सेवा के बगैर लोक-परलोक दोनों जीवन अधूरा है। गोमाता सनातन अस्मिता की प्रतीक है। पूज्य महाराज जी गोवंश के रक्षा की लड़ाई लड़ते है, यह उत्तर प्रदेश के लिए सौभाग्य की बात है। हम भी लोकचेतना को जाग्रित करें और गोसेवा का व्रत ले।
वैदिक मंगलाचरण डाॅ0 रंगनाथ त्रिपाठी, गोरक्षाष्ठक पाठ सुजल तिवारी व गौरव तिवारी तथा संचालन डाॅ0 भगवान सिंह ने किया।
मंच पर शिवनाथ, योगी कमलनाथ, योगी मिथलेश नाथ, महंत गंगादास, महंत राममिलन दास उपस्थित रहें।