यादों के आईने में बस्ती की पत्रकारिता
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‘‘बस्ती को उजाड़ मत कहना बस्ती ने इतिहास रचा हैं’’. अब आप गर्व से सीना तान कर कह सकते हैं कि बस्ती ‘‘उजाड’’घ् नही हैं. अब बस्ती उसी तरह मण्डल मुख्यालय है जैसे भारतेन्दु जी की वाराणसी. बात अखबारों की करें तो स्पश्ट होगा और गौरव भी होगा कि भारतेन्दु जी की नगरी वाराणसी से ‘‘आज’’ अखबार 1920 से छपना षुरु हुआ और बस्ती जैसे आरोपित ‘‘उजाड़’’ से भी बाबू कैलाश पति ने 1926 से यानि बनारस के ‘‘आज’’ के मोकाबले केवल 6 वर्ष बाद ही ‘‘ बस्ती गजट ’’ का प्रकाषन शुरु कर दिया जो द्विभाशी था और हिन्दी और अंग्रेजी दो भाषाओं में छपता था. तथ्य तो यह कि बस्ती जनपद की पत्रकारिता या पत्र प्रकाशन का आरम्भ पं. रामनाथ षुक्ल के ‘‘कवि कुल कंज दिवाकर’’साहित्यिक पत्रिका से ही स्वीकार्य है. जिसे उन्होने 1882 से आरम्भ किया. ‘‘कवि कुल कंज दिवाकर’’ की उत्कृष्टता और पहुंच का आकलन तो इसी से किया जा सकता है कि उसमें स्वयं भारतेन्दु जी जैसे साहित्यिक दिग्गजों की कवितायें भी छपती रहीं. वास्तविकता तो यह भी है कि पं. राम नाथ शुक्ल जी ही भारतेन्दु जी की पत्रिकाओ के भी कर्ताधर्ता रहे.
ना बदला भूगोल , हलात बदल गये- आज बस्ती उसी भूगोल का मण्डल मुख्यालय है जिस भूगोल का जिला मुख्यालय भारतेदु जी ने 30 अप्रैल 1880 को देखा था. मेहदावल जाने के लिये देर षाम पालकी ना पाने का का्रेध वह नही रोक पाये और बस्ती पर जो छोदरा थोप दिया वह आज भी बस्ती के सीने पर दला जाता है. 1925 में बाबू कैलाष पति ने अंग्रेजी दफ्तर के ओ. एस. से सेवा निवृत्त होने के बाद ‘बस्ती गजट’ नामक द्विभाशी साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाषन 1926 में आरम्भ किया और एक बैंक भी स्थापित किया. इसके पहले बस्ती के लोगो के पास रुपया जमा करने का साधन केवल डाकखाना था. अंग्रेजी दफतर में ओ.एस. पद पर कार्य करते हुए बाबू कैलाष पति ने अनुभव किया कि वादकारियों को अदालत के सम्मन अखबारों में प्रकाशित कराने में बड़ी कठिनाई होती है. सम्मन प्रकाशित कराने के लिये वाराणसी के ‘‘आज’’ और अंग्रेजी दैनिक ‘‘ पायनियर ’’ में सम्मन छपवाने भेजना पड़ता है. सम्मन प्रकाषन की असुविधा को देखते हुए बाबू कैलाशपति ने 1926 में ‘‘ बस्ती गजट’’ के प्रकाशन का निष्चय किया.
जौनपुर निवासी बाबू कैलाशपति ने कैलाशपति हाते से बस्ती गजट का प्रकाशन मैगजीन आकार के 16 पृश्ठों में षुरु किया. पहले के चार पृश्ठ अंग्रेजी और षेश 12 पृष्ठों की सामग्री हिन्दी में होती थी. बस्ती का पहला समाचार पत्र द्विभाषी था. छपाई गोरखपुर से होती थी. आवरण पृश्ठ पर जिलाधिकारी , जिला जज , पुलिस कप्तान जैसे अधिकारियों के आदेश और सूचनायें प्रकाषित की जाती थीं. अंतिम पृष्ठ पर कवितायें, कहानियां चुटकुल्ले भी प्रकाषित होते थे. बस्ती गजट की प्रतियां जिलाधिकारी,जज, पुलिस कप्तान, मुंसफ , एैग्लो सकूल, जनपद के राजाओं जमींदारो तक भेजी जाती थी. बाबू केलाष पति स्वयं इस अखबार के सम्पादक थे . ंइस समाचारपत्र को प्रकाषित करने में मरवटिया के बाबू नागेश्वर सिंह, राजा साहब बस्ती,नरहरिया पाण्डेय, शोहरतगढ़ के राजा शिवपति सिंह,, गुलाम हुसेन पिंडारा,राय बहादुर सरयू प्रसाद,बाबू गनपत सहाय वकील आदि का सहयोग प्राप्त था. इनमें अधिकांषतः ब्रिटिश हुकूमत के समर्थक या ‘‘ अमन सभाई ’’ थे. सरकारी कार्यालय, राजा जमींदार तथा अंग्रेजी के षासकों के सहयोग से प्रकाषित होने के कारण बस्ती का पहला समाचारपत्र आजादी के आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी नहीं निभा सका. इसका प्रकाषन दस वशो तक निरन्तर होते रहना अपने आप में एक उपलब्धि थी. बाबू कैलाश पति की आयु बढ़ने के कारण काम करने में वह असमर्थ हेने लगे. इसीलिये उन्होने अखबार का प्रकाषन भी बंदकर दिया और बैंक का कामकाज भी रोक दिया.
1926 में ही मीनाई साहब ने ‘इंसाफ’’ नामक उर्दू साप्ताहिक का प्रकाषन आरम्भ किया जो 5-6 माह चलने के बाद ही बंद हो गया. बाद में मीनाई साहब पाकिस्तान चले गये. मो. इसहाक खां और इस्माइल की प्रेरणा से 1931 में मो. मकबूल ने उर्दू साप्ताहिक ‘‘कौम’’ का प्रकाषन षुरु किया. इसकी भी छपाई गोरखपुर से लीथो पर होती थी. इसका प्रकाषन एक वर्ष तक होता रहा. 1936 मे हीरानन्द ओझा ने ‘‘ निश्पक्ष’’ समाचारपत्र का प्रकाधन किया जो धर्मषाला रोड स्थित एक मकान से प्रकाषित होता था. 1945 में राजा राम षर्मा ने ‘‘विजय’’ नामक नामक साप्ताहिक का प्रकाषन आरम्भ किया जो दरिया खां जाने वाली गली के कोने पर मुख्य सड़क पर स्थित विजय प्रेस से छपता था. इस अखबार के पृश्ठ आजादी के आन्दोलन की खबरों से रंगे रहते थे और तल्ख टिप्पणियां प्रकाषित की जाती थीं.
आजादी के बाद 1952 में राजाराम शर्मा और दयाषंकर पाण्डेय ने ‘‘पंचमुख’’ हिन्दी साप्ताहिक का प्रकाषन आरम्भ किया जो 1961 तक श्रीराम प्रेस से छपता रहा. बाद में 1982 में इसी प्रेस से ‘‘मौनदर्शन’’ दैनिक का प्रकाषन मरवटिया के श्री कृश्ण प्रताप सिंह ने आरम्भ किया जो लगभग दो दषकों तक एक प्रभावी दैनिक की भूमिका निभाता रहा. कहना चाहें तो कह सकते है कि ‘‘पंचमुख’’आजादी के बाद का पहला अखबार था जो 11 वर्षो तक निरन्तर छपता रहा. 1962 में ईश दत्त ओझा ने ‘‘समदर्शी’’ और 1964 में श्री ष्यामलाल ने ‘‘पूर्वी जिले का प्रकाषन आरम्भ किया. ‘‘समदर्षी’’ संतकबीर नगर से दैनिक और बस्ती से साप्ताहिक के रुप में अब भी छप रहा है किन्तु ‘‘पूर्वी जिल’’े का प्रकाशन श्यामलाल जी के निधन के बाद जारी नही रह सका. इस अवधि में कई लोग अखबारों का प्रकाशन करते रहे और पत्र प्रकाशन का तानाबाना बुनते रहे. इनके महत्व को इनकार करना इतिहास को नकारना होगा. विकट परिस्थितियों में जिस किसी ने एक दो अंक भी प्रकाषित किया वे हमारे पत्र प्रकाषन के इतिहास के स्तम्भ हैं और उनसे हमें प्रेरणा मिलती है. कहना चाहें तो कह सकते हैं कि ‘‘समदर्षी’’ और ‘‘पूर्वी जिले’’ की चर्चा पं. अम्बिका प्रसाद बाजपेई ने अपनी पुस्तक ‘‘ हिन्दी समाचारपत्रों के इतिहास में ’’ में किया है.
महिला सशक्तीकरण का उदाहरण- बस्ती वह स्थान है जहां कंवलजीत कौर ने 1972 ‘‘नारी स्वर’’ का प्रकाषन आरम्भ करने की हिम्मत जुटाया जब महानगरों में भी महिलायें पत्र प्रकाषन के क्षेत्र में आने से संकोच करती धीं. बस्ती जैसे ‘‘उजाड़’’ से 1990 में संजय द्विवेदी ने 13 वर्श की उम्र में ‘‘षावक’’ बाल पत्रिका का प्रकाषन किया. आज संजय द्विवेदी जाने माने लेखक, पत्रकार हैं भोपाल से ‘‘मीडिया बिमर्ष’’ त्रैमासिक के प्रकाषन के साथ ही आई. आई. एम.सी. दिल्ली के निदेषक हैं.
अब शुरु हुआ दैनिक प्रकाशन का युग - 1968 में श्री गिरिजेश बहादुर सिंह राठौर ने ‘‘ग्रामदूत’’सा. का प्रकाषन का प्रकाषन आरम्भ किया जो 1973 से दैनिक प्रकाषित होने लगा. इसे बस्ती के प्रथम दैनिक होने का श्रेय प्राप्त है. ग्रामदूत दैनिक लगभग 30 वर्षो तक बस्ती के प्रभावी दैनिक की भूमिका निभाता रहा. 1981 में आरम्भ किया गया ‘‘ दैनिक भारतीय बस्ती’’ बस्ती मण्डल का प्रमुख दैनिक पत्र बन गया है. इसके प्रकाषक प्रदीप चन्द्र पाण्डेय, सम्पादक दिनेष चन्द्र पाण्डेय हैं. ‘‘भारतीय बस्ती’’ का एक संस्करण अयोध्या से भी प्रकाषित हो रहा हैं. 1989 में श्री अमरनाथ मानव ने ‘‘ नारद चर्चा ’ दैनिक का प्रकाषन षुरु किया. बस्ती जैसे छोटी जगह से प्रकाषन आरम्भ करके इसका प्रकाषन दिल्ली और लखनऊ से भी किया जा रहा है जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. इस समय विनोद उपाध्याय ‘‘ नारद चर्चा के साथ ही अनुराग लक्ष्य मासिक पत्रिका और दैनिक समेत कई पत्रों का प्रकाषन कर रहे है. इस बीच जयमानव , विजयदूत, आवाज दर्पण जैसे साठ से अधिक साप्ताहिक और लगभग दस दैनिक,पाक्षिक पत्र पत्रिकाओं का प्रकाषन बस्ती के पत्र प्रकाषन की महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसकी सूची बस्ती के सूचना कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है. तमाम दैनिको और साप्ताहिको का प्रकाषन करके लोगो ने बस्ती के पत्र प्रकाषन को दिषा दे रहे हैं. 1993 में प्रकाष चन्द्र गुप्ता ने ‘‘प्रकाष टाइम्स’’ दैनिक का प्रकाशन किया जो अब विचार परक दैनिक प्रकाषन द्वारा किया जा रहा है. प्रकाश चन्द्र गुप्ता ने पीटीएन और ऋतुराज शुक्ल ने कपिलगंगा दैनिक और चैनल शुरु किया था जो अब बंद है.
बस्ती में पत्र प्रकाशन का युग आज पोर्टल की दुनिया में प्रभावी दस्तक दे रहा हैं अषोक श्रीवास्तव ने ‘‘ मीडिया दस्तक’’ और ‘‘भारतीय बस्ती’’ प्रकाशन ने ‘‘ भारतीय बस्ती’’ डाट काम आरम्भ किया है. इसी प्रकार कई पोर्टल अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें है. इस ‘‘उजाड़ ’’ बस्ती ने समाचार माध्यमों की दुनिया में इतनी प्रभावी भूमिका निभायी है कि उसकी समग्र सूची का प्रकाशन इस छोटे से लेख में कर पाना सम्भव तो नही है किन्तु उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है. सूचना विभाग की सूची में दस दैनिको पचपन से अधिक साप्ताहिक समाचारपत्रों का अंकन तो है ही पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही ह.ै इनके महत्व को इसलिये नकारा नही जा सकता कि उनका अंकन हम इस लेख में नहीं कर पा रहे है. सभी एक से बढ़ कर एक है और बस्ती के समाचार माध्यम के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है साथ ही ‘‘ बस्ती को बस्ती कहउं तौ काको कहउं उजाड़’’ चुका है. बस्ती में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, आज , स्वतंत्र भारत , स्वतंत्र चेतना, सहारा जैसे समाचारपत्रों ने अपने व्यूरो कार्यालय खोल रखें है और अपने संवाददाताओं और प्रेस छायाकारों को शासन से मान्यता दिला रखा है. अनेक चेनल बस्ती को महत्वपूर्ण मान कर समाचार और विचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. जब अयोध्या में रामलीला को दर्षक देख नही पाये ,केवल दूरदर्शन पर ही चला . अयोध्या के स्थानीय कलाकारों की उपेक्षा की गयी है तब बस्ती राम लीला समिति ने अयोध्या और स्थानीय कलाकारों से रामलीला का कार्यक्रम आडीटोरियम में करके अपने महत्व को प्रमाणित कर दिया. हर क्षेत्र में बस्ती बढ़ ही रहा है आगे ही आगे. इसीलिये अब कहना ही पड़ता है ‘‘ बस्ती को उजाड़ मत कहना , बस्ती ने इतिहास रख है.’’ आज भारतेन्दु जी भी बस्ती आते तो उन्हें भी अपने धारणा को बदलना ही पड़ता.
- दिनेश सांकृत्यायन
सम्पादक
भारतीय बस्ती प्रकाशन समूह
बस्ती मो.9450567450