डीएनए बयान पर मचा सियासी तूफान: अखिलेश, योगी और ब्रजेश पाठक के बीच बढ़ी बयानबाजी

पूरे मामले की शुरुआत समाजवादी पार्टी मीडिया सेल नामक एक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल से हुई। उस हैंडल से उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक के डीएनए को लेकर बेहद अभद्र और आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया गया। यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ, जिसके बाद बृजेश पाठक ने तुरंत इस पर प्रतिक्रिया दी और एक्स पर एक लंबा पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की।
हालांकि, समाजवादी पार्टी ने तुरंत सफाई दी कि वह एक्स हैंडल उनका अधिकृत हैंडल नहीं है और पार्टी का उससे कोई नाता नहीं है। लेकिन तब तक सियासी पारा चढ़ चुका था। बृजेश पाठक के पोस्ट के बाद इस मुद्दे पर अखिलेश यादव ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया और कहा कि नेताओं को काम पर ध्यान देना चाहिए, न कि इन बेफिजूल की बातों पर। उनका यह जवाब बहुत संयमित था, लेकिन राजनीति में जब कोई बात उठ जाती है, तो उसका असर दूर तक जाता है।
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इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस बहस में उतर आए। उन्होंने न सिर्फ एक्स पर, बल्कि फेसबुक पर भी एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने समाजवादी पार्टी पर तीखा हमला बोला। योगी आदित्यनाथ ने लिखा, “यद्यपि समाजवादी पार्टी से किसी आदर्श आचरण की अपेक्षा करना व्यर्थ है, किंतु सभ्य समाज उनके अशोभनीय एवं अभद्र वक्तव्यों को सहन नहीं कर सकता। समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चाहिए कि वे अपने सोशल मीडिया हैंडल्स की भली-भांति समीक्षा करें तथा यह सुनिश्चित करें कि वहां प्रयुक्त भाषा मर्यादित, संयमित और गरिमापूर्ण हो।”
मुख्यमंत्री का यह बयान साफ इशारा करता है कि वह समाजवादी पार्टी से जुड़ी हर ऑनलाइन गतिविधि पर नजर रख रहे हैं और इस तरह की भाषा को बर्दाश्त नहीं करेंगे। योगी के इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बवाल और तेज हो गया। कई यूजर्स ने कमेंट कर अपनी प्रतिक्रिया दी। एक यूजर राजेंद्र सिंह ने लिखा, “बाबा जी ठोक डालिए, देश आपके साथ है।” वहीं एक अन्य यूजर यासिर ने लिखा, “लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे।” ये टिप्पणियाँ बताती हैं कि सोशल मीडिया पर आम लोग भी इस विवाद में गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं।
उधर अखिलेश यादव के पोस्ट पर भी तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ लोगों ने उन्हें संयमित नेता बताया, तो कुछ ने सवाल उठाए कि अगर वह इस तरह की भाषा से सहमत नहीं हैं, तो उनकी पार्टी से जुड़े अनधिकृत हैंडल्स पर वह कार्रवाई क्यों नहीं करते। इसी तरह बृजेश पाठक के पोस्ट भी खूब वायरल हुए और भाजपा समर्थकों के बीच चर्चा का विषय बने।
इस पूरे विवाद ने यूपी की सियासत को एक बार फिर गर्मा दिया है। चुनावी साल भले न हो, लेकिन राजनीतिक बयानों और सोशल मीडिया की जुबानी जंग ने माहौल को बेहद तनावपूर्ण बना दिया है। अब मामला सिर्फ एक विवादास्पद पोस्ट का नहीं रह गया, बल्कि यह सत्ताधारी पार्टी और प्रमुख विपक्षी दल के बीच गरिमा, भाषा और राजनीति की शालीनता का मुद्दा बन चुका है।
डीएनए को लेकर शुरू हुआ यह विवाद कहीं न कहीं यह सवाल भी उठाता है कि क्या हमारी राजनीति अब केवल सोशल मीडिया तक सीमित हो गई है? क्या अब नीतियों और कामकाज पर चर्चा के बजाय शब्दों और पोस्ट्स की लड़ाई चल रही है? अगर एक फर्जी हैंडल के पोस्ट पर इतना बड़ा विवाद हो सकता है, तो यह जरूरी हो जाता है कि सभी राजनीतिक दल अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण बनाए रखें।
फिलहाल तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में डीएनए विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। जहां एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ा रुख अपनाया है, वहीं अखिलेश यादव इस मामले को ज्यादा तूल न देने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों के समर्थक इस बहस को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।
राजनीति में असहमति स्वाभाविक है, लेकिन भाषा की मर्यादा टूटने लगे, तो वह पूरे लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय बन जाती है। देखना यह होगा कि यह विवाद आने वाले दिनों में ठंडा पड़ता है या कोई नया मोड़ लेता है।