Basti News: बस्ती में आग से कितनी सुरक्षित हैं व्यावसायिक इमारतें? कोरम पूरा करने तक सिमटा अग्निशमन विभाग
- व्यावसायिक इमारतों में सुरक्षा के संसाधन का अभाव - डीएसओ की जांच में खुल चुकी है पेट्रोल पम्पों की पोल
-भारतीय बस्ती संवाददाता- बस्ती.जी हां शहर में बने बड़े व्यावसायिक काम्पलेक्स खतरों को दावत दे रहे है.दिल्ली में हुए मुण्डका में लगी आग की घटना हो या जिले के प्लास्टिक काम्पलेक्स में आर्या फूड में अगलगी की घटनाओं के बाद भी बस्ती प्रशासन की आंख नहीं खुल रही है.
शहर के प्लास्टिक काम्पलेक्स में कुछ महीने पहले लगी आग से करोड़ों के नुकसान का आकलन किया गया था.इसके बावजूद बस्ती विकास प्राधिकरण ने शहर में बनने वाले तमाम व्यावसायिक भवनों को अपना आशीर्वाद दे दिया है.शहर के अतिव्यस्त इलाके गांधीनगर की बात हो या मंगल बाजार होते हुए पाण्डेय बाजार की.हर जगह घनी आबादी के बीच बने इन भवनों पर किसी आकस्मिक घटना के बाद राहत दलों का पहुंच पाना टेढ़ी खीर है.
व्यावसायिक भवनों को नक्शा पास कराते हुए कहा जाता है की उनके इमारतों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए.कम से कम दो दरवाजे होने चाहिए.जिससे आकस्मिक घटना के समय दूसरे दरवाजे का उपयोग किया जा सके.मजे की बात प्राधिकरण और नगर पालिका परिषद के जिम्मेदारों द्वारा इन सब खामियों पर चुप्पी साध ली जाती है.बड़े साहबानों को भी इस तरफ देखने की जरूरत महसूस नहीं होती है.
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व्यावसायिक इमारतों में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए जरूरत से कम सुरक्षा के इंतजाम देखने को मिल रहा है.विभाग द्वारा सालाना जांच में आल इज वेल तो कह दिया जाता है.मगर धरातल पर ठीक उलट देखने को मिलता है.अग्निशमन विभाग कीे पोल जिला पूर्ति अधिकारी द्वारा पेट्रोल पम्पों की जांच में खुल चुकी है.आधा दर्जन पेट्रोल पम्पों में अग्निशमन संसाधनों की कमी पायी गई.जबकि पूरे जिले की जांच हो जाये तो सबकी पोल खुल जाएगी.
शहर के तमाम व्यावसायिक इमारतों में एक ही दरवाजे से ग्राहकों को अंदर और बाहर जाने का रास्ता मिलता है.आकस्मिक द्वार बनवाने में भवन स्वामी रूचि नहीं दिखाते.जबकि नक्शों के मुताबिक बड़े व्यावसायिक इमारतों में दो दरवाजे होने चाहिए.
जिले के एकमात्र प्लास्टिक काम्पलेक्स की दशा सुधारने के लिए अधिकारियों द्वारा भले ही दावों की बौछार की जाती हो.मगर यहां मिलने वाली बुनियादी सुविधाएं नाकाफी है.यहां भी तमाम फैक्ट्री मालिकों द्वारा सुरक्षा को ताक पर रख कर अपने प्रतिष्ठानों को चलाया जा रहा है.सूत्रों की मानें तो जांच के लिए आने वाले विभागीय जिम्मेदार कोरम पूरा करके चले जाते है.जबकि फैक्ट्रीयों में काम करने वाले हजारों लोग हमेशा खतरों के मुहाने पर रहते है.