उत्तर प्रदेश में स्थित यह गांव सरकारी योजनाओं से वंचित!

उत्तर प्रदेश में स्थित यह गांव सरकारी योजनाओं से वंचित!
उत्तर प्रदेश में स्थित यह गांव सरकारी योजनाओं से वंचित!

उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में स्थित एक अनोखा गांव, जो की सालों से प्रशासनिक उलझनों का शिकार है. इस गांव का नाम है भरवलिया उर्फ टिकुईया, जो चकिया ग्राम पंचायत में आता है. मुख्य बात यह है कि यह गांव दो जिलों की सीमाओं में बंटा हुआ है. धनघटा तहसील, जो संतकबीरनगर जिले में है, वहीं कुदरहा ब्लॉक बस्ती जिले में आता है. और ये गांव दोनों के बीच फंसा हुआ है.

गांव की कुल आबादी लगभग 900 लोग है. परंतु यह आंकड़ा केवल संख्या बनकर रह गया है क्योंकि यहां के लोगों को बुनियादी सुविधाएं तक नसीब नहीं हैं. 28 साल पहले हुई एक प्रशासनिक गलती के कारण आज भी गांववाले झेल रहे हैं. इस गांव में रहने वाले कई परिवार आज भी झोपड़ियों में जीवन बिता रहे हैं. शौचालय, आवास, और पीने के पानी जैसी योजनाएं यहां आज तक नहीं पहुंच पाईं हैं.

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गांव वालों की दिक्कतें सिर्फ रोजमर्रा की जिंदगी तक सीमित नहीं हैं. जब चुनाव आते हैं, तो मतदान के लिए यहां के लोगों को याद किया जाता है परंतु चुनाव खत्म होने के पश्चात यहां ना तो कोई सुविधा का कार्य किया जाता है और न ही इस परेशानी को दूर. पंचायत चुनाव में यह गांव बस्ती जिले की सीमा में मतदान करता है, जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वोटर संतकबीरनगर जिले में गिने जाते हैं.

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इतना ही नहीं, लोगों के निवास, जाति और आय प्रमाण पत्र भी संतकबीरनगर के धनघटा तहसील से बनते हैं. पुलिस स्टेशन भी वहीं पड़ता है, जबकि विकासखंड बस्ती जिले का कुदरहा है.

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साल 1997 में जब संतकबीरनगर को नया जिला बनाया गया था, उस वक्त गांवों का सीमांकन किया गया. इसी दौरान राजस्व विभाग के अधिकारियों से एक बड़ी गलती हो गई. भरवलिया गांव को धनघटा तहसील में तो दर्ज कर दिया गया, परंतु असल में यह गांव बस्ती जिले के कुदरहा विकास खंड में आता है. गांव की भौगोलिक स्थिति भी यही साबित करती है चारों ओर बस्ती जिले के गांव हैं और यह संतकबीरनगर की सीमा से करीब तीन किलोमीटर दूर है.

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प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजनाओं के अंतर्गत पूरे प्रदेश में लाखों लोगों को घर मिले हैं. लेकिन इस गांव के 70 से ज्यादा परिवार आज भी बिना पक्के मकान के, झोपड़ियों में जीवन गुजार रहे हैं. शौचालय योजना और हर घर नल योजना का भी यहां कोई नामोनिशान नहीं है. ग्रामीण आज भी देसी हैंडपंपों से पानी निकालने को मजबूर हैं.

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जहां आज गांव भी बिजली की रोशनी में नहाए हुए हैं, वहीं भरवलिया गांव अब भी अंधेरे में डूबा हुआ है. पूर्व प्रधान संतराम बताते हैं कि यहां बिजली नहीं है. जैसे ही सूरज ढलता है, पूरा गांव अंधेरे में समा जाता है.

गांव में एक प्राथमिक विद्यालय तो है, परंतु यह भी बस्ती जिले से संचालित होता है. बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए कच्चे और संकरे पगडंडी रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है, जो बरसात में और भी खतरनाक हो जाता है.

पूर्व प्रधान संतराम, श्याम सुंदर, हरिराम, मोनू, गंगाराम, संदीप, फूलचंद, मुन्नीलाल, जानकी और ब्रह्मादीन बताते हैं कि यहां की सबसे बड़ी समस्या सरकारी नौकरी को लेकर है. युवाओं के आधार कार्ड बस्ती जिले के बने हुए हैं, जबकि जाति, निवास और आय प्रमाण पत्र संतकबीरनगर से मिलते हैं. ऐसे में जब ये युवा किसी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते हैं, तो कागजों का मेल न होने पर आवेदन निरस्त कर दिया जाता है.

रोहित राजभर नाम के युवक को इसी वजह से सेना भर्ती में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. ग्रामीणों ने कई बार जनप्रतिनिधियों, मंडलायुक्त, जिलाधिकारी तक अपनी समस्या पहुंचाई, परंतु हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला. समाधान आज तक नहीं किया गया.

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