UP में जमीन मुआवजे का बड़ा खेल! DM की जांच से खुलेंगे करोड़ों के राज

UP में जमीन मुआवजे का बड़ा खेल! DM की जांच से खुलेंगे करोड़ों के राज
UP में जमीन मुआवजे का बड़ा खेल! DM की जांच से खुलेंगे करोड़ों के राज

उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में स्थित आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे जिसे प्रदेश की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में गिना जाता है अब एक ऐसे विवाद में घिर चुका है, जिसने कई दफ्तरों में बेचैनी बढ़ा दी है. भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुआवजों में ऐसी अनियमितताएँ सामने आई हैं, जिनकी परतें खुलते ही कई पुराने फैसलों पर सवाल खड़े हो गए हैं.

राजस्व परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार ने इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए लखनऊ की जिलाधिकारी विशाखा जी को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी है. प्रारंभिक दस्तावेज़ों की जाँच में साफ संकेत मिले हैं कि उस समय के एसडीएम, तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल की भूमिका संदिग्ध रही है. यह सिर्फ लखनऊ का मसला नहीं है, संकेत हैं कि यह गड़बड़ी कई जिलों में फैली हो सकती है.

दो हफ्तों में पूरी रिपोर्ट देने के निर्देश

जिलाधिकारी को कहा गया है कि मुआवजे से जुड़े हर एक प्रकरण को दुबारा खंगाला जाए और 2 हफ्ते में पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए. साथ ही, जिन अधिकारियों, कर्मचारियों या लाभार्थियों को गलत तरीके से मुआवजा मिला, उनसे वसूली करने का आदेश भी दे दिया गया है.

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2013 के निर्देश और 302 किलोमीटर की महत्वाकांक्षा

13 मई 2013 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने 10 जिलों के डीएम को यूपीडा के लिए जमीन उपलब्ध कराने को कहा था. उसी समय 302 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे की तय संरेखण भी जारी की गई थी. परंतु इसी प्रक्रिया में लखनऊ के सरोसा–भरोसा गांव की भूमि पर ऐसा खेल खेला गया जिसने सरकारी रिकॉर्ड की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं.

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पुनरीक्षण ने खोली गुत्थी

2 नवंबर 2022 को एक आवेदन में सवाल उठाया गया कि जिस जमीन पर मुआवजा दिया गया, उसकी चौहद्दी ही स्पष्ट नहीं है. 2024 में यह मामला फिर राजस्व परिषद पहुँचा. परिषद ने यूपीडा से पूरा अधिग्रहण रिकॉर्ड बुलाया, और तभी असली हेराफेरी सामने आई. ग्राम समाज की जमीन को कागजों में ऐसे बदल दिया गया जैसे वह पहले से कुछ व्यक्तियों के कब्जे में थी. और फिर उसी आधार पर करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया.

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जांच में यह भी संकेत मिले कि लखनऊ के सरोसा–भरोसा के अलावा नटकौरा, दोना और 3 अन्य गांवों में भी इसी तरह की गड़बड़ियाँ हो सकती हैं. आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे से जुड़े 8 जिलों में इस तरह की अनियमितताओं की आशंका जताई गई है.

कैसे दो बीघा जमीन का बना करोड़ों का खेल

सरोसा–भरोसा गांव में गाटा संख्या–3 की 68 बीघा भूमि का मामला सबसे पहले शक के घेरे में आया. अधिकारियों ने दिखाया कि इस भूमि के लगभग 2 बीघा हिस्से पर अनुसूचित जाति के दो व्यक्तियों भाई लाल और बनवारी लाल का 2007 से पहले से कब्ज़ा था. इसी आधार पर 1,09,86,415 रुपये का मुआवजा जारी कर दिया गया. तत्कालीन लेखपाल ने पड़ोसियों के बयानों को आधार बनाकर दावा किया कि लाभार्थी पुराने कास्तकार थे. राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और एसडीएम ने भी उसी रिपोर्ट को सही मानते हुए मुआवजा दे दिया.

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शोभित पांडेय एक समर्पित और अनुभवशील पत्रकार हैं, जो बीते वर्षों से डिजिटल मीडिया और ग्राउंड रिपोर्टिंग के क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं। खबरों की समझ, तथ्यों की सटीक जांच और प्रभावशाली प्रेज़ेंटेशन उनकी विशेष पहचान है। उन्होंने न्यूज़ राइटिंग, वीडियो स्क्रिप्टिंग और एडिटिंग में खुद को दक्ष साबित किया है। ग्रामीण मुद्दों से लेकर राज्य स्तरीय घटनाओं तक, हर खबर को ज़मीनी नजरिए से देखने और उसे निष्पक्षता के साथ प्रस्तुत करने में उनकी विशेष रुचि और क्षमता है।