आशीष शुक्ला- भाई, हमें माफ करना...
Ashish Shukla Basti News
इनके आंदोलन या तो सत्ता के विरोध में होते हैं या फिर अपने स्वार्थ में. लेकिन बड़े दिनों बाद कोई जनता के हित में सामने आया. मुझे नहीं पता कि आशीष शुक्ला के इस कदम के सियासी निहितार्थ क्या हैं, और वह भविष्य में इसका क्या प्रयोग उपयोग करेंगे लेकिन अभी के वक्त में जरूरत है कि हम आशीष के साथ खड़े हों.
(अगर, आशीष इस लेख को पढ़ें और ये बात बुरी लगे तो माफ करें क्योंकि इस देश ने आंदोलनों और उसके बाद जनता को मिले धोखे को बहुत झेला है. अन्ना आंदोलन तो याद ही होगा. लेकिन लेखक को यह भरोसा है कि आशीष अपना हित देखते हुए भी कभी जनता के खिलाफ नहीं जाएंगे.)
अभी आशीष को आज बस्ती जिला चिकित्सालय ले जाया गया और फिर उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया गया.
बीते 1 दशक में बस्ती की प्रशासनिक और पुलिसिया स्थिति की हकीकत किसी से छिपी नहीं है. हर दिन कोई न कोई अपराध की ऐसी खबर, जो हमें भीतर तक झकझोर देती है लेकिन पक्ष, विपक्ष किसी को नहीं पड़ी.
अगर कोई जातीय एंगल है तो एक दूसरे पर छींटाकशी करते हुए हमारे नेतागण साइड हो गए. न जाने कितने मामलों की फाइल अभी धूल फांक रही है. मोहित यादव केस तो याद ही होगा आप लोगों को.
यह भी पढ़ें: Basti News: कैरम में अर्पिता, बैडमिंटन में सकीना ने मारी बाजी, कबड्डी में एचएमए इण्टर कॉलेज रहा अव्वलसत्ता और विपक्ष, दोनों अब प्रशासन और पुलिस के मामले पर चुनाव कहां लड़ते हैं? सबके अपने-अपने सियासी चेहरे हैं और सबको इस बात का भरोसा है कि जनता इन चेहरों के नाम पर ही वोट कर देगी.
आखिरी बार याद करिए कि कब किसी नेता ने हमारी समस्याओं पर हमसे वोट मांगा? शायद किसी ने नहीं. और एक बात और. बतौर भारतीय नागरिक, बस्ती के निवासी की हैसियत से हमने खुद कब जाति और अपने हित से ऊपर उठ कर वोट किया हो? हो सकता हो कुछ लोगों ने किया हो लेकिन बहुतेरे तो सिर्फ जाति के दंश का शिकार हो जाते हैं.
आशीष आप स्वस्थ्य होकर बस्ती लौंटे. अपने परिवार और बस्ती की जनता के पास. साथ ही साथ हमें माफ करें क्योंकि आप जिस दल के साथ रहे, जिसका आपने साथ दिया, वो लोग शायद इस डर से आपके साथ नहीं आए क्योंकि सबको इस बात का डर है कि कहीं आप बड़े नेता न बन जाएं. जब सांसदी, विधायकी घरेलू उद्योग हो जाए तो सबको इस बात का डर सताने लगता है.
जिन नेताओं के लिए आपने सेवाएं दीं. दिन रात एक कर दिया. न परिवार देखा, न घर. अपनी पूरी निष्ठा के साथ काम किया, वो जब आपके अनशन में नहीं आ सके तो किसी और से क्या उम्मीद करना?
आप लखनऊ से लौटिए, बस्ती नई उम्मीदों के साथ. नए जज्बे के साथ. यह तो समय बताएगा कि अफसशाही से ज्यादा सियासी लोगों के दांव पेंच कहीं आपके हौसले को कमजोर न कर दें.
आखिर में आपके हौसले के लिए निदा फाज़ली की लिखी ये गज़ल
हर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो
अगर न हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी होरहेगी वा'दों में कब तक असीर ख़ुश-हाली
हर एक बार ही कल क्यूँ कभी तो आज भी होन करते शोर-शराबा तो और क्या करते
तुम्हारे शहर में कुछ और काम-काज भी होहुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं
हुकूमतें जो बदलता है वो समाज भी होबदल रहे हैं कई आदमी दरिंदों में
मरज़ पुराना है इस का नया इलाज भी होअकेले ग़म से नई शाइरी नहीं होती
ज़बान-ए-'मीर' में 'ग़ालिब' का इम्तिज़ाज भी हो
(यह लेखक के निजी विचार हैं.)
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About The Author
“विकास कुमार पिछले 20 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर इनकी मजबूत पकड़ है, विधानसभा, प्रशासन और स्थानीय निकायों की गतिविधियों पर ये वर्षों से लगातार रिपोर्टिंग कर रहे हैं। विकास कुमार लंबे समय से भारतीय बस्ती से जुड़े हुए हैं और अपनी जमीनी समझ व राजनीतिक विश्लेषण के लिए पहचाने जाते हैं। राज्य की राजनीति पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक भरोसेमंद पत्रकार की पहचान देती है